Prabhasakshi NewsRoom: IndiGo संकट पर PM मोदी की सख्त टिप्पणी आते ही DGCA ने इंडिगो की 115 उड़ानें घटाईं, अब क्या करेंगे यात्री?

यह भी संकेत दिया गया है कि यदि स्थिति जल्द सुधरी नहीं तो कटौती और बढ़ सकती है। DGCA और सरकार का कहना है कि उड़ानों में हो रही यह गड़बड़ी सिर्फ नियमों के कारण नहीं, बल्कि एयरलाइन की कमजोर योजना और संसाधन प्रबंधन का नतीजा है।
देश की सबसे बड़ी एयरलाइन IndiGo पिछले कुछ सप्ताहों से लगातार रद्द और विलंबित उड़ानों के कारण सुर्खियों में है। यात्रियों को हवाई अड्डों पर घंटों फँसे रहना पड़ा, कई की यात्रा योजनाएँ बिगड़ गईं और सोशल मीडिया पर शिकायतों का अंबार लग गया। इस पूरे संकट के केंद्र में था पायलटों की ड्यूटी और आराम से संबंधित नए नियम यानि Flight Duty Time Limitation (FDTL), जिसे प्रभावी रूप से लागू करने में IndiGo विफल रहा। इन नियमों का उद्देश्य पायलटों को अधिक आराम देना और रात के समय उड़ानों की संख्या नियंत्रित करना था, ताकि सुरक्षा मानक बेहतर हों।
हालाँकि, IndiGo ने इन नियमों को लागू करने के लिए आवश्यक तैयारी नहीं की। पायलटों की उपलब्धता, शेड्यूलिंग और क्रू मैनेजमेंट में खामियों के चलते एयरलाइन की उड़ानें बड़ी संख्या में प्रभावित हुईं। यात्रियों की लगातार बढ़ती परेशानी को देखते हुए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने कड़ा कदम उठाते हुए IndiGo की उड़ान क्षमता में 5 प्रतिशत कटौती का आदेश जारी किया। इसका अर्थ है कि एयरलाइन अपनी लगभग 2,300 दैनिक उड़ानों में से करीब 115 उड़ानें रोजाना कम करेगी। DGCA ने एयरलाइन को नया शेड्यूल तैयार करने, परिचालन स्थिर करने और यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए हैं कि भविष्य में इस तरह की अव्यवस्थित स्थिति न पैदा हो।
इसे भी पढ़ें: IndiGo संकट पर बोले राम मोहन नायडू, जिम्मेदारी तय होगी, यात्रियों को परेशान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी
यह भी संकेत दिया गया है कि यदि स्थिति जल्द सुधरी नहीं, तो कटौती और बढ़ सकती है। DGCA और सरकार का कहना है कि उड़ानों में हो रही यह गड़बड़ी सिर्फ नियमों के कारण नहीं, बल्कि एयरलाइन की कमजोर योजना और संसाधन प्रबंधन का नतीजा है। इस संदर्भ में एक जांच समिति भी गठित की गई है, जो यह देखेगी कि क्या IndiGo को पहले से सचेत किया गया था और क्या एयरलाइन प्रबंधन ने उन चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया।
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “नियम और कानून व्यवस्था ठीक करने के लिए होते हैं, लोगों को परेशान करने के लिए नहीं। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आम लोगों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।” प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी संकेत देती है कि सरकार सुरक्षा नियमों पर समझौता नहीं करेगी, लेकिन नियमों के लागू होने के तरीके में यात्रियों को अनावश्यक परेशान होना भी स्वीकार्य नहीं है। उनकी प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है जब देशभर में यात्रियों में भारी नाराज़गी और भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
DGCA ने भी बाद में कुछ नियमों में अस्थायी ढील दी ताकि स्थिति संभाली जा सके, लेकिन मूल समस्या यानि एयरलाइन की तैयारी, अभी भी जांच के दायरे में है। हम आपको बता दें कि भारत के एविएशन सेक्टर में IndiGo की हिस्सेदारी लगभग 60–65 प्रतिशत है। ऐसे में इसकी किसी भी तरह की विफलता का सीधा असर देश की हवाई यात्रा व्यवस्था पर पड़ता है। यही कारण है कि सरकार और नियामक दोनों इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं।
देखा जाए तो IndiGo का यह संकट भारतीय विमानन क्षेत्र के सामने खड़ी एक बड़ी सच्चाई को उजागर करता है कि नियम बनाना आसान है, पर उनका पालन करवाना तभी संभव है जब संबंधित पक्ष तैयार हो। पायलटों की कार्य-सीमा और आराम के लिए FDTL जैसे नियम बिल्कुल आवश्यक हैं; ये सुरक्षा को मजबूत करते हैं और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं। लेकिन किसी भी बड़े बदलाव को लागू करने से पहले एयरलाइन को पर्याप्त तैयारी करनी पड़ती है। इस तरह से यहाँ पर IndiGo स्पष्ट रूप से असफल रही है।
यह तथ्य भी चिंताजनक है कि कई हफ्तों तक समस्याएँ जारी रहीं, फिर भी स्थिति सुधारने के पर्याप्त प्रयास समय पर नहीं किए गए। इतने बड़े नेटवर्क वाली एयरलाइन की ढीली योजना का असर सिर्फ यात्रियों पर ही नहीं, बल्कि पूरे एविएशन इकोसिस्टम पर पड़ता है। इस स्थिति में एयरपोर्ट, कनेक्टिंग उड़ानें, टूरिज़्म, बिज़नेस ट्रैवल सब प्रभावित होते हैं।
देखा जाए तो सरकार और DGCA की ओर से उड़ान क्षमता में कटौती, शेड्यूल समीक्षा और जांच समिति का गठन सही कदम हैं। हालांकि, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसे निर्णयों में पारदर्शिता हो और यात्रियों को स्पष्ट जानकारी समय पर मिले।
प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी, जिसमें उन्होंने कहा कि नियम लोगों को परेशान करने के लिए नहीं बल्कि सिस्टम सुधारने के लिए हैं, बिल्कुल सही दिशा में है। प्रश्न यह नहीं कि नियम सही हैं या गलत, प्रश्न यह है कि उन्हें लागू करने की तैयारी कितनी गंभीरता से की गई थी। यदि नियम लागू करना ही यात्रियों की परेशानी का कारण बन जाए, तो यह नियमन की विफलता नहीं बल्कि व्यवस्था की कमजोरियों का परिणाम है।
बहरहाल, यह संकट एक महत्वपूर्ण सीख दे जाता है कि भारत के तेजी से बढ़ते विमानन क्षेत्र को अब सिर्फ विस्तार नहीं, बल्कि कुशल संचालन, बेहतर योजना और संवेदनशीलता की भी उतनी ही जरूरत है। यात्रियों का भरोसा किसी भी एयरलाइन की सबसे बड़ी पूंजी होता है। IndiGo के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण और सुधार का है, ताकि भविष्य में ऐसी अव्यवस्थित स्थितियाँ दोबारा न हों।
अन्य न्यूज़











