काशी उत्सव के दूसरे दिन पधारे दिग्गजों ने लगाए उत्सव में चार चांद
रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में लोकगायिका मैथिली ने अपने सुंदर गीतों से सबके मन मोह लिया। मैथिली ने खेले मशाने में होरी दिगंबर...की प्रस्तुति से रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में होली के रंग बिखेर दिए। इतना ही नही मैथिली के मधुर आवाज में होली के गीत सुनकर काशीवासी भी कार्तिका मास में होली का अनुभव करने लगे।
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में आयोजित काशी उत्सव की दूसरी शाम कबीर को समर्पित रही। उत्सव के दूसरी संध्या में सूफी गीत, कबीर की साखी और लोकगीतों की सुमधुर प्रस्तुतियों ने वहाँ उपस्थित श्रोताओं को अपने गीतों से मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके साथ ही पद्मश्री डॉ. भारती बंधु, कलापिनी कोमकली और मैथिली ठाकुर के एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां से दर्शकों के अंतर्मन में कबीर की बानी का एहसास दिलाती रही। रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में लोकगायिका मैथिली ने अपने सुंदर गीतों से सबके मन मोह लिया। मैथिली ने खेले मशाने में होरी दिगंबर...की प्रस्तुति से रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में होली के रंग बिखेर दिए। इतना ही नही मैथिली के मधुर आवाज में होली के गीत सुनकर काशीवासी भी कार्तिका मास में होली का अनुभव करने लगे।
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इसके साथ ही संगीत संध्या को आगे बढ़ाते हुए मैथिली ने छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाई के..., दमा दम मस्त कलंदर...के बाद पारंपरिक सोहर जुग जुग जियस ललनवा, सुनाया तो पूरा हॉल तालियों की तेज ध्वनि से गुंजायमन हो उठा। इससे पहले बुधवार की संध्या की शुरुआत पद्मश्री डॉ. भारती बंधु ने मोरे नैना में राम रंग छाय रहा हो... की तो पूरा रुद्राक्ष का पूरा माहौल सूफी रंग में रंगा नजर आया। झूठी दुआएं भेजी, झूठे सलाम लिखे, मैंने उनकी तरफ से खत अपने नाम लिखे...के साथ सूफी संगीत की शानदार प्रस्तुतियां पेश की। इसके साथ ही डॉ. बंधु ने प्रथम संध्या के समापन के दौरान कबीर की उलटबांसी की तरह ही गीत सबसे पहले हम जन्मे जी, पाछे बड़ा भाई। धूमधाम से पिताजी जन्मे, पाछे जननी माई...सूफियाना की प्रस्तुति दी।
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