Shaurya Path: Chinese Dam on Brahmaputra, Justin Trudeau Resignation, Pak-Afghan Conflict और Russia-Ukraine War से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध का वह वाकया याद कीजिये जब यूक्रेन में एक बड़ा बांध टूट गया था और उससे भारी तबाही हुई थी। उन्होंने कहा कि चीन जो बांध बना रहा है वह हमारे लिये एक वाटर बम की तरह होगा।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले चीनी बांध, कनाडा के प्रधानमंत्री पद से जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे, रूस-यूक्रेन युद्ध और अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार- 

प्रश्न-1. ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले बांध से भारत को क्या खतरा हो सकता है?

उत्तर- तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बनाने की चीन की योजना वाकई चिंताजनक है हालांकि अभी इस परियोजना के संबंध में पूर्ण जानकारी सामने आना बाकी है। उन्होंने कहा कि चीन की ओर से अपनी योजना की घोषणा किए जाने के बाद भारत ने स्पष्ट कह दिया कि वह निगरानी जारी रखेगा और अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक उपाय करेगा। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित बांध के प्रति अपनी पहली प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नयी दिल्ली ने बीजिंग से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि ब्रह्मपुत्र के ऊपरी इलाकों में गतिविधियों से नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों को नुकसान नहीं पहुंचे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध का वह वाकया याद कीजिये जब यूक्रेन में एक बड़ा बांध टूट गया था और उससे भारी तबाही हुई थी। उन्होंने कहा कि चीन जो बांध बना रहा है वह हमारे लिये एक वाटर बम की तरह होगा। उन्होंने कहा कि ऊँचाई पर बना बांध जब टूटेगा तो निचले इलाकों में कैसी तबाही आयेगी इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि जहां यह बांध बन रहा है वहां वैसे भी भूकंप आते ही रहते हैं। उन्होंने कहा कि मान लीजिये कि प्राकृतिक कारणों से या चीन की खराब मंशा से यह बांध टूटता है तो क्या होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि चीन वाटर वार शुरू करने जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीन एक ओर संबंध सुधारने का दिखावा करता है तो दूसरी ओर इस तरह की योजनाएं लाता है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि आशंका जताई जा रही है कि बांध का निर्माण होने से अरुणाचल प्रदेश और असम में पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र इन दो राज्यों से होकर बहती है। उन्होंने कहा कि नदी के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में जल के उपयोग का अधिकार रखने वाले देश के रूप में भारत ने विशेषज्ञ स्तर के साथ-साथ कूटनीतिक माध्यम से चीनी पक्ष के समक्ष उसके क्षेत्र में नदियों पर बड़ी परियोजनाओं के बारे में अपने विचार और चिंताएं लगातार व्यक्त की हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने चीनी पक्ष से आग्रह किया है कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के निचले क्षेत्रों में स्थित देशों के हितों को नदी के प्रवाह के ऊपरी क्षेत्र में गतिविधियों से नुकसान नहीं पहुंचे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन ने गत वर्ष 25 दिसंबर को तिब्बत में भारत से लगी सीमा के निकट ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा बांध निर्मित करने की अपनी योजना की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि इस परियोजना पर 13.7 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत आने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना पारिस्थितिक रूप से नाजुक हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर स्थित है, जहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं। उन्होंने कहा कि बांध को हिमालय पर्वतमाला क्षेत्र के पारिस्थितिकी रूप से नाजुक क्षेत्र में बनाने की योजना है। उन्होंने कहा कि उपलब्ध विवरण के अनुसार, बांध