Shaurya Path: Israel-Hamas Conflict और Russia-Ukraine War से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो इज़रायली-फ़िलिस्तीनी संघर्ष का इतिहास 19वीं सदी के उत्तरार्ध से मिलता है जब फ़िलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए स्वशासित क्षेत्र स्थापित करने की मांग की गयी थी।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह इजराइल और हमास के बीच छिड़ी खूनी जंग और रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात से जुड़े मुद्दों पर हमारे ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न- 1. इजरायल और फिलिस्तीन में गाजा को लेकर आखिर विवाद क्यों है? इसमें कौन-कौन से देश शामिल हैं?

उत्तर- जिस तरह ब्रिटेन ने भारत में बांटो और राज करो की रणनीति अपनाई थी वैसे ही रणनीति उसने वहां भी अपनाई थी। उन्होंने कहा कि आज जैसे संयुक्त राष्ट्र है उसी तरह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन की स्थापना हुई थी। उसमें शामिल ब्रिटेन को यह जिम्मेदारी दी गयी थी कि वह यहूदियों की समस्याओं का हल करे लेकिन ब्रिटेन ने हल निकालते समय बांटो और राज करो की नीति अपनाई थी जिसे वह क्षेत्र आज तक भुगत रहा है। उन्होंने कहा कि जैसे भारत के बंटवारे से पहले हिंदू-मुस्लिम और सिख मिलकर रहते थे उसी तरह वहां भी पहले यहूदी, मुस्लिम और ईसाई मिलकर रहते थे लेकिन ब्रिटेन ने समस्या खड़ी करके सबको बांट दिया था। उन्होंने कहा कि समुदाय के आधार पर बंटवारा तो गलत था ही साथ ही क्षेत्र को बांटते समय बड़ा भेदभाव किया गया था जिसकी वजह से वहां हमेशा तनाव की स्थिति बनी रहती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो इज़रायली-फ़िलिस्तीनी संघर्ष का इतिहास 19वीं सदी के उत्तरार्ध से मिलता है जब फ़िलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए स्वशासित क्षेत्र स्थापित करने की मांग की गयी थी। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी 1917 की बाल्फोर घोषणा ने फिलिस्तीन में एक यहूदी मातृभूमि के विचार का समर्थन किया, जिसके कारण इस क्षेत्र में यहूदी प्रवासियों की आमद हुई। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध और नरसंहार के बाद फिलिस्तीन में एक यहूदी राज्य की स्थापना के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ गया था जिसके परिणामस्वरूप 1948 में इज़राइल का निर्माण हुआ।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इज़राइल की स्थापना और उसके बाद तथा उससे पहले हुए युद्ध के कारण हजारों फिलिस्तीनियों का विस्थापन हुआ जिससे बड़ी संख्या में लोग शरणार्थी बन गए। उन्होंने कहा कि इस वजह से इज़राइल और फिलिस्तीनी लोगों के बीच दशकों से संघर्ष चल रहा है। उन्होंने कहा कि हमास के साथ जो इजराइल की इस समय लड़ाई चल रही है वह फिलस्तीन के साथ एक तरह से आठवीं लड़ाई है। उन्होंने कहा कि पहली लड़ाई 1948-49 में ही हो गयी थी, उसके बाद 1956 में दो लड़ाईयां हुईं, फिर 1967 में एक लड़ाई हुई, उसके बाद 1973 में एक बड़ा युद्ध हुआ, उसके बाद 1982 में तथा 2006 में युद्ध हुआ और अब 2023 में भी युद्ध हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सीमा पर झड़पें तो लगातार चलती ही रहती हैं।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में कई शांति वार्ताएँ हुई हैं, लेकिन एक स्थायी शांति समझौता अब तक नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि शांति स्थापित होने की राह में कई बाधाएं बनी हुई हैं जिनमें वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों का मुद्दा, गाजा पट्टी का नियंत्रण और यरूशलम की स्थिति शामिल है।

प्रश्न-2. हमास इतने बड़े स्तर पर कैसे योजना बना कर इजरायल पर इतना बड़ा व क्रूर आक्रमण करने में सफल रहा तथा बड़ी संख्या में इजराइलियों को बंदी भी बना लिया? आखिर हमास है कौन और इसकी विचारधारा क्या है?

