कोविड-19 से भारत में नवाचार का परिवेश बना: किरण मजूमदार-शॉ

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बायोकॉन की कार्यकारी अध्यक्ष और संस्थापक ने कहा कि जब पूरा परिवेश नैदानिक परीक्षण के लिए खुल गया, तो अचानक कई तरह के नैदानिक परीक्षण किए जाने लगे और कई अनुसंधानकर्ताओं ने अध्ययन प्रारंभ कर दिए। मजूमदार-शॉ ने कहा कि भारतीय नवाचार प्रणाली में अब कई तरह के नैदानिक परिक्षण और नैदानिक शोध किए जा रहे हैं।

वाशिंगटन। बायोकॉन की प्रमुख किरण मजूमदार-शॉ ने अगले हफ्ते बोस्टन में होने वाले भारत-अमेरिका बायो-फार्मा शिखर सम्मेलन से पहले कहा कि कोविड-19 वायरस के कारण पैदा हुए मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के कारण भारत में नवाचार का एक ‘‘परिवेश’’ बन गया है। मजूमदार-शॉ 22 जून को अमेरिका भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित वार्षिक आभासी शिखर सम्मेलन के 15वें संस्करण में प्रमुख वक्ता हैं। उन्होंने बताया, ‘‘बायो फार्मा शिखर सम्मेलन का मकसद भारत में नवाचार के परिवेश को बढ़ावा देना है। मुझे लगता है कि कोविड ने वास्तव में ऐसा परिवेश तैयार किया है।’’ उन्होंने कहा कि कोविड की चुनौतियों के चलते वास्तव में नवाचारी टीकों का उत्पादन हुआ है, जैसे कोवैक्सिन, जेनोवा एमआरएनए कार्यक्रम, और कई अन्य कार्यक्रम, जिन्हें भारतीय वैक्सीन विनिर्माताओं ने देश में विकसित किया है।

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बायोकॉन की कार्यकारी अध्यक्ष और संस्थापक ने कहा कि जब पूरा परिवेश नैदानिक परीक्षण के लिए खुल गया, तो अचानक कई तरह के नैदानिक परीक्षण किए जाने लगे और कई अनुसंधानकर्ताओं ने अध्ययन प्रारंभ कर दिए। मजूमदार-शॉ ने कहा कि भारतीय नवाचार प्रणाली में अब कई तरह के नैदानिक परिक्षण और नैदानिक शोध किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में इनक्यूबेटर हैं, जहां वे कई तरह के नए कार्यक्रम विकसित कर रहे हैं। अरबपति कारोबारी ने कहा, ‘‘अब इन कार्यक्रमों में वेंचर कैपिटल पैसे लगा रहे हैं। इसलिए धीरे-धीरे वह परिवेश बन गया है। भारतीय कंपनियों ने वित्त पोषण के लिए अमेरिका का रुख किया है और वे अमेरिका नवाचार परिवेश का हिस्सा बन रही हैं।’’ उन्होंने कहा कि कोविड-19 संकट ने भारत और अमेरिका की दवा कंपनियों को भी एक साथ ला दिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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