बीसीआई की जिम्मेदारी कानूनी पेशे की गरिमा बनाये रखना और गौरव बहाल करना: शीर्ष अदालत

Supreme Court
प्रतिरूप फोटो

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह राज्य (उत्तर प्रदेश) बार काउंसिल और बीसीआई का कर्तव्य है कि वह कानूनी पेशे की गरिमा बनाए रखे और गौरव बहाल करे। वर्तमान मामले में, दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश बार काउंसिल बिल्कुल भी गंभीर नहीं है, जैसा कि ऊपर की असंवेदनशीलता का जिक्र किया गया है।’’

नयी दिल्ली|उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ताओं से जुड़ी फर्जी दावा याचिकाओं के मामले में पेश न होने पर उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को फटकार लगाते हुए कहा है कि कानूनी पेशे की गरिमा बनाए रखना और गौरव बहाल करना भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) का कर्तव्य है।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि पांच अक्टूबर को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के खिलाफ उनकी कड़ी टिप्पणियों के बावजूद उसकी ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ।

इसे भी पढ़ें: यौन उत्पीड़न का सबसे अहम घटक मंशा है, त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं: उच्चतम न्यायालय

पीठ ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ है। फर्जी दावा याचिका दायर करना एक बहुत ही गंभीर मामला है। यह अंततः पूरी संस्था की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है। कानूनी पेशे को हमेशा एक बहुत ही महान पेशा माना जाता है और अदालतों में फर्जी दावा याचिका दायर करने की ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जा सकती हैं।’’

शीर्ष अदालत ने आगे कहा, ‘‘यह राज्य (उत्तर प्रदेश) बार काउंसिल और बीसीआई का कर्तव्य है कि वह कानूनी पेशे की गरिमा बनाए रखे और गौरव बहाल करे। वर्तमान मामले में, दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश बार काउंसिल बिल्कुल भी गंभीर नहीं है, जैसा कि ऊपर की असंवेदनशीलता का जिक्र किया गया है।’’

पीठ ने अपने 16 नवम्बर के आदेश में कहा, ‘‘इन परिस्थितियों के मद्देनजर हमारे पास उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के अध्यक्ष एवं सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर शीर्ष अदालत के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।’’

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सात अक्टूबर, 2015 के आदेश के अनुपालन में गठित एसआईटी की ओर से दायर स्थिति रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा कि अब तक विभिन्न जिलों में दर्ज कुल 92 आपराधिक मामलों में से 55 में 28 अधिवक्ताओं को आरोपी व्यक्तियों के रूप में नामित किया गया है, जबकि 32 मामलों में जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र दायर किये गये हैं।शेष मामलों की जांच लंबित बताई जा रही है।’’

यह कहा जाता है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा एसआईटी को संदिग्ध दावों के मामलों की जांच के लिए पारित निर्देश के परिणामस्वरूप, विभिन्न बीमा कंपनियों से जुड़े कुल 233 संदिग्ध दावों को खारिज कर दिया गया है या उसे आगे नहीं बढ़ाया गया है, जिसके कारण न्यायाधिकरण द्वारा तीन अरब 76 लाख 40 हजार रुपये की राशि का दावा करने वाली विभिन्न दावा याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह बहुत ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि वर्ष 2016-2017 में प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बावजूद जांच अभी भी लंबित है और यहां तक कि उन मामलों में जहां आरोप पत्र दायर किये जा चुके हैं, निचली अदालतों द्वारा आरोप तय नहीं किये गये हैं।’’

इसे भी पढ़ें: आपराधिक मामलों में किशोर होने के दावे पर फैसला करने में अत्यधिक तकनीकी रुख से बचना चाहिए :न्यायालय

पीठ ने कहा, ‘‘हम एसआईटी को निर्देश देते हैं कि वह फर्जी दावे दाखिल करने में शामिल उन अधिवक्ताओं की सूची तीन दिन के भीतर बीसीआई के वकील को भेजें, जिनके खिलाफ प्राथमिकी / चार्जशीट दायर की गयी है, ताकि बीसीआई के वकील के कथनानुसार आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़