एनईईटी के जरिये प्रवेश परीक्षा के आयोजन पर फैसला सुरक्षित
उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के माध्यम से एमबीबीएस, बीडीएस और स्नातकोत्तर कोर्स में नामांकन के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा के आयोजन को लेकर केंद्र को निर्देश देने की मांग संबंधी याचिका पर आज अपना फैसला सुरक्षित रखा। केंद्र और भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के कार्यक्रम के अनुसार मई में होने वाली ऑल इंडिया पीएमटी परीक्षा को एनईईटी-1 को माना जायेगा और दूसरे चरण को एनईईटी-2 माना जायेगा, जिसका आयोजन 24 जुलाई को होगा और 17 अगस्त को संयुक्त परिणाम घोषित किये जायेंगे।
हालांकि एनईईटी के जरिये प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के फैसले को तमिलनाडु, कर्नाटक चिकित्सा महाविद्यालयों के संघ एवं सीएमसी वेल्लोर जैसे अल्पसंख्यक संस्थानों ने गैरकानूनी और असंवैधानिक बताते हुए इसका विरोध किया था। तमिलनाडु ने एनईईटी पर कड़ी आपत्ति जाहिर की और कहा कि राज्य में वर्ष 2007 के बाद से प्रवेश परीक्षाओं की कोई संस्कृति नहीं है। न्यायमूर्ति एआर दवे, शिवकीर्ति सिंह और एके गोयल की पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
एनजीओ संकल्प चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दायर की गयी याचिका को आज सुनवायी के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इससे पहले 11 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने सभी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस, बीडीएस और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा को खत्म करने के अपने विवादित निर्णय को वापस ले लिया था। संयुक्त प्रवेश परीक्षा को खत्म करने का निर्णय तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की सेवानिवृत्ति वाले दिन उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया था।
अपनी याचिका में एनजीओ ने कहा कि केंद्र, एमसीआई और सीबीएसई राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा को लागू करने संबंधी न्यायालय के फैसले के कार्यान्वयन में विलंब कर रहे हैं। इसमें साथ ही कहा गया है कि 11 अप्रैल के निर्णय से संयुक्त प्रवेश परीक्षा के आयोजन का रास्ता साफ हो गया था और वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2016-17 में चिकित्सा महाविद्यालयों में नामांकन के लिए परीक्षा के आयोजन में कोई बाधा नहीं है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि एनजीओ की शोध के अनुसार निजी और सरकारी प्राधिकारियों द्वारा अलग-अलग 90 प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों रूपये खर्च होते हैं।
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