हिमालय के एक बड़े खड्ड में बनाया जाएगा, जहां ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश में प्रवाहित होने के लिए व्यापक रूप से ‘यू टर्न’ लेती है। उन्होंने कहा कि बांध संबंधी चीन की घोषणा ने भारत और बांग्लादेश के लिए चिंताएं पैदा की हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मुद्दे पर कहा है कि सरकार तिब्बत में भारत की सीमा के निकट ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध बनाने की चीन की योजना को लेकर सतर्क है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस बांध के मुद्दे पर चीनी प्रतिक्रिया को देखें तो उसने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की अपनी योजना को लेकर कहा है कि प्रस्तावित परियोजना गहन वैज्ञानिक सत्यापन से गुजर चुकी है और नदी प्रवाह के निचले इलाकों में स्थित भारत और बांग्लादेश पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय के नए प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने बताया है कि यारलुंग सांगपो नदी (ब्रह्मपुत्र नदी का तिब्बती नाम) के निचले क्षेत्र में चीन द्वारा किए जा रहे जलविद्युत परियोजना के निर्माण का गहन वैज्ञानिक सत्यापन किया गया है और इससे निचले हिस्से में स्थित देशों के पारिस्थितिकी पर्यावरण, भूविज्ञान और जल संसाधनों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जियाकुन ने कहा है कि यह कुछ हद तक आपदा की रोकथाम और जोखिम कम करने तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में अनुकूल कदम होगा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत ने चीनी बांध पर अपनी चिंताएं सार्वजनिक तौर पर भी व्यक्त की हैं और भारत की यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुलिवन के साथ भारतीय अधिकारियों की वार्ता में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। उन्होंने कहा कि दिल्ली के दौरे पर आए सुलिवन ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बातचीत की और जो बाइडन प्रशासन के तहत पिछले चार वर्षों में भारत-अमेरिका वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की प्रगति की व्यापक समीक्षा की, इसी दौरान चीनी बांध का मुद्दा भी उठा था।

प्रश्न-2. कनाडा के प्रधानमंत्री पद से जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा भारत के लिए क्या मायने रखता है?

उत्तर- जस्टिन ट्रूडो के कनाडा के प्रधानमंत्री पद से हटने के साथ उस देश का राजनीतिक भविष्य एक चौराहे पर आ गया है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो का इस्तीफा उनकी मनमानी नीतियों वाले लगभग एक दशक पुराने कार्यकाल के अंत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि कनाडा की नई सरकार नीतिगत बदलावों के साथ-साथ आव्रजन प्रणाली में आमूल-चूल सुधार करेगी। उन्होंने कहा कि ट्रूडो के इस्तीफे पर भारतीय कनाडाई लोगों की प्रतिक्रिया दर्शा रही है कि सब इस पल के इंतजार में थे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जस्टिन ट्रूडो सरकार की नीतियां आर्थिक झटकों के प्रभाव से लोगों को बचाने में विफल रही हैं। उन्होंने कहा कि साथ ही ट्रूडो की आप्रवासन नीतियों की भी खूब आलोचना हुई। उन्होंने कहा कि ट्रूडो का इस्तीफा भारत-कनाडा संबंधों के भविष्य पर भी सवाल उठाता है, जो ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि इस स्थिति से कनाडा में रह रहे भारतीय मूल के लोग और भारत में रह रहे उनके परिजन बेहद चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि कनाडा में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं और अभी जो नया प्रधानमंत्री बनेगा वह अंतरिम सरकार चलायेगा इसलिए वह कोई बड़ा बदलाव ले आयेगा इसकी संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि लेकिन ट्रूडो के जाने से उम्मीद है कि खालिस्तानी तत्व जो वहां राजनीतिक समर्थन हासिल कर रहे थे उस पर अब कुछ लगाम लग सकती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ट्रूडो के सितंबर 2023 में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय संलिप्तता के आरोप के बाद से नई दिल्ली और ओटावा के