गुलामी और नफरत के बाद भी एकता, इंकलाब और आत्मचिंतन की जीत को दर्शाता जन गण मन, जानें इसके राष्ट्रगान बनने की कहानी

Jana Gana Mana
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jan 24 2025 2:07PM

क्या आपको इस गीत से राष्ट्रगान बनने तक के सफर के बारे में पता है। ये कहानी हिंदुस्तान के आदर्शों की है कि कैसे गुलामी, फसाद और नफरत के बाद भी एकता, इंकलाब और आत्मचिंतन की जीत कैसे होती है।

24 जनवरी 1950 की बात है संविधान सभा में जन गण मन को भारत के राष्ट्र गान के रूप में स्वीकृत किया था। फिर 26 जनवरी का दिन आता है जब शान से तिरंगा फहराया जाता है और देशभक्त शान से राष्ट्रगान गाते हैं। जिस गान को लोग 52 सेकेंड के लिए गाते हैं और फिर भूल जाते हैं। हम आपको आज उसी राष्ट्रगान की कहानी सुनाएंगे। जो लफ्ज हम बहुत सम्मान से लेते जरूर हैं लेकिन उसका मतलब क्या है ये बताने की कोशिश करेंगे। जन गण मन हमें कैसे जोड़ता है ये समझने की कोशिश करेंगे। आपको ये तो पता ही होगा कि गुरु रविंद्रनाथ टेगौर ने हमारा नेशनल एंथम लिखा है। शायद आपको ये भी पता होगा कि इसके फुल वर्जन में चार और क्षंद हैं। लेकिन क्या आपको इस गीत से राष्ट्रगान बनने तक के सफर के बारे में पता है। ये कहानी हिंदुस्तान के आदर्शों की है कि कैसे गुलामी, फसाद और नफरत के बाद भी एकता, इंकलाब और आत्मचिंतन की जीत कैसे होती है। 

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वंदे मातरम क्यों नहीं बन सका राष्ट्रगान

भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को भी राष्ट्रगान बनाने की बात कही जा रही थी। लेकिन उसे राष्ट्रीय गीत बनाया गया। जिसके पीछे ये तर्क दिया गया कि इसकी चार लाइन ही देश को समर्पित हैं। बाद की लाइने बंगाली भाषा में हैं और मां दुर्गा की स्तुति की गई है। किसी भी ऐसे गीत को राष्ट्रगान बनाना उचित नहीं समझा गया जिसमें देश का न होकर किसी देवी-देवता का जिक्र हो। इसलिए वंदे मातरम को राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत बनाया गया।  सबसे पहले जन गन मन को पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। 

भारत के राष्ट्रगान के बारे में जानने योग्य 10 बातें

भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' कवि और नाटककार रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था। 

भारत के राष्ट्रगान की पंक्तियाँ रवींद्रनाथ टैगोर के गीत 'भारतो भाग्य बिधाता' से ली गई हैं।

मूल बांग्ला में लिखा गया था और पूरे गीत में 5 छंद हैं। पाठ पहली बार 1905 में तत्वबोधिनी पत्रिका के एक अंक में प्रकाशित हुआ था।

1911 में  27 दिसंबर को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा आयोजित अधिवेशन पहला स्थान बना, जहाँ गीत सार्वजनिक रूप से गाया गया था और टैगोर ने इसे स्वयं गाया था।

28 फरवरी 1919 को टैगोर ने पूरे बंगाली गीत की एक अंग्रेजी व्याख्या लिखी, और इसका शीर्षक 'द मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया' रखा।

राष्ट्रगान को पूरा गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है जबकि इसके संस्‍करण को चलाने की अवधि लगभग 20 सेकंड है।

24 जनवरी 1950 को (26 तारीख को भारत के पहले गणतंत्र दिवस से पहले), टैगोर के "भारतो भाग्य बिधाता" के पहले छंद को आधिकारिक तौर पर भारत की संविधान सभा द्वारा भारत के राष्ट्रीय गान के रूप में घोषित किया गया था।

राष्ट्रगान के चयन में सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका थी। इसके बाद उन्होंने टैगोर के मूल, हिंदी और उर्दू शब्दों के साथ गीत का एक और संस्करण, जिसे 'शुभ सुख चैन' कहा जाता है से रूपांतरित किया।

कलाकार मकबूल फ़िदा हुसैन ने एक कलाकृति बनाई, जिसका शीर्षक राष्ट्रगान 'भारत भाग्य विधाता' की पंक्तियों से लिया गया है। 

कुछ कार्यक्रमों के अवसरों पर गान की केवल उद्घाटन और समापन पंक्ति को छोटे संस्करण के रूप में गाया जाता है। 

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राष्ट्रगान का शाब्दिक अर्थ

हे भारत के जन गण और मन के नायक आप भारत के भाग्य विधाता हैं। वो भारत जो पंजाब, सिंध, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडप, उड़ीया और बंगाल जैसे प्रदेश से बना है। जहां विध्यांचल तथा हिमाचल जैसे पर्वत हैं। युमना-गंगा जैसी नदियां हैं। जिनकी तरंगे उच्छश्रृंखल होकर उठती हैं। आपका शुभ नाम लेकर ही प्रात: उठते हैं। आपके आशीर्वाद की याचना करते हैं। आप हम सभी जनों का मंगल करने वाले हैं। आपकी जय हो। सभी आपकी ही जय की गाथा गायेंगे। हे! जन और गण का मंगल करने वाले आपकी जय हो। आप भारत के भाग्य विधाता हैं। आपकी जय हो, जय हो, जय हो। जय, जय, जय, जय हो।  

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