महाभियोग प्रस्ताव: अगर सभापति ठुकराते हैं तो विपक्ष के पास क्या होगा विकल्प?

Impeachment Proposal: If the Chairman rejects the Opposition, what will be the option?
[email protected] । Apr 20 2018 6:51PM

देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस अगर सभापति एम वेंकैया नायडू ठुकराते हैं तो नोटिस देने वाले विपक्षी दलों के पास इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय जाने का विकल्प उपलब्ध रहेगा।

नयी दिल्ली। देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस अगर सभापति एम वेंकैया नायडू ठुकराते हैं तो नोटिस देने वाले विपक्षी दलों के पास इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय जाने का विकल्प उपलब्ध रहेगा। सूत्रों के अनुसार राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने वाले कांग्रेस सहित सात दलों ने महाभियोग प्रक्रिया के सभी पहलुओं का विश्लेषण कर आगे की रणनीति तय कर ली है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सभी दल इस मामले को अंजाम तक लेकर जायेंगे। उन्होंने कहा कि सभापति द्वारा नोटिस स्वीकार नहीं करने की स्थिति में उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय जायेंगे। 

उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अनुसार उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग की कार्यवाही संसद में चलती है। किसी भी न्यायाधीश को पद से हटाने के लिये पेश प्रस्ताव दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है। प्रस्ताव पर पहले उस सदन में विचार होता है जिसके सदस्यों द्वारा महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस दिया जाता है। इससे पहले उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। इसे राज्यसभा में पेश करने के लिये कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला नोटिस सभापति को और लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला नोटिस लोकसभा अध्यक्ष को सौंपना होता है।

सभापति द्वारा प्रस्ताव मंजूर होने पर उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति प्रस्ताव में लगाये गये आरोपों की जांच करती है। समिति में दो अन्य सदस्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अथवा कानूनविद हो सकते हैं। समिति की जांच रिपोर्ट प्रस्ताव देने वाले सदन में और फिर दूसरे सदन में पेश की जाती है, जिसे दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है। सभापति अथवा लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव का नोटिस नामंजूर करने पर इसे पेश करने वाले सदस्य इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय में जाने के लिये स्वतंत्र है।

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