उत्तर- यहां हमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के उस बयान को देखना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि फलस्तीनी आतंकवादी समूह हमास आतंकवादी संगठन अल कायदा से भी बदतर है। बाइडन ने कहा है कि इनके मुकाबले तो अल कायदा भी कुछ ठीक लगता है। उन्होंने कहा कि यह बयान दर्शाता है कि हमास संगठन कितना भयावह है। उन्होंने कहा कि जहां तक हमास की बात है तो इसका गठन 1987 के अंत में हुए पहले फिलिस्तीनी विद्रोह की शुरुआत में हुआ था। इसकी जड़ें मुस्लिम ब्रदरहुड की फ़िलिस्तीनी शाखा में हैं और इसे फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों के अंदर एक मजबूत सामाजिक-राजनीतिक संरचना का समर्थन भी मिला हुआ है। हमास समूह का उद्देश्य इज़राइल के स्थान पर एक इस्लामिक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करना है। हमास समूह फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन यानि पीएलओ और इज़राइल के बीच किए गए किसी समझौते को नहीं मानता है। हम आपको यह भी बता दें कि हमास की ताकत गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के इलाकों तक ही केंद्रित है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमास की सैन्य शाखा को इज़ अल-दीन अल-क़सम ब्रिगेड के नाम से जाना जाता है जिसने 1990 के दशक से इज़राइल और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में कई इज़राइल विरोधी हमले किए हैं। इन हमलों में इज़रायली नागरिक ठिकानों पर बड़े पैमाने पर बमबारी, छोटे हथियारों से हमले, सड़क किनारे विस्फोटक और रॉकेट से हमले शामिल हैं। हमास समूह ने 2006 की शुरुआत में फिलिस्तीनी क्षेत्रों में स्थनीय चुनाव भी जीते, जिससे फिलिस्तीनी प्राधिकरण पर धर्मनिरपेक्ष फतह पार्टी की पकड़ समाप्त हो गई थी। देखा जाये तो हमास ने शुरू से ही इजराइल के खिलाफ हिंसक प्रतिरोध के अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा भर्ती अभियानों को प्राथमिकता दी और लड़ाकों को प्रशिक्षण देने के लिए बड़े केंद्र भी स्थापित किये। हमास ने कई बार युद्धविराम की घोषणा भी की है लेकिन इस समय का उपयोग उसने हमेशा अपनी ताकत बढ़ाने और इजराइल पर नये सिरे से हमले करने में किया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक हमास की विचारधारा की बात है तो यह इस्लामवादी मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रभावित है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम ब्रदरहुड़ से जुड़े कार्यकर्ताओं ने दान, क्लीनिक और स्कूलों का एक नेटवर्क स्थापित किया और 1967 में चले छह-दिवसीय युद्ध के बाद इज़राइल के कब्जे वाले क्षेत्रों (गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक) में सक्रिय हो गए। गाजा में वह लोग कई मस्जिदों में सक्रिय थे, जबकि वेस्ट बैंक में उनकी गतिविधियाँ आम तौर पर विश्वविद्यालयों तक ही सीमित थीं। इन क्षेत्रों में मुस्लिम ब्रदरहुड की गतिविधियाँ आम तौर पर अहिंसक थीं, लेकिन कब्जे वाले क्षेत्रों में कई छोटे समूहों ने इज़राइल के खिलाफ जिहाद, या पवित्र युद्ध का आह्वान करना शुरू कर दिया था। दिसंबर 1987 में इजरायली कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनी इंतिफादा यानि विद्रोह की शुरुआत में हमास की स्थापना मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्यों और धार्मिक गुटों द्वारा की गई थी। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमास ने अपने 1988 के चार्टर में कहा था कि फिलिस्तीन एक इस्लामी मातृभूमि है जिसे कभी भी गैर-मुसलमानों को नहीं सौंपा जा सकता है और इज़राइल से फिलिस्तीन का नियंत्रण छीनने के लिए पवित्र युद्ध छेड़ना फिलिस्तीनी मुसलमानों के लिए एक धार्मिक कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि हमास के इस सिद्धांत ने इसे इजराइल के साथ हमेशा के लिए संघर्ष की स्थिति में ला दिया। 

प्रश्न-3. इजरायल ने हमास का नामोनिशान मिटाने की कसम खा ली है लेकिन इससे गाजा में बड़ा संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में गाजा का भविष्य क्या नजर आता है और गाजा की अर्थव्यवस्था आखिर चलती कैसे है? 

