Prabhasakshi NewsRoom: Jharkhand में बन सकती है डबल इंजन की सरकार ! BJP नेताओं से Hemant Soren की मुलाकातों से शुरू हुआ अटकलों का दौर

दिल्ली में कई दिनों तक ठहरने के बाद सोरेन दंपति 5 दिसंबर से शुरू होने जा रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले रांची लौट चुके हैं। झामुमो का कहना है कि दिल्ली यात्रा पारिवारिक चिकित्सकीय कारणों से थी और मुख्यमंत्री ने प्रवर्तन निदेशालय से जुड़े मामलों को लेकर कानूनी सलाह भी ली।
झारखंड की राजनीति इस समय असामान्य हलचल से गुजर रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की भाजपा के साथ बढ़ती निकटता से नए राजनीतिक समीकरणों की अटकलें लगातार गहराती जा रही हैं। हालांकि झामुमो, कांग्रेस और राजद, सभी ने राजनीतिक अस्थिरता की खबरों को अफवाह बताया है, लेकिन हालिया घटनाओं की टाइमिंग ने सियासी गलियारों में कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
हम आपको बता दें कि अटकलों का दौर तब शुरू हुआ जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी विधायक पत्नी कल्पना सोरेन का राष्ट्रीय राजधानी में लंबा ठहराव और भाजपा नेताओं से कथित मुलाकातों की खबरें सामने आईं। इसी दौरान झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार का केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलना भी घटनाक्रम को और संदिग्ध बनाता दिखा।
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इन सबके बीच झामुमो–कांग्रेस–राजद की सरकार में अंदरूनी खटास की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। बिहार विधानसभा चुनावों में सीट बंटवारे को लेकर झामुमो और महागठबंधन के बीच तनातनी खुलकर सामने आ चुकी थी। झामुमो ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस और राजद ने उन्हें योजनाबद्ध तरीके से किनारे किया, जबकि वह महागठबंधन का हिस्सा है। पार्टी ने तब यह भी कहा था कि वह ‘इंडिया’ गठबंधन में अपनी भूमिका की समीक्षा करेगी। यही विवाद अब झारखंड के अंदर भी तनाव की पृष्ठभूमि तैयार करता दिख रहा है।
हम आपको बता दें कि दिल्ली में कई दिनों तक ठहरने के बाद सोरेन दंपति 5 दिसंबर से शुरू होने जा रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले रांची लौट चुके हैं। झामुमो का कहना है कि दिल्ली यात्रा पारिवारिक चिकित्सकीय कारणों से थी और मुख्यमंत्री ने प्रवर्तन निदेशालय से जुड़े मामलों को लेकर कानूनी सलाह भी ली।
उधर कांग्रेस ने भाजपा पर “अफवाह फैलाने” का आरोप लगाते हुए कहा है कि गठबंधन पूरी मजबूती के साथ चल रहा है। वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर और मंत्री दीपिका पांडे सिंह ने सियासी उथल-पुथल की खबरों को पूरी तरह बेबुनियाद बताया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इससे सहमत नहीं दिखते। उनका कहना है कि विधानसभा का गणित अपने आप में संभावित फेरबदल की गुंजाइश पैदा करता है। झामुमो के पास 34 विधायक हैं और कांग्रेस के 16, राजद के 4 तथा वाम दलों के 2 विधायकों के साथ गठबंधन इस समय 56 सीटों पर टिका है। यदि झामुमो के 34 और भाजपा के 21 तथा छोटे दलों— एलजेपीआर, एजेएसयू, जेडीयू के साथ नया समीकरण बनाता है तो यह संख्या 58 तक पहुंच सकती है। यह आंकड़ा वर्तमान गठबंधन से अधिक और स्थिर बहुमत के लिए पर्याप्त होगा।
हालांकि कांग्रेस के भीतर भी यह आशंका है कि यदि झामुमो ने मन बनाया तो कांग्रेस के कुछ विधायक पाला बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन दल-बदल कानून के कारण यह रास्ता आसान नहीं है। ऐसे किसी भी कदम से बचने के लिए कम से कम 11 कांग्रेस विधायकों का समूहिक रूप से दल छोड़ना आवश्यक होगा।
उधर, भाजपा ने सार्वजनिक रूप से गठबंधन की संभावना से इंकार करते हुए कहा है कि सोरेन सरकार “भ्रष्टाचार में डूबी” हुई है, लेकिन राजनीतिक हवाओं का रुख बताता है कि भाजपा परदे के पीछे से समर्थन देने के विकल्प पर विचार कर सकती है, यदि इससे कांग्रेस कमजोर होती है और झारखंड में सत्ता समीकरण बदलता है। हम आपको बता दें कि दिल्ली में हुई मुलाकातों और झामुमो–कांग्रेस–राजद के बीच बढ़ती दूरी के संकेत, जैसे साझा मंचों पर अनुपस्थिति, कार्यक्रमों का रद्द होना, आपसी संवाद का कम होना, इस बात की पुष्टि करते हैं कि झारखंड की राजनीति निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। सवाल यह है कि क्या हेमंत सोरेन सचमुच भाजपा से हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं, या यह पूरा घटनाक्रम महागठबंधन के भीतर दबाव की राजनीति का नया अध्याय भर है।
देखा जाये तो झारखंड की मौजूदा सियासी हलचल केवल एक राज्य की राजनीतिक उठापटक नहीं है; यह उस व्यापक विपक्षी फ्रेमवर्क पर सीधा असर डालती है जो ‘इंडिया गठबंधन’ के नाम से देशभर में बनाया गया था। अगर हेमंत सोरेन, जो आदिवासी राजनीति का एक मजबूत चेहरा हैं, वह इस गठबंधन से अलग होते हैं, तो इसका प्रतीकात्मक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर बड़ा असर पड़ेगा।
पहला, झारखंड जैसे संसाधन-संपन्न राज्य में कांग्रेस और राजद की पकड़ कमजोर हो जाएगी। दूसरा, विपक्षी एकता की वह कहानी, जिसे अभी भी मजबूत बताने की कोशिश की जा रही है, उसे एक बड़ा झटका लगेगा। साथ ही बिहार में हार, पश्चिम बंगाल में ठहराव और अब झारखंड की अनिश्चितता, ये तीनों मिलकर इंडिया गठबंधन की साख पर सवाल खड़ा करते हैं। हेमंत सोरेन यदि भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनाते हैं, तो यह न सिर्फ झारखंड की राजनीति को पलट देगा, बल्कि विपक्ष के लिए मनोवैज्ञानिक हार भी साबित होगा। इसलिए महागठबंधन और इंडिया ब्लॉक के लिए यह केवल एक राज्य का संकट नहीं; यह उनकी विश्वसनीयता की परीक्षा है।
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