Kashmir में G20 के सफल आयोजन से भड़के फारुक अब्दुल्ला, Pakistan से बातचीत का राग फिर अलापा

Farooq Abdullah
ANI

फारुक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान से बातचीत का राग एक बार फिर अलापते हुए कहा है कि कश्मीर में जी-20 कार्यक्रम आयोजित करने से घाटी में पर्यटन को तब तक लाभ नहीं होगा जब तक भारत और पाकिस्तान केंद्र शासित प्रदेश के ‘‘भविष्य’’ को बातचीत के जरिए नहीं सुलझाते।

कश्मीर में जी-20 पर्यटन समूह की ऐतिहासिक और सफल बैठक से पूरी दुनिया में संदेश गया कि कश्मीर के बारे में जो दुष्प्रचार पाकिस्तान फैलाता रहता है वह गलत है। जी-20 समूह की बैठक के दौरान विदेशी प्रतिनिधियों ने देखा कि कैसे श्रीनगर स्मार्ट सिटी बन रहा है और कश्मीर के बाकी हिस्सों में भी विकास के काम तेजी से हो रहे हैं। लेकिन यह सब पाकिस्तान को और कश्मीर को बरसों तक लूटने वाले परिवारवादी दलों को पसंद नहीं आया। पाकिस्तान की ओर से पैदा की जाने वाली तमाम अड़चनों के बावजूद भारत ने कश्मीर में जी-20 का सफल आयोजन कर आतंक के मुँह पर करारा तमाचा मारा लेकिन नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला को देश की यह उपलब्धि पच नहीं रही है। उन्होंने कहा है कि जी-20 बैठक से हमें सिर्फ इतना लाभ हुआ है कि सड़कें बन गयी हैं और स्ट्रीट लाइटें ठीक हो गयी हैं। फारुक अब्दुल्ला को अगर कश्मीर की उपलब्धि नहीं दिख रही है तो उन्हें बता दें कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से कश्मीर विकास के पथ पर तो तेजी से आगे बढ़ ही रहा है साथ ही यहां पर्यटकों की संख्या के भी सभी पुराने रिकॉर्ड टूट रहे हैं। देशी-विदेशी पर्यटकों की आवक का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि कश्मीर आने वाली हर फ्लाइट में बुकिंग मुश्किल से मिल रही है और मिल भी रही है तो टिकट काफी महंगे हो गये हैं क्योंकि हर कोई बस कश्मीर जाना चाहता है। लेकिन फारुक अब्दुल्ला और उनके गुपकार गैंग के सदस्यों को यह सब नहीं दिख रहा।

खफा क्यों हैं फारुक अब्दुल्ला?

इसलिए फारुक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान से बातचीत का राग एक बार फिर अलापते हुए कहा है कि कश्मीर में जी-20 कार्यक्रम आयोजित करने से घाटी में पर्यटन को तब तक लाभ नहीं होगा जब तक भारत और पाकिस्तान केंद्र शासित प्रदेश के ‘‘भविष्य’’ को बातचीत के जरिए नहीं सुलझाते। लेकिन यहां फारुक को समझना होगा कि पाकिस्तान से बातचीत आखिर कैसे हो सकती है। सीमापार से आतंकवाद को प्रश्रय दे रहे देश से बातचीत कैसे की जा सकती है? अभी गोवा में जब एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी उसमें पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने जिस तरह घुमा-फिरा कर कश्मीर का मुद्दा उठाया था क्या उसे अब्दुल्ला भूल गये हैं? अभी जी20 की बैठक के दौरान पीओके के मुजफ्फराबाद जाकर एक रैली को संबोधित करते हुए बिलावल ने कश्मीर और कश्मीरियों के बारे में जो कुछ कहा था क्या उसे अब्दुल्ला भूल गये हैं? दरअसल यह भूले कुछ भी नहीं हैं यह तो सब कुछ जानते समझते हुए भी पाक का राग अलापने वाले लोग हैं। जहां तक पाकिस्तान से बातचीत का सवाल है तो भारत का इस बारे में स्पष्ट रुख है जिसे हाल ही में एससीओ बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोहराते हुए कहा था कि “आतंकवाद के शिकार लोग आतंकवाद पर चर्चा करने के लिए आतंकवाद के अपराधियों के साथ नहीं बैठते हैं।” 

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कश्मीर का सच क्या है?

हम आपको यह भी बता दें कि फारुक अब्दुल्ला ने मीडिया से बातचीत के दौरान महबूबा मुफ्ती को पासपोर्ट मिलने से संबंधित सवाल पूछे जाने पर खुशी तो जताई ही साथ ही यह भी कहा कि अब वह दुनिया को जाकर कश्मीर का सच बता सकेंगी। यहां अब्दुल्ला से सवाल है कि दुनिया को कश्मीर का कौन-सा सच महबूबा बताएंगी? कश्मीर का सच तो अभी जी20 बैठक के दौरान तमाम देशों के प्रतिनिधियों के साथ ही संयुक्त राष्ट्र से आये प्रतिनिधि भी देखकर गये हैं। कश्मीर का सच यह है कि अब्दुल्लाओं और मुफ्तियों के राज में कश्मीर ने आतंकवाद के दंश को झेला है। कश्मीर का सच यह है कि 370 हटने के बाद से यहां अन्याय, शोषण और भेदभाव को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। कश्मीर का सच यह है कि आज यहां विदेशी निवेश आ रहा है जो आर्थिक उन्नति का संकेत है। कश्मीर का सच यह है कि आज यहां जमीनी लोकतंत्र मजबूत हुआ है, नए उद्योग आ रहे हैं, तेजी से कृषि विकास गांवों को समृद्ध बना रहा है और बुनियादी ढांचा विकास तेजी से हो रहा है। कश्मीर का सच यह है कि पिछले साल रिकॉर्ड 1.8 करोड़ से अधिक पर्यटक यहां आये थे। कश्मीर का सच यह है कि इस बार के पर्यटन सीजन में पिछले साल का रिकॉर्ड टूटने के आसार हैं। कश्मीर का सच यह है कि पिछले साल यहां 300 से अधिक फिल्मों की शूटिंग हुई और करीब चार दशक के लंबे विराम के बाद जम्मू-कश्मीर ने बॉलीवुड के साथ अपने संबंध फिर से स्थापित कर लिए और इस साल भी यहां तमाम फिल्मों, धारावाहिकों और वेब सीरीज की शूटिंग चल रही है। कश्मीर का सच यह है कि यहां आतंकवाद और भ्रष्टाचार के मामलों में पहले की अपेक्षा बहुत कमी आई है। कश्मीर का सच यह है कि श्रीनगर में 'स्मार्ट सिटी मिशन' के तहत जल परिवहन और विद्युत चालित बस सेवा के अलावा पैदल यात्रियों के लिए 80 किलोमीटर लंबा पथ विकसित किया जा रहा है जोकि किसी भी भारतीय शहर के लिए एक अभूतपूर्व व्यवस्था होगी। कश्मीर का सच यह है कि श्रीनगर शहर में साइकिल ट्रैक, मजबूत सीवरेज प्रणाली तथा भूमिगत विद्युत नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है। कश्मीर का सच यह है कि मोदी सरकार की प्रमुख योजनाओं में से एक स्मार्ट सिटी मिशन के तहत श्रीनगर शहर की 125 परियोजनाओं में से 55 परियोजनाओं का काम पूरा हो चुका है जबकि शेष काम साल के अंत तक पूरा करने की योजना है। कश्मीर का सच यह है कि यहां 100 इलेक्ट्रिक बसें आने वाली हैं। कश्मीर का सच यह है कि पूरे जम्मू-कश्मीर में रेल और सड़क परिवहन का ऐसा नेटवर्क बिछाया जा रहा है जिससे हर मौसम में कहीं भी आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी। ऐसे ही तमाम सच हैं आज के कश्मीर के। लेकिन सवाल यह है कि क्या अब्दुल्ला और मुफ्ती इस सच को स्वीकार करेंगे और विदेशों में जाकर इस सच को बताएंगे?

जल्द चुनाव की वकालत

बहरहाल, जहां तक अब्दुल्ला के बयान की अन्य बड़ी बातों का सवाल है तो आपको बता दें कि उन्होंने यह भी कहा कि निर्वाचित सरकार नहीं होने के कारण जम्मू-कश्मीर को भारी नुकसान हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में एक निर्वाचित सरकार की कमी पर अब्दुल्ला ने कहा, "लोकतांत्रिक व्यवस्था तब होती है जब एक निर्वाचित सरकार हो। केवल एक राज्यपाल और उनके सलाहकार पूरे राज्य को नहीं संभाल सकते। लोकतंत्र में एक विधायक होता है, जो अपने संबंधित क्षेत्रों की देखरेख करते हैं क्योंकि यह उनका कर्तव्य है। अफसरशाही को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वे 60 साल की उम्र तक सेवानिवृत नहीं होते, जबकि एक विधायक को हर पांच साल में जनता के पास वापस जाना होता है, अगर वे काम नहीं करेंगे तो उन्हें वोट नहीं मिलेंगे। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि यहां चुनाव होने चाहिए।" श्रीनगर से लोकसभा सदस्य अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है।

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