High Court ने 2011 में छात्र के निष्कासन का आदेश देने में जेएनयू के आचरण पर चिंता व्यक्त की

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इस छात्र को आपत्तिजनक वीडियो रखने के कारण 2011 में जेएनयू से निष्कासित कर दिया गया था। न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि यदि छात्र अनुरोध करता है तो उसे अपना पाठ्यक्रम सर्वोत्तम तरीके से पूरा करने की अनुमति दी जाए।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक छात्र के निष्कासन को रद्द करते हुए कहा है कि यह चिंता का विषय है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) जैसे प्रमुख संस्थान ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का मजाक उड़ाते हुए उसके खिलाफ पूर्व निर्धारित इरादे से काम किया।

इस छात्र को आपत्तिजनक वीडियो रखने के कारण 2011 में जेएनयू से निष्कासित कर दिया गया था। न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि यदि छात्र अनुरोध करता है तो उसे अपना पाठ्यक्रम सर्वोत्तम तरीके से पूरा करने की अनुमति दी जाए।

याचिकाकर्ता बलबीर चंद मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (एमसीए) पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष का छात्र था। उसे उसके निजी लैपटॉप में कुछ ऐसी आपत्तिजनक सामग्री पाए जाने के बाद फरवरी 2011 में निष्कासित कर दिया गया था, जिससे कथित तौर पर संकेत मिला था कि उसने कुछ छात्रों की रैगिंग की थी।

अदालत ने हाल में एक आदेश में कहा कि कारण बताओ नोटिस और निष्कासन आदेश 24 घंटे के भीतर पारित किया गया था और याचिकाकर्ता को जवाब दाखिल करने का अवसर महज दिखावा था। इसने कहा, ‘‘यह चिंता का विषय है कि जेएनयू जैसे प्रमुख विश्वविद्यालय ने इस तरह से काम किया। चूंकि यह घटना 12 साल पुरानी है, इसलिए मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहता।’’ अदालत ने कहा कि जेएनयू ने जिस तरह से काम किया वह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का मजाक उड़ाना है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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