उत्तर- देखा जाये तो पूरा गाजा लगभग फिलाडेल्फिया के आकार का है और उसे अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने और विकसित करने के लिए विभिन्न व्यवसायों और देशों के साथ व्यापार की आवश्यकता है। लेकिन गाजा काफी हद तक विदेशी सहायता पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि यह आंशिक रूप से हमास के राजनीतिक सत्ता में आने के एक साल बाद, 2007 में इज़राइल द्वारा गाजा के आसपास स्थायी हवाई, भूमि और समुद्री नाकाबंदी स्थापित करने का परिणाम है। उन्होंने कहा कि मिस्र, जिसकी दक्षिणी सीमा गाजा से लगती है, वह भी एक चौकी की निगरानी करता है जो विशेष रूप से लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाती है। इज़राइल ने लगभग 17,000 गाजा निवासियों को इज़राइल में प्रवेश करने और काम करने की अनुमति दी है, गाजा में लोग जिस भोजन, ईंधन और चिकित्सा आपूर्ति का उपयोग करते हैं वह पहले इज़राइल से होकर जाती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इज़राइल गाजा के साथ दो चौकियों को नियंत्रित करता है, जो लोगों और ट्रकों के प्रवेश और निकास दोनों की निगरानी करते हैं। इज़राइल गाजा में आने वाली सामग्रियों के प्रकार और मात्रा को सीमित करता है। इसके अलावा नाकेबंदी आम तौर पर उन गाज़ावासियों की इज़राइल में आवाजाही को प्रतिबंधित करती है जिनके पास कार्य परमिट या विशेष मंजूरी नहीं होती है- उदाहरण के लिए चिकित्सा उद्देश्यों से प्रवेश करने वालों को। 7 अक्टूबर को 20 इजरायली कस्बों और कई सैन्य ठिकानों पर हमास के अचानक हमले के बाद से नाकाबंदी के माध्यम से इजरायल के प्रतिबंध तेज हो गए, जिसके बाद इजरायल ने गाजा में व्यापक नाकाबंदी की घोषणा करते हुए सभी खाद्य, ईंधन और चिकित्सा आपूर्ति को क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वेस्ट बैंक और गाजा के फलस्तीनी परिक्षेत्र- दोनों की छोटी अर्थव्यवस्थाएं हैं जो हर साल 6.6 अरब अमेरिकी डॉलर के बड़े घाटे में चलती हैं, क्योंकि वह जितना सामान आयात करते हैं, उसका मूल्य उन वस्तुओं से कहीं अधिक होता है, जिसका वह उत्पादन करते हैं और अन्यत्र बेचते हैं। 2020 में 53 प्रतिशत से अधिक गाजा निवासियों को गरीबी रेखा से नीचे माना गया था और लगभग 77 प्रतिशत गाजा परिवारों को संयुक्त राष्ट्र और अन्य समूहों से किसी न किसी रूप में सहायता मिलती है, जिसमें ज्यादातर नकदी या भोजन के रूप में थी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा की कमजोर अर्थव्यवस्था के कई जटिल कारण है, लेकिन सबसे बड़ा कारण नाकाबंदी और इससे पैदा होने वाला आर्थिक और व्यापारिक अलगाव है। देखा जाये तो औसत गाजावासी के लिए, नाकाबंदी के कई व्यावहारिक प्रभाव हैं, जिनमें लोगों की भोजन प्राप्त करने की क्षमता भी शामिल है। गाजा में लगभग 64 प्रतिशत लोगों को खाद्य असुरक्षित माना जाता है, जिसका अर्थ है कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन तक पहुंच नहीं है। गाजा के लिए अपनी सीमाओं के भीतर भोजन का