बीच तनाव बढ़ा है। उन्होंने कहा कि भारत ने आरोप को "बेतुका" बताते हुए खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि साथ ही ट्रूडो के इस दावे की कि भारत आपराधिक गतिविधियों को प्रायोजित करता है, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना हुई है। उन्होंने कहा कि वहां की सत्तारुढ़ पार्टी के भी कई नेताओं ने समय-समय पर ट्रूडो सरकार के भारत विरोधी रुख पर आपत्ति जताई थी लेकिन कनाडा के प्रधानमंत्री ने उनको तवज्जो नहीं दी और फाइव आइज देशों को भी भारत के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि ना तो ट्रूडो फाइव आइज का साथ ले पाये ना ही उन्हें अपने दल का पूर्ण समर्थन मिल पाया और आखिरकार वह घड़ी आ गयी जब उन्हें प्रधानमंत्री और पार्टी नेता पद से अपने इस्तीफे का ऐलान करना पड़ा।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नई सरकार को कई मामलों में सुधार करने की जरूरत है लेकिन इसकी शुरुआत उसे अपने घर से करनी होगी। उन्होंने कहा कि यह साबित हो चुका है कि खालिस्तानी तत्वों को समर्थन देकर और उनका समर्थन लेकर जस्टिन ट्रूडो अपने आप को भस्मासुर साबित कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति पद को संभालने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह कनाडा को चेतावनियां दी हैं उसके चलते भी जस्टिन ट्रूडो सरकार के दिन लद गये थे। उन्होंने कहा कि अमेरिका और कनाडा के संबंध हमेशा से बहुत शानदार रहे हैं लेकिन ट्रूडो की नीतियों के चलते यह खराब होते गये।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह कनाडा को अमेरिका का भाग बनाने के लिए ‘‘आर्थिक बल’’ का प्रयोग करेंगे। उन्होंने कहा कि फ्लोरिडा के ‘मार-ए-लागो’ में पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि क्या वह कनाडा को देश के अधीन करने और उसे हासिल करने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे हैं, तो इस पर ट्रंप ने कहा, ‘‘नहीं।’’ उन्होंने कहा कि पिछले कुछ हफ्तों से ट्रंप ने जोर देकर कहा है कि वह कनाडा को अमेरिका का हिस्सा और उसका 51वां राज्य बनाना चाहते हैं। कई बार वे ट्रूडो का मजाक उड़ाते हुए उन्हें कनाडा का गवर्नर कह चुके हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने कहा है कि मैं आर्थिक बल का उपयोग करूंगा क्योंकि कनाडा और अमेरिका के लिए यह वास्तव में एक बड़ी बात होगी। आप उस कृत्रिम रूप से खींची गई रेखा से छुटकारा पा सकते हैं और आप देख सकते हैं कि यह कैसी दिखती है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बहुत बेहतर होगा। मत भूलिए, हम मूल रूप से कनाडा की रक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने कहा है कि वह कनाडा के लोगों से प्यार करते हैं, लेकिन अमेरिका अब कनाडा को वित्तीय सहायता नहीं दे सकता। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने कहा है कि कनाडा के लोग हमें जो लाखों कारें भेजते हैं उससे वे बहुत पैसा कमाते हैं। वे हमें बहुत सी अन्य चीजें भेजते हैं जिनकी हमें जरूरत नहीं है। हमें उनकी कारों की जरूरत नहीं है और हमें अन्य उत्पादों की भी जरूरत नहीं है। हमें उनके दूध की जरूरत नहीं है। हमारे पास बहुत सारा दूध है। हमारे पास बहुत सारी चीजें हैं और हमें इनमें से किसी की भी जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि ट्रंप के इस बयान से भी कनाडा के लोगों में दहशत पैदा हुई है कि यदि अमेरिका ने सामान खरीदना बंद कर दिया तो वहां के उद्योगों का क्या होगा। उन्होंने कहा कि कनाडा में महंगाई और बेरोजगार पहले ही चरम पर है और अमेरिका से बिगड़ते रिश्तों के चलते स्थिति के और बिगड़ने के आसार हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह सारी स्थितियों को ट्रूडो संभालने में विफल रहे उसके चलते उनकी लोकप्रियता निचले स्तर पर पहुँच गयी थी और वह एक और चुनाव में नेतृत्व करने का जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं थे इसलिए उन्होंने पद छोड़ दिया।

प्रश्न-3. रूस-यूक्रेन युद्ध में नया अपडेट क्या है? क्यों यूक्रेनी राष्ट्रपति अमेरिका से सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं?

