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मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री बोले किसानों की आड़ में विरोधियों का आंदोलन
- दिनेश शुक्ल
- जनवरी 22, 2021 22:52
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आंदोलनरत किसान संगठन केवल कृषि कानून वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं, कृषि मंत्री एवं किसान नेता कमल पटेल ने हड़ताली संगठनों के इस अड़ियल रवैये पर हैरानी जताते हुए कहा कि दरअसल यह संगठन किसानों के हैं ही नहीं, यह वो विरोधी ताकते हैं जो नहीं चाहतीं कि किसानों का भला हो।
भोपाल। केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीनों कृषि कानून को लेकर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि यह आंदोलन किसानों की आड़ में विरोधियों का आंदोलन है। कृषि मंत्री ने बातचीