संविधान को जानें: न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के कार्यों में यह है मूलभूत अंतर

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किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका सबसे अहम होती है और भारतीय संविधान तो एक ऐसी न्यायपालिका की स्थापना करता है जो अपने आप में एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी है।

नयी दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े संविधान के तीन मुख्य अंग हैं। जिन्हें न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका कहते हैं। इन्हीं अंगों के माध्यम से देश को सुचारू ढंग से चलाया जाता है। हालांकि, इन संभी अंगों के अपने अलग-अलग कार्य होते हैं। आज हम अपनी नई सीरीज संविधान को जानें में न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के बारे में जानेंगे और यह जानेंगे कि संविधान के तहत इन्हें कौन-कौन सी शक्तियां प्राप्त हैं।  

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न्यायपालिका

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका सबसे अहम होती है और भारतीय संविधान तो एक ऐसी न्यायपालिका की स्थापना करता है जो अपने आप में एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी है। न्यायपालिका का कार्य संविधान के तहत बने कानूनों को पालन करना और अगर कोई कानूनों का उल्लंघन करता है तो उसे दंडित करना है।

भारत की न्याय व्यवस्था में कई स्तर के न्यायालय हैं। सर्वोच्च न्यायालय सबसे ऊपर होता है और इसके नीचे राज्य स्तर पर स्थापित उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे (जिला अदालतें और निचली अदालतें) होती हैं। न्यायालयों का प्रमुख उच्चतम न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश होता है।

वहीं, सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी देता है और संविधान का संरक्षक है। इसलिए न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया है। न्यायपालिकों में न्यायधीशों के चयन का काम प्रधान न्यायधीश, राष्ट्रपति और राज्य के गवर्नर का होता है। हालांकि, न्यायधीश बनने के लिए कई योग्यताओं का होना अनिवार्य होता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की नियुक्तियां अलग-अलग ढंग से की जाती हैं। 

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संविधान में भाग पाँच (संघ) एवं अध्याय 6 (संघ न्यायपालिका) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया है। संविधान में अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।

व्यवस्थापिका

व्यवस्थापिका या विधायिका को संसद कहा जाता है। जिसका गठन राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर होता है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 79 में है। आपको बता दें कि भारतीय संविधान लोकसभा और राज्यसभा को कुछ अपवादों को छोड़कर कानून निर्माण की शक्तियों में समान अधिकार देता है।

व्यवस्थापिका सरकार का महत्वपूर्ण अंग है और इसका कार्य कानूनों का निर्माण करना, उनमें संशोधन करना तथा उन्हें निरस्त करना है। 

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राज्यसभा:- राज्यसभा को उच्च सदन भी कहा जाता है। राज्यसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है लेकिन वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से क्षेत्र से मनोनीत किया जाता है। उच्च सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है। जबकि एक तिहाई सदस्यों का चुनाव दूसरे साल होता है।

लोकसभा:- लोकसभा को निम्न सदन भी कहा जाता है। लोकसभा का गठन वयस्‍क मतदान के आधार पर प्रत्‍यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है। निम्न सदन के सदस्‍यों की अधिकतम संख्‍या 552 है। जिसमें से 530 अलग-अलग राज्यों से जबकि 20 संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं और दो आंग्‍ल भारतीय समुदाय के सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करते हैं।

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