विवेकानंद और टैगोर जैसी विभूतियों के कारण ही भारतीय संस्कृति अप्रभावित रही: मोदी

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[email protected] । Feb 18 2019 3:51PM

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने सोमवार को राजकुमार सिंघाजीत सिंह, बांग्लादेश के सांस्कृतिक संगठन‘ छायानट’ और रामवनजी सुतार को क्रमशः 2014, 2015 और 2016 के लिए टैगोर सांस्कृतिक सद्भाव पुरस्कार प्रदान किये।

नयी दिल्ली। संस्कृति को किसी भी देश की प्राणवायु करार देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि स्वामी विवेकानंद और गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर जैसी विभूतियों के योगदान के कारण ही बरसों बरस के औपनिवेशिक शासन और बाह्य आक्रमणों से देश की सांस्कृतिक धरोहर अप्रभावित रही। ‘टैगोर सांस्कृतिक सद्भाव पुरस्कार’ समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि भारत की बहुआयामी धरोहर के प्रत्यक्ष दर्शन पहले नोबेल पुरस्कार विजेता गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की कृतियों में दिखते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ भारत की सैकड़ों वर्षों की सांस्कृतिक धरोहर काफी लम्बे समय की गुलामी और बाह्य ताकतों के हमले से अप्रभावित रही । ऐसा स्वामी विवेकानंद और गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर जैसी विभूतियों के योगदान के कारण संभव हो सका।’’

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने सोमवार को राजकुमार सिंघाजीत सिंह, बांग्लादेश के सांस्कृतिक संगठन‘ छायानट’ और रामवनजी सुतार को क्रमशः 2014, 2015 और 2016 के लिए टैगोर सांस्कृतिक सद्भाव पुरस्कार प्रदान किये। समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मौजूद थे। राजकुमार सिंघाजीत सिंह को मणिपुरी नृत्य के माध्यम से सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने और मणिपुरी नृत्य की परंपरा को बढ़ावा देने के लिये यह सम्मान दिया गया। रामवनजी सुतार को मूर्तिशिल्प को आगे बढ़ाने तथा गुजरात में सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा के शिल्पकार के रूप में उनके योगदान के लिये यह पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा बांग्लादेश के सांस्कृतिक संगठन ‘छायानट’ को सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देने के लिये यह पुरस्कार दिया गया। 

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इस अवसर पर राष्ट्रपति कोविंद ने सम्मान प्राप्त करने वालों को बधाई देते हुए कहा कि भारत में हर क्षेत्र की अलग पहचान है लेकिन यह अलग पहचान हमें विभाजित नहीं करती बल्कि एकता के सूत्र में बांधने और सौहार्द बढ़ाने का काम करती है। उन्होंने कहा कि गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर अद्भुत प्रतिभा के धनी थे जिन्हें 1913 में साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला था । वे संगीतज्ञ, कलाकार एवं आध्यात्मिक शिक्षाविद होने के साथ ही एक ऐसे कवि थे जिन्होंने राष्ट्रगीत की रचना की। 

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