Lala Lajpat Rai : साइमन कमीशन का विरोध करते-करते दुश्मन की लाठी खाकर हुए शहीद, जिसका बदला लेने के लिए हुई थी सांडर्स की हत्या

Lala Lajpat Rai
प्रतिरूप फोटो
ANI
Prabhasakshi News Desk । Jan 28 2025 10:52AM

एक स्वतंत्रता सेनानी थे शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय। जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। लाला लाजपत राय ने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।

भारत की धरती पर कई ऐसे वीर सपूत हुए हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए इस देश को आजाद कराने के लिए अपना जीवन तक बलिदान हँसते-हँसते कर दिया। ऐसे ही महान एक स्वतंत्रता सेनानी थे शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय। जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। लाला लाजपत राय ने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।

लाजपत राय का जीवन परिचय

पंजाब केसरी के नाम से मशहूर लाला लाजपत राय का जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 28 जनवरी, 1865 को हुआ था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे और माता गुलाब देवी धार्मिक महिला थीं। बचपन से ही लाजपत राय लेखन और भाषण में बहुत रुचि लेते थे। उन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की। लाला लाजपत राय को शेर-ए-पंजाब का सम्मानित संबोधन देकर लोग उन्हें गरम दल का नेता मानते थे। लाला स्वावलंबन से स्वराज्य लाना चाहते थे।

देश सेवा का बचपन से ही था शौक

लाला लाजपत राय के मन में बचपन से ही राष्ट्र सेवा का शौक था। इसलिए उन्होंने देश को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराने के प्रण बहुत पहले ही ले लिया था। कॉलेज के दिनों में वह राष्ट्रभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए। वह देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के पक्षधर थे। इसलिए लाजपत राय की नीति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ थी। बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष और बाल गंगाधर तिलक के साथ उनका भी मानना था कि कांग्रेस की पॉलिसी का नकारात्मक असर हो रहा है। उन्होंने पूर्ण स्वराज की वकालत की।

दिल छूने लेने वाली बचपन की कहानी

स्कूल की तरफ से एक बार पिकनिक का आयोजन किया गया। इसमें लाला लाजपत राय को भी जाना था। लेकिन न उनके पास पैसे थे और न घर में सामान, ताकि उनकी मां पिकनिक पर ले जाने के लिए कुछ बना सकें। उनके पिता बेटे का दिल न टूटे, इसके लिए पड़ोसी के घर उधार मांगने जा रहे थे, तो उन्हें यह पता चल गई। उन्होंने कहा पिताजी! उधार के लिए मत जाइए, मैं वैसे भी पिकनिक पर नहीं जाना चाहता था। अगर मुझे जाना भी होगा, तो घर में खजूर है तो वही लेकर चला जाऊंगा।

वकालत छोड़कर राजनीति में आ गए

लाजपत राय ने वकालत छोड़कर देश को आजाद कराने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को दुनिया के सामने रखना चाहिए। इससे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दूसरे देशों से मदद मिल सकेगी। इस सिलसिले में लाला लाजपत राय 1914 में ब्रिटेन गए और इसके बाद 1917 में अमेरिका गए। अक्तूबर 1917 में उन्होंने न्यूयॉर्क में इंडियन होमरूल लीग की स्थापना की। इसके बाद वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे।

साइमन कमीशन के शुरुआती विरोधियों में शामिल थे

जब 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुंचा, तो उसके शुरुआती विरोधियों में लाजपत राय भी शामिल हो गए और इस कमीशन का विरोध करने लगें। यह साइमन कमीशन भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा एवं रपट तैयार करने के लिए बनाया गया सात सदस्यों की कमेटी थी। यह सभी भारत में संवैधानिक ढांचे को अंग्रेजी मंशा के आधार पर तैयार करने के लिए भारत आये थे। जिसका पूरे देश में जबरदस्त विरोध देखने को मिला। साइमन कमीशन के भारत में आने के साथ ही इसके विरोध की आग पूरे देश में फैल गई। लोग सड़कों पर निकल कर आने लगे और देखते ही देखते पूरा देश "साइमन गो बैक (साइमन वापस जाओ)" के नारों से गूंज उठा।

अंग्रेजों की क्रूरता से हुए शहीद

उस समय के सभी बड़े क्रांतिकारियों ने 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन कर रखा था। जिसका नेतृत्व लाला ही कर रहे थे। इस प्रदर्शन में उमड़ी जनसैलाब को देखकर अंग्रेज बुरी तरह बौखला गए। इस प्रदर्शन से डरे अंग्रेजों ने लाजपत राय और उनके दल पर लाठीचार्ज कर दिया। इसमें शामिल युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। लाला लाजपत राय अंग्रेजों की इस लाठी से डरे नहीं और जमकर उनका सामना किया।

इस लाठीचार्ज में लालाजी बुरी तरह घायल हो गए, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और आखिरकार 17 नवंबर 1928 को इस वीर ने हमेशा के लिए आंखे मूंद ली। लालाजी गरम दल के नेता थें, उन्हें चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व वीर क्रांतिकारी अपना आदर्श मानते थे। जब लोगों को पता चला कि अंग्रेजों ने बेरहमी से पीट कर लालाजी को मार डाला तो गर्म दल के नेता उत्तेजित हो उठे और लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली मार दी गई। बाद में सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।

All the updates here:

अन्य न्यूज़