मोदी सरकार के पहले 100 दिनों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं से हिन्दुस्तान रहा आहत

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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में असहिष्णुता का मुद्दा जोरों-शोरों से उठाया गया था लेकिन दूसरे कार्यकाल में इस मुद्दे को तवज्जो नहीं मिली।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बनी भाजपा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए हैं। इसी के साथ आज हम बात करेंगे कि बीते हुए इन 100 दिनों में सरकार के समक्ष असहिष्णुता का मुद्दा किन-किन लोगों ने उठाया और बढ़ती भीड़ हिंसा के लिए सरकार ने क्या कुछ किया। आपको याद होगा जब सरकार ने 50 दिन पूरे किए थे तब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने रिपोर्ट कार्ड पेश किया था। जिसमें उन्होंने भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाने की बात की थी लेकिन मौजूदा हालात इससे उलट है। यह तो रही अर्थव्यवस्था की बात लेकिन हम बात कर रहे हैं देश में हिंसा की।

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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में असहिष्णुता का मुद्दा जोरों-शोरों से उठाया गया था लेकिन दूसरे कार्यकाल में इस मुद्दे को तवज्जो नहीं मिली। फिल्म जगत से जुड़ी 49 हस्तियों ने असहिष्णुता के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था। इस पत्र में लिखा गया था कि आम लोगों को भड़काने के लिए जय श्री राम के नाम का इस्तेमाल किया जा रहा है। इतना ही नहीं इन हस्तियों ने पीएम मोदी से एक ऐसा माहौल बनाने की मांग की है, जहां असंतोष को कुचला नहीं जाए और देश एक मजबूत राष्ट्र बने। 

पत्र लिखने वालों में इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा, फिल्मकार श्याम बेनेगल, अनुराग कश्यप और मणि रत्नम समेत अलग-अलग क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियां शामिल हैं। इस पत्र में कहा गया था कि जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 तक धार्मिक पहचान के आधार पर 254 घटनाएं हुईं। इसमें 91 लोगों की मौत हुई जबकि 579 लोग जख्मी हुए। जबकि 2016 में दलितों पर अत्याचार के 840  मामले सामने आए हैं।

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असहिष्णुता का मुद्दा कोई पहली बार नहीं उठा है। साल 2015 में बढ़ती असहिष्णुता के नाम पर पूरे देश में एक मुहिम चली थी और 35 से अधिक लेखकों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था, जबकि पांच अन्य ने अकादमी के अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया था। इससे विरोध प्रदर्शन की एक नई लहर पैदा हो गई थी और अब दूसरे कार्यकाल में विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों ने प्रधानमंत्री से पूछा कि प्रिय प्रधानमंत्री, अपराधियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है ?

आज के समय में आप कभी भी किसी भी दिन का समाचार पत्र उठा लें या फिर समाचार चैनल देख लें। आपको मीडिया के हर एक माध्यम में रोजाना कम से कम एक घटना ऐसी मिलेगी जिसमें भीड़ द्वारा किसी व्यक्ति या फिर महिला को पीटा गया है। चाहे वह बच्चा चोरी के शक में हो या फिर गाड़ी चोरी के... इतना ही नहीं अभी तक भीड़ द्वारा कथित तौर पर पीटे जाने की घटनाओं से दिल्ली अछूती थी लेकिन अब राजधानी भी इसमें शामिल हो गई है। 

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सोशल मीडिया के मायाजाल से लोग इतने ज्यादा ग्रसित हो गए हैं कि वह किसी व्यक्ति की मदद करने से ज्यादा उसका फोटो खींचकर या फिर वीडियो बनाकर अपलोड करने में जुटे रहते हैं। और जब ये तस्वीरें या फिर वीडियो सामने आते है तो इस बात का आभास भी होता है कि ऐसी कोई घटना हमारे आस-पास घटित हुई है। कांग्रेस की यूथ विंग ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट में मॉब लिंचिंग की एक घटना को शेयर किया और लिखा कि सभ्य समाज में कलंक की एक और तस्वीर सामने आई, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर हेडफोन खरीदने को लेकर एक मामूली से झगड़े में चली गई इस युवक की जान। 

कांग्रेस ने इस वीडियो को दिल्ली का बताया लेकिन जब सर्च इंजन गूगल की सहायता से इस वीडियो को खंगाला गया तो पता चला कि यह वीडियो दिल्ली का नहीं बल्कि मेरठ का है। वो भी 29 अगस्त 2019 का। लेकिन सवाल यह है कि आखिर भीड़ इतनी ज्यादा हिंसक क्यों होती जा रही है ? एक वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में सबसे ज्यादा 61 लोगों की मौत हुई। 

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झारखंड को तो प्रधानमंत्री भी नहीं भूल सकते

झारखंड में बाइक चोरी के शक में तबरेज अंसारी नामक युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। इतना ही नहीं भीड़ ने पहले अंसारी से 'जय श्री राम' का नारा लगाने को कहा था। इस मामले ने जब तूल पकड़ा तो सभी विपक्षी नेताओं ने भाजपा सरकार से सवाल पूछा। तब मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी तोड़ी थी। 

प्रधानमंत्री ने कहा था कि इससे उन्हें पीड़ा पहुंची है तथा दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन इसके लिए पूरे झारखंड को दोषी न बनाया जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि झारखंड को मॉब लिंचिंग का अड्डा बताया गया, जो गलत है। युवक की हत्या का दुख मुझे भी है और सबको होना चाहिए। इसी के साथ प्रधानमंत्री ने विपक्ष को ही निशाने पर ले लिया और कहा कि कटघरे में लाकर राजनीति तो कर लेंगे, लेकिन हालात नहीं सुधार पाएंगे। 

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लेकिन क्या प्रधानमंत्री के यह कह देने मात्र से लिंचिंग की घटनाएं रुकी गईं... जवाब आपके सामने है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, राजस्थान, असम, हिमाचल प्रदेश में ऐसी घटनाएं ज्यादा देखने को मिली हैं। 

विपक्षियों ने भी सरकार से पूछा था सवाल

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नाम लिए बिना भी मोदी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से बढ़ रही असहिष्‍णुता, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और कुछ खास समूहों की हिंसक वारदातें और भीड़ हिंसा की प्रवृत्तियां हमारे समाज को नुकसान पहुंचा सकती हैं। 

उन्होंने कहा कि कुछ चलन ऐसे हो गए हैं, जिनसे असहिष्णुता, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और हिंसा बढ़ रही है। ये काम नफरत पैदा करने वाले कुछ संगठन कर रहे हैं। साथ ही भीड़ कानून अपने हाथ में ले रही है, जिससे हमारी राजनीति को नुकसान हो रहा है।

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