Modi100: उम्मीदों पर कितने खरे उतर रहे हैं गृह मंत्री अमित शाह

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अभिनय आकाश । Sep 6 2019 1:27PM

शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी और राजनाथ सिंह के बाद जिस तरह उन्होंने तीसरे नंबर पर शपथ ली, उससे लगा था कि राजनाथ सिंह इस बार भी गृहमंत्री का कार्यभार संभालेंगे, लेकिन जब मंत्रालयों का बंटवारा हुआ तो इसने सभी को चौंका दिया।

मोदी सरकार में नंबर 2 की हैसियत मिलने के बाद अमित शाह एकाएक सुर्खियों में आ गए। देश उनके सुरक्षा कवच में है। लीक से हटकर काम करने वाले नेता और बेहतरीन टास्कमास्टर की छवि रही है शाह की। इसलिए माना ये जा रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें गृह मंत्री बनाकर कुछ बड़े मुद्दों पर सख्ती के साफ संकेत दिए। फिर क्या था मोदी के सेनापति शाह ने राजनीति की दिशा बदलने वाले फैसलों की झड़ी लगा दी। अमित शाह को बड़ी जिम्मेदारी देने की अटकलें पहले से ही थीं, लेकिन शायद ही किसी को अंदाजा हो कि उन्हें गृहमंत्रालय जैसा भारी-भरकम महकमा दिया जाएगा वह भी राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर और पुराने नेता को हटाकर। 

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शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी और राजनाथ सिंह के बाद जिस तरह उन्होंने तीसरे नंबर पर शपथ ली, उससे लगा था कि राजनाथ सिंह इस बार भी गृहमंत्री का कार्यभार संभालेंगे, लेकिन जब मंत्रालयों का बंटवारा हुआ तो इसने सभी को चौंका दिया। वो लड़का जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के दूसरे दिग्गज नेताओं के लिए पोस्टर चिपकाता था, आज खुद पार्टी का और देश का पोस्टर बॉय बन चुका है। लोकसभा चुनाव 2019 में अपने सिसायी भाषण में नक्सलवाद, आतंकवाद, माओवाद को समाप्त करने के संकल्प, बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करने के दावे और देश विरोधी गतिविधि करने वालों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने की बात शाह यूं ही नहीं कर रहे थे। ये हुंकार सिर्फ चुनावी नहीं था, ये ललकार सिर्फ चुनावी नहीं थी। अमित शाह के इन भाषणों के पीछे था पूरा एजेंडा जिनके मायने तब समझ आए जब 30 मई को अमित शाह पहली बार मोदी कैबिनेट का हिस्सा हो गए। शपथ के बाद पीएम मोदी ने उन्हें गृह मंत्रालय की कमान सौंपकर यह जता दिया कि मोदी सरकार 2 में उनकी हैसियत नंबर दो की होगी। 

साल 2018 में भाजपा के अध्यक्ष की हैसियत से अमित शाह जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के मौके पर जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे और राष्ट्रवाद के मुद्दे को प्रखरता से उठाते हुए शाह ने यह साफ संकेत दे दिए थे कि भाजपा धारा 370 और आर्टिकल 35 ए को लेकर आर-पार के मूड में है। मोदी सरकार पार्ट-2 के गठन के बाद अमित शाह देश के गृह मंत्री बनते हैं। अमित शाह कुछ अलग तरह के गृह मंत्री हैं और पारंपरिक राजनीति में विश्वास नहीं रखते हैं। जम्मू कश्मीर की समस्या पर वर्तमान सरकार के नजरिए को स्पष्टता से रखते हुए अमित शाह ने सदन में साफ कर दिया कि एकता अखंड और संप्रुभता के सूत्र में भारत को बांधना है और इसमें धारा 370 सबसे बड़ी अड़चन है। अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को टॉप एजेंडे में रखा। दो दिनों के अपने दौरे से लौटने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने धारा 370 को एक अस्थाई व्यवस्था करार दिया था। शाह ने कहा था कि 370 हमारे संविधान का अस्थायी मुद्दा है और ये शेख अब्दुल्ला साहब की अनुमति से ही हुआ है। लोकसभा में अपने पहले संबोधन में गृह मंत्री ने कश्मीर को ही प्रमुख एजेंडे में रखते हुए पहले राष्ट्रपति शासन को 6 महीने तक और बढ़ाने का प्रस्ताव रखा फिर जम्मू-कश्मीर आरक्षण विधेयक पेश करते हुए लोकसभा से पारित करवा लिया। गृहमंत्री बनते ही अमित शाह ने सबसे पहले किसी राज्य का दौरा किया था तो वह था कश्मीर और यह भी शायद पिछले दो-तीन दशकों में पहली बार हुआ था कि भारतीय गृहमंत्री के घाटी दौरे पर कोई बंद आयोजित नहीं किया गया था। ये सब तो शुरूआत की बानगी भर था। अभी तो पूरी पिक्चर बाकी थी। 

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5 अगस्त को राज्यसभा में आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने के ऐलान से चंद मिनट पहले तक किसी को पता नहीं था कि क्या होने वाला है? 1 जून को पद संभालते ही गृह मंत्री अमित शाह देश की राजनीति को नई दिशा और दशा देने वाले फैसले लेने की तैयारी कर चुके थे। जम्मू कश्मीर को लेकर वैसे तो जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने और एक देश एक निशान एक विधान एक संविधान का जिक्र अक्सर होता आया लेकिन उन सपनों को शाह के कमाल ने अंजाम तक पहुंचाया। राज्यसभा में बिल के पास होने के बाद जिस तरह से शाह ने मोदी के सामने झुककर उनका अभिवादन किया और मोदी ने बदले में जिस तरह से शाह की पीठ थपथपाई उससे यह साफ हो गया कि सारी स्किप्ट की पटकथा शाह ने लिखी और उसे बखूबी अंजाम तक भी पहुंचाया। मोदी की आंख, कान और जुबान माने जाने वाले अमित शाह ने यह साबित किया कि वो सियासत के ही नहीं आंतरिक सुरक्षा और देशनीति के भी चाणक्य हैं। ये शाह का कमाल ही था कि पहले फोर्स की मौजूदगी और बॉर्डर पर भारतीय सेना की तैनाती बढ़ाने के साथ ही बारूद की धमकी देने वाली महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला को पहले तो नजरबंद किया फिर हालातों को बिगड़ने देने से बचाने के लिए हिरासत में लिया। 

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कश्मीर के अलावा गृहमंत्री ने आतंकवाद निरोधी कानूनों को सख्त बनाने, जाँच एजेंसियों को और ज्यादा ताकत देने की तैयारी की। संसद के हालिया समाप्त हुए सत्र में सरकार ने दोनों सदनों में विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दिलाने में सफलता अर्जित की। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकवाद रोधी कानून के तहत कट्टरपंथी कश्मीरी अलगाववादी आसिया अंद्राबी के श्रीनगर के बाहरी इलाके में स्थित मकान को जब्त कर लिया। शाह की खासियत है कि वो जिस काम को करने की सोचते हैं उसे तो उन्हें बस करना होता है किसी भी कीमत पर करना होता है। देश की आंतरिक सुरक्षा की बागडोर ऐसे अ’सरदार’ फैसले लेने वाले गृह मंत्री के हाथों में हो तो फिर आम-आवाम भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार रहती है क्योंकि उन्हें पता है कि वो महफूज हैं और देश सब संभाल लेंगे। 

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