भोपाल नगर निगम बटवारे को लेकर कमलनाथ सरकार को झटका, हाई कोर्ट ने लगाई रोक

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दिनेश शुक्ल । Nov 14 2019 5:07PM

इंदौर हाई कोर्ट ने याचिका पर सरकार से जबाव मांगा है। कानून के जानकार बताते हैं कि राज्य सरकार के मामले पर विस्तार से दिए गए जबाव के बाद स्टे रहेगा या नहीं यह तय किया जाएगा। मामले पर अगली सुनवाई आगामी 02 दिसंबर 2019 को तय की गई है।

भोपाल। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने राजधानी भोपाल, इंदौर सहित सभी नगर निगमों की सीमा बढ़ाए जाने पर अंतरिम रोक लगा दी है। साथ ही भोपाल नगर निगम को दो भागों में बांटने की प्रक्रिया पर भी रोक लग गई है। इंदौर हाई कोर्ट के इस फैसले से राज्य की कमलनाथ सरकार को झटका लगा है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग की ओर से 23 फरवरी 2019 को गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया था। जिसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। दरअसल सीमा बढ़ाए जाने के राज्यपाल के अधिकार को संविधान विपरीत कलेक्टर को दिए जाने के खिलाफ यह याचिका कोर्ट में दायर की गई थी।

जिसके बाद राजधानी भोपाल में नगर निगम को दो भागों में विभाजित करने की प्रक्रिया पर भी रोक लग गई है। हाईकोर्ट राज्य सरकार की नौ महीने पुरानी इस अधिसूचना के पालन पर रोक लगा दी है। अधिकारियों ने बताया कि कोर्ट का यह स्टे पूरे प्रदेश में लागू होगा। बता दे कि इंदौर हाई कोर्ट में राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना पर ही आपत्ति जताई गई थी। याचिका में कहा गया कि प्रावधानों के मुताबिक शहरी सीमा में किसी भी क्षेत्र को जोड़ने या घटाने को लेकर अधिकार राजपाल का होता है। राज्य सरकार राज्यपाल की सहमति के बिना शहरी सीमाओं में बदलाव की प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।

बताया जाता है कि राजधानी भोपाल को राजनीतिक लाभ के लिए दो भागों में बांटने के लिए सरकार की मंशा के मुताबिक यह कवायद शुरू की गई थी। भोपाल कलेक्टर ने इस संबंध में कार्रवाई शुरू करने के आदेश दिए थे। साथ ही नगर निगम के बंटवारे को लेकर दावे-आपत्ति की सुनवाई भी पूरी कर ली गई थी। इसमें अधिकांश लोगों ने विरोध भी दर्ज कराया था। बता दें कि मामले पर 'वाइस ऑफ भोपाल' सामाजिक संगठन ने भी भोपाल को दो भागों में नियमों के विरुद्ध विभाजन के विरोध में जबलपुर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की है। जबकि भोपाल नगर निगम को दो भागों में बांटने की प्रक्रिया भी अंतिम चरणों में हैं। दावे-आपत्ति के साथ विभाजन संबंधित दस्तावेज भी मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच चुके है। इसके बाद तमाम दस्तावेज अंतिम मंजूरी के लिए राजपाल के पास भेजे जाएंगे। नगर निगम के विभाजन संबंधित अंतिम अधिकार भी राजपाल का होगा। बता दें कि मामले पर कुल 1,897 दावे-आपत्ति आई थीं। मात्र 482 लोगों ने सर्मथन व 1,415 लोगों ने शहर को बांटने का विरोध किया था।

वही इंदौर हाई कोर्ट ने याचिका पर सरकार से जबाव मांगा है। कानून के जानकार बताते हैं कि राज्य सरकार के मामले पर विस्तार से दिए गए जबाव के बाद स्टे रहेगा या नहीं यह तय किया जाएगा। मामले पर अगली सुनवाई आगामी 02 दिसंबर 2019 को तय की गई है।

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