उत्तर- यूक्रेन जानता है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिका सहित सभी बड़ी ताकतों ने यह आकलन लगा लिया है कि आज की स्थिति में भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन युद्ध को लंबे समय तक खींचने में सक्षम हैं और रूस पर लगाये गये तमाम तरह के प्रतिबंधों से मास्को पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के सैनिक जिस तरह पोस्टों से भाग रहे हैं और उनके पास हथियार तथा पैसे खत्म हो रहे हैं उसको देखते हुए राष्ट्रपति वोलोदमीर जेलेंस्की अमेरिका से सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन डोनाल्ड ट्रंप फैसला कर चुके हैं कि अमेरिकी करदाताओं के पैसों को बेकार खर्च नहीं होने देंगे इसलिए यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने की बजाय वह इस युद्ध को खत्म करवाने पर जोर देंगे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां युद्ध क्षेत्र के ताजा हालात की बात है तो कीव ने कहा है कि उसकी सेनाएं अभी भी यूक्रेन के पूर्व में एक रणनीतिक शहर कुराखोव में सक्रिय रूप से लड़ रही हैं। हालांकि रूस ने इस पर कब्जे की घोषणा कर दी है। मॉस्को ने "महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक हब" पर कब्जे की सराहना करते हुए कहा है कि इससे रूसी सेना पूर्वी डोनेट्स्क क्षेत्र के बाकी हिस्सों पर "त्वरित गति से" कब्ज़ा करने में सक्षम होगी। उन्होंने कहा कि यूक्रेन ने यह भी कहा है कि उसकी सेनाएं रूस के पश्चिमी कुर्स्क क्षेत्र में "नई आक्रामक कार्रवाई शुरू कर रही हैं"। उन्होंने कहा कि कीव में यूक्रेनी जनरल स्टाफ के अनुसार पिछले 24 घंटों में 218 झड़पें हुई हैं। अकेले कुर्स्क क्षेत्र में सेना ने 94 रूसी हमलों को नाकाम कर दिया है। उन्होंने कहा कि वहीं रूस के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि उसके सैनिकों ने कुर्स्क क्षेत्र में यूक्रेनी इकाइयों पर हमले किए हैं।

प्रश्न-4. अफगानिस्तान पर पाकिस्तान ने हवाई हमले किये, इस मुद्दे पर भारत ने अफगानिस्तान का पक्ष लेते हुए कहा कि अपनी आंतरिक विफलताओं के लिए पड़ोसियों को दोष देना पाकिस्तान की पुरानी आदत है। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- पिछले सप्ताह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच शत्रुता में तीव्र वृद्धि के परिणामस्वरूप अफगानिस्तान में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की ओर से किये गये हमले में दर्जनों नागरिकों की मौत हो गई है। उन्होंने कहा कि सीमा पार लड़ाई का यह नवीनतम दौर है। इसके बारे में पाकिस्तान द्वारा जोर देकर कहा गया है कि यह सशस्त्र समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा किये गये हमलों का जवाब है। उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद ने कहा है कि टीटीपी को अफगानिस्तान में शरण मिल गई है इसलिए यह हमला किया गया। उन्होंने कहा कि टीटीपी का हालिया हमला 21 दिसंबर को हुआ था जिसमें कम से कम 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत में मंगलवार को हवाई हमले किए थे। उन्होंने कहा कि यह इलाका पाकिस्तान के आदिवासी जिले दक्षिण वजीरिस्तान की सीमा से लगता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी जेट विमानों ने उन ठिकानों को निशाना बनाया जहां टीटीपी लड़ाकों ने शरण ली थी। हालाँकि, अगस्त 2021 से सत्ता में मौजूद अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान पर हवाई हमलों के जरिये महिलाओं और बच्चों सहित 46 नागरिकों की हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अफगान सरकार ने "प्रतिशोध" का वादा किया और उसके बाद अफगान तालिबान बलों ने दोनों देशों के बीच विवादित सीमा डूरंड रेखा के पास "कई बिंदुओं" को निशाना बनाया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि अभी दोनों ओर से बंदूकें शांत हैं लेकिन सवाल खड़ा हुआ है कि दशकों पुराने, तनावपूर्ण और नाजुक रिश्ते में उलझे इन दोनों पड़ोसियों के लिए आगे का रास्ता क्या है? उन्होंने कहा कि देखा जाये तो दशकों तक पाकिस्तान को अफगान तालिबान का संरक्षक माना जाता था, जो पहली बार 1996 में सत्ता में आया था। उन्होंने कहा कि ऐसा माना जाता था कि पाकिस्तान तालिबान समूह पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है और उसे आश्रय, धन और राजनयिक समर्थन प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि 9/11 के हमले के बाद अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान पर हमले के बाद कई अफगान तालिबान नेताओं ने पाकिस्तान में शरण मांगी थी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में अमेरिकी ड्रोन हमलों के बीच टीटीपी, जिसे अक्सर पाकिस्तान तालिबान कहा जाता है, वह उभरा। उन्होंने कहा कि अफगान तालिबान के साथ वैचारिक संबंध साझा करने के बावजूद टीटीपी ने पाकिस्तान के खिलाफ एक हिंसक अभियान चलाया। जवाब में पाकिस्तानी सेना ने टीटीपी को खत्म करने के लिए कई अभियान चलाए हैं और इसके कई नेताओं को अफगानिस्तान में धकेल दिया है। उन्होंने कहा कि जब 2021 में अफगान तालिबान ने काबुल पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया तो पाकिस्तान को टीटीपी की गतिविधि पर अंकुश लगाने के लिए तालिबान से काफी उम्मीद थी। हालाँकि, तब से पाकिस्तान के भीतर हमलों में वृद्धि से पता चलता है कि उसके अरमानों पर पानी फिर गया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अफगान तालिबान को खुरासान प्रांत में आईएसआईएल (आईएसआईएस) से संबद्ध अन्य समूहों से महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अफगान तालिबान को यह तय करना होगा कि टीटीपी का समर्थन करना है या पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देनी है। उन्होंने कहा कि फिलहाल मुझे नहीं लगता कि कोई भी पक्ष स्थिति को खराब करना चाहता है। उन्होंने कहा कि वैसे यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में टीटीपी के ठिकानों को निशाना बनाया है। इसी तरह के हवाई हमले मार्च में भी हुए थे लेकिन तब अफगानिस्तान सरकार की ओर से कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं हुई थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जनवरी में पाकिस्तान और ईरान ने एक-दूसरे के सीमा क्षेत्रों पर बमबारी की थी। लेकिन फिर बाद में सब शांत हो गया था क्योंकि संघर्ष को किसी भी बड़े स्तर पर ले जाने का जोखिम कोई नहीं उठा सकता।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारत की प्रतिक्रिया की बात है तो भारत ने हमेशा आम नागरिकों पर हमले के विरोध में आवाज उठाई है। अफगानिस्तान और भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। भारत ने वहां पर कई विकास परियोजनाएं पूरी की हैं और कई वर्तमान में चल भी रही हैं। भारत हमेशा से ही पाकिस्तान के दुष्प्रचार का पीड़ित भी रहा है इसलिए जब अफगानिस्तान के खिलाफ कार्रवाई हुई तो दिल्ली ने कहा कि पड़ोसियों को दोष देना पाकिस्तान की पुरानी आदत है।

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