उत्पादन करना कठिन है। इसका एक कारण यह है कि 2008 में और फिर 2018 में इजरायली हवाई हमलों ने गाजा के एकमात्र बिजली उत्पादन संयंत्र और मुख्य सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र को नुकसान पहुंचाया था। इन हमलों के परिणामस्वरूप जमीन और पानी में सीवेज का कचरा फैल गया, खेत और खाद्य फसलें नष्ट हो गईं और समुद्र में मछलियों के जीवन को भी खतरा पैदा हो गया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा की कमजोर अर्थव्यवस्था और नाकाबंदी के कारण अलगाव का मतलब है कि यह निवासियों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। गाजा में इन सहायता समूहों में सबसे बड़ा फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी है- जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के रूप में भी जाना जाता है। आज, यूएनआरडब्ल्यूए हमास के बाद गाजा में दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है। यह जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, वेस्ट बैंक और अन्य स्थानों में रहने वाले फलस्तीनी शरणार्थियों के रूप में पंजीकृत 30 लाख अन्य लोगों के अलावा, गाजा में लोगों के लिए शिक्षा, भोजन सहायता और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का बड़ा हिस्सा प्रदान करता है। यूएनआरडब्ल्यूए अकेले गाजा में 284 स्कूलों का नेटवर्क चलाता है और उन्हें धन देता है, जिसमें 9,000 से अधिक स्थानीय लोगों को स्टाफ के रूप में नियुक्त किया जाता है और हर साल 294,000 से अधिक बच्चों को शिक्षित किया जाता है। यूएनआरडब्ल्यूए गाजा में 22 अस्पताल चलाता है जिसमें लगभग 1,000 स्वास्थ्य कर्मचारी कार्यरत हैं और प्रति वर्ष 33 लाख मरीज आते हैं। वर्तमान युद्ध जैसे संकट के समय में इसके स्कूलों को मानवीय आश्रय स्थलों में बदल दिया जाता है। लोग साफ पानी, भोजन, गद्दे और कंबल, शॉवर और अन्य सामान के लिए वहां जा सकते हैं। गाजा में अपने घरों से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या पिछले कुछ दिनों में तेजी से बढ़ी है। इनमें से दो-तिहाई से अधिक लोग यूएनआरडब्ल्यूए स्कूलों में रह रहे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका ऐतिहासिक रूप से यूएनआरडब्ल्यूए का सबसे बड़ा वित्तपोषक रहा है। अमेरिका ने अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक फ़लस्तीनियों को 50 करोड़ अमरीकी डालर से अधिक दिया, जिसमें यूएनआरडब्ल्यूए को दिए गए 41 करोड़ 70 लाख अमरीकी डालर से अधिक शामिल हैं। विभिन्न सरकारों के समय में यूएनआरडब्ल्यूए को अमेरिकी समर्थन में उतार-चढ़ाव आया है। वेस्ट बैंक और गाजा को कुल अमेरिकी सहायता 2009 में एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई थी जब इज़राइल ने क्षेत्र को सील कर दिया था। 2013 में फिर से वार्षिक योगदान एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था जब पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने इज़राइल और हमास के बीच शांति वार्ता को फिर से शुरू करने में मदद की। 2018 में, ट्रम्प प्रशासन ने यूएनआरडब्ल्यूए को आमतौर पर अमेरिका द्वारा दी जाने वाली लगभग सारी धनराशि में कटौती कर दी थी जो संगठन के कुल बजट का लगभग 30 प्रतिशत था। इसके बाद बाइडेन प्रशासन ने 2021 में यूएनआरडब्ल्यूए और फलस्तीनियों की मदद करने वाले अन्य संगठनों को आर्थिक सहायता बहाल कर दी थी।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस समय गाजा का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है क्योंकि इजराइल ने उत्तरी क्षेत्र को खाली करने के लिए स्थानीय जनता को आदेश दिया है। इससे एक बड़ा विस्थापन संकट खड़ा होने वाला है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहायता समूह चेतावनी दे रहे हैं कि वे गाजा पट्टी में लोगों को भोजन और अन्य बुनियादी सेवाएं नहीं दे पा रहे हैं जिससे "गंभीर" मानवीय संकट बदतर होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सहायता समूह भी अब गाजा में उसी समस्या का सामना कर रहे हैं जिसका स्थानीय निवासियों को लगभग 16 वर्षों से करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि 16 बरसों से लागू यह नाकाबंदी उस भोजन और ईंधन पर लागू नहीं होती थी जो अंतरराष्ट्रीय सहायता समूह गाजा में लाते थे लेकिन अब, यह उस पर भी लागू होती है जिससे संकट बढ़ गया है।

प्रश्न-4. इजरायल की सैन्य क्षमता व खुफिया एजेंसी मोसाद की ताकत और बुद्धिमता दुनिया भर की एजेंसियों में शीर्ष पर मानी जाती है। इसके बावजूद ऐसी चूक कैसे हो गयी? 

उत्तर- इजराइल के दक्षिणी हिस्सों में गाजा पट्टी में शासित चरमपंथी समूह हमास की ओर से किया गया हमला इजराइली खुफिया एजेंसियों की ‘जबरदस्त विफलता’’ का नतीजा है। इजराइल को हमेशा अपनी खुफिया एजेंसियों, घरेलू इकाई शिन बेट और विशेष रूप से अपनी बाहरी जासूसी एजेंसी मोसाद पर गर्व रहा है, लेकिन इस हमले से उसकी ‘खुफिया विफलता’ दिखाई पड़ती है। इजराइल, ईरान का मुकाबला करने और इस्लामिक गणराज्य के परमाणु कार्यक्रम को विफल करने के प्रयासों में इतना व्यस्त हो गया कि उसने अपने ही निकट स्थित क्षेत्र की अनदेखी कर दी। इजराइल ने हाल में हमास के साथ संघर्ष विराम पर सहमति व्यक्त की थी, इसको देखकर लगता है कि राजनीति की घरेलू बाधाओं के कारण हमास की चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया गया। इसके अलावा यह भी लगता है कि सरकार की न्यायिक सुधार योजना के मद्देनजर इजराइल के भीतर आंतरिक विभाजन भी इस हमले के लिए कहीं ना कहीं जिम्मेदार है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इजराइली सरकार अपनी खुफिया एजेंसी की चूक के कारणों की पहचान कर कमियों को दूर करेगी।

प्रश्न-5. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? साथ ही आखिर क्यों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन फिलस्तीन के साथ खड़े हो गये और क्यों यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर जेलेंस्की इजराइल का समर्थन कर रहे हैं? 

उत्तर- माना जा रहा है कि यह सारा खेल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर से खेला गया है। उन्होंने कहा कि अब तक यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका और उसके सहयोगी नाटो देश चट्टान की तरह खड़े रहे जिसके चलते रूस को काफी परेशानी उठानी पड़ी। उन्होंने कहा कि लेकिन इजराइल और हमास के बीच संघर्ष शुरू हो जाने के चलते रूस को अब कुछ राहत मिलने की उम्मीद है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल और हमास के बीच युद्ध शुरू होने से रूस को राहत इसलिए मिली है क्योंकि इजराइल के समर्थन में जिस तरह अमेरिका खुल कर खड़ा हुआ है और उसे हथियार मुहैया करा रहा है उससे अमेरिका दोतरफा लड़ाई में उलझ गया है। उन्होंने कहा कि एक ओर यूक्रेन में अमेरिका सबसे बड़ा मददगार बना हुआ है तो यही भूमिका अब वह इजराइल में भी निभायेगा, इस तरह दो तरफ वह पूरी ध्यान नहीं दे पायेगा और जाहिर तौर पर अब उसकी प्राथमिकता इजराइल ही होगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा इजराइल और हमास के बीच युद्ध होने से जिस तरह नाटो देश बिखरे हैं वह भी पुतिन के लिए बड़ी राहत की बात है। उन्होंने कहा कि फिलस्तीन और इजराइल के समर्थन को लेकर नाटो देशों के मतभेद रूस-यूक्रेन युद्ध पर बड़ा असर डालने वाले हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा यह रिपोर्टें भी हैं कि हमास के पास नाटो देशों में बने हथियार मिले हैं। उन्होंने कहा कि इस खबर से यह अंदेशा उत्पन्न होता है कि संभवतः रूस ने यूक्रेन को नाटो से मिले जो हथियार जब्त किये थे उन्हें ईरान के जरिये हमास को भिजवाया गया है। उन्होंने कहा कि जहां तक यूक्रेनी राष्ट्रपति के इजराइल के समर्थन में खड़े होने की बात है तो इसका बड़ा कारण यह भी है कि वह देख रहे हैं कि पश्चिमी देश इजराइल के साथ खड़े हैं। इस समय यूक्रेन को सबसे ज्यादा आर्थिक और सैन्य मदद पश्चिमी देश ही दे रहे हैं, ऐसे में जेलेंस्की इजराइल का विरोध कर पश्चिमी देशों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहेंगे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक रूस-यूक्रेन संघर्ष की ताजा स्थिति की बात है तो रूस ने प्रमुख पूर्वी यूक्रेनी शहर अवदीवका पर अपने हमले को आगे बढ़ाना जारी रखा है। उन्होंने कहा कि खुद यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों ने कहा है कि रूस ने बड़ी संख्या में सैनिकों और उपकरणों को अवदीवका में फिर से तैनात किया है। रूसी सेना ने भी कहा है कि उसने अवदीवका के आसपास के बाहरी इलाके में अपनी स्थिति में सुधार किया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, मध्य यूक्रेनी क्षेत्र निप्रॉपेट्रोस के निकोपोल शहर में एक स्कूल पर रूसी मिसाइल के हमले में कम से कम चार लोगों के मारे जाने की खबर है। उन्होंने कहा कि आंतरिक मंत्री इहोर क्लिमेंको ने हमले का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर साझा किया है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (एसबीयू) ने ह्रोज़ा के दो पूर्व निवासियों पर मिसाइल हमले में मदद करने का आरोप लगाया है जिसमें पिछले सप्ताह गांव में सैनिकों की उपस्थिति में लगभग 55 लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि वह लोग रूसियों के लिए तब काम करते थे जब 2022 में कई महीनों के लिए ह्रोज़ा पर कब्जा कर लिया गया था और पिछले साल सितंबर में यूक्रेन द्वारा गांव पर नियंत्रण हासिल करने से कुछ समय पहले वह रूस भाग गए थे। उन्होंने कहा कि उन संदिग्धों ने मॉस्को के लिए काम करना जारी रखा और यूक्रेन में मुखबिरों का एक नेटवर्क बनाया जोकि यूक्रेन के लिए अब बहुत बड़ी मुसीबत बन चुका है।

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