Parliament: राज्यसभा में माकपा सदस्य ने की हिन्दी को उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की भाषा न बनाने की मांग

 CPI M John Brittas
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राष्ट्रपति स्वयं उस प्रदेश से हैं जहां की भाषाई संस्कृति अत्यंत समृद्ध है। उन्होंने कहा कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार से क्षेत्रीय भाषाएं धीरे धीरे नदारद हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि माकपा सदस्य जॉन ब्रिटस ने कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्र है लेकिन हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हम हिन्दी को आधिकारिक उद्देश्य तक रखें, उसे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की न बनाएं।

नयी दिल्ली। राज्यसभा में शुक्रवार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य ने मांग की कि हिन्दी को आधिकारिक उद्देश्य तक ही रखा जाए, उसे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की न बनाया जाए। आधिकारिक समिति ने हाल ही में राष्ट्रपति को अपनी 11वीं रिपोर्ट सौंपी है। राष्ट्रपति स्वयं उस प्रदेश से हैं जहां की भाषाई संस्कृति अत्यंत समृद्ध है। उन्होंने कहा कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार से क्षेत्रीय भाषाएं धीरे धीरे नदारद हो जाएंगी।

उन्होंने कहा कि माकपा सदस्य जॉन ब्रिटस ने कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्र है लेकिन हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हम हिन्दी को आधिकारिक उद्देश्य तक रखें, उसे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की न बनाएं। ब्रिटास ने कहा ‘‘कल्पना कीजिये कि अल्फाबेट कंपनी के सीईओ और उसकी सहायक कंपनी गूगल एलएलसी के सीईओ सुन्दर पिचई केवल हिन्दी में बात करते हुए, हिन्दी में परीक्षा देते हुए क्या उस पद तक पहुंच पाते, जिस पद पर वह अभी हैं?

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उन्होंने कहा ‘‘उत्तर भारत के कई छात्र दक्षिण भारत में पढ़ रहे हैं। अगर उन्हें तमिल, मलयालम या कन्नड़ जैसी दक्षिण भारतीय में पाठ्यक्रम मिले तो उनकी क्या स्थिति होगी। यही स्थिति उत्तर भारत में आ कर पढ़ने वाले दक्षिण भारतीय छात्रों की हो सकती है। इसलिए हिंदी को उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की नहीं बनाया जाना चाहिए।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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