Sarbananda Sonowal Birthday: गांव से सत्ता के शिखर तक, सर्बानंद सोनोवाल ऐसे बने पूर्वोत्तर के नायक

Sarbananda Sonowal Birthday
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भारतीय जनता पार्टी के कद्दावनर नेता और केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल आज यानी की 31 अक्तूबर को अपना 63वां जन्मदिन मना रहे हैं। उन्होंनें पूर्वोत्तर में भाजपा को न सिर्फ पहचान दिलाने का काम किया, बल्कि असम जैसे बड़े राज्य में भाजपा को सत्ता भी दिलाई।

भारतीय जनता पार्टी के कद्दावनर नेता और केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल आज यानी की 31 अक्तूबर को अपना 63वां जन्मदिन मना रहे हैं। सर्बानंद सोनोवाल एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने पूर्वोत्तर में भाजपा को न सिर्फ पहचान दिलाने का काम किया, बल्कि असम जैसे बड़े राज्य में भाजपा को सत्ता भी दिलाई। भाजपा का दामन थामने से पहले सर्बानंद सोनोवाल असम गण परिषद में थे और उनकी गिनती असम के जातीय नायकों में होती थी। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर सर्बानंद सोनोवाल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

सर्बानंद सोनोवाल का जन्म डिब्रूगढ़ के मोलोक गांव में 31 अक्तूबर 1962 को हुआ था। उनके पिता का नमा जिबेश्वर सोनोवाल था और माता का नाम देनेश्वरी सोनोवाल था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद आगे कानून की पढ़ाई की। वह अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे। वहीं साल 1996 से लेकर 2000 तक वह पूर्वोत्तर छात्र संगठन के अध्यक्ष भी रहे थे।

सियासी सफर

सर्बानंद सोनोवाल ने छात्र जीवन से ही राजनीति की शुरूआत कर दी थी। वह असम गण परिषद से जुड़े और फिर साल 2001 में वह पहली बार विधायक चुने गए। उसके बाद साल 2004 में सोनोवाल असम गण परिषद से ही सांसद चुने गए थे। वह असम में गृहमंत्री और उद्योग वाणिज्य मंत्री भी रह चुके हैं।

भाजपा में शामिल

भारतीय जनता पार्टी को पूर्वोत्तर में अपने पैर जमाने के लिए किसी कद्दावर नेता की तलाश थी। जोकि पार्टी की नीतियों को अच्छे से समझता हो। वहीं दूसरी ओर सोनोवाल को भी ऐसा लगने लगा कि जिस असम गण परिषद के लिए वह अपना खून-पसीना बहा रहे हैं, वह पार्टी असम में दिन पर दिन अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही है। वह कांग्रेस में जा नहीं सकते थे, क्योंकि कांग्रेस का विरोध करके ही असम गण परिषद सत्ता में आई थी। हालांकि बाद में दोनों के संबंध ठीक हो गए थे।

ऐसे में सर्बानंद सोनोवाल ने बोल्ड कदम उठाते हुए साल 2011 में भाजपा ज्वॉइन कर ली। भाजपा में आते ही उनके कद को देखते हुए सोनोवाल को कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया। वह असम में भाजपा के प्रवक्ता भी रहे हैं। असम में भाजपा को सत्ता में लाने के लिए सर्बानंद सोनोवाल ने दिन रात एक कर दिया था। साल 2014 आते-आते सर्बानंद सोनोवाल भाजपा के बड़े नेताओं में शामिल हो चुके थे। वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सोनोवाल ने लखीमपुर सीट से जीत हासिल कर अपनी योग्यता को साबित कर दिखाया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

असम के सीएम

फिर 24 मई 2016 में सर्बानंद सोनोवाल ने असम के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह असम के 14वें मुख्यमंत्री बनें। असम में अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा हमेशा से ज्वलंत रहा है। असम गण परिषद में भी रहते हुए सोनोवाल का मानना था कि अवैध बांग्लादेशियों को वापस अपने देश जाना चाहिए। साल 1983 में इल्लिगल माइग्रेंट्स डिटर्मिनेशन बाई ट्रिब्यूनल एक्ट अस्तित्व में आया। इसके मुकाबित साल 1971 से पहले असम में आए बांग्लादेशी को वहां पर रहने की इजाजत दी गई थी। लेकिन सोनोवाल इसके खिलाफ चले गए और सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को खत्म करने का आदेश दे दिया।

इस आदेश के बाद असम की जनता में सर्बानंद सोनोवाल की एक अलग छवि बनीं। वहां के लोगों को लगने लगा कि वह उनके लिए लड़ाई लड़ सकते हैं। जिसके बाद से सर्बानंद सोनोवाल को असम का जातीय नायक माना जाने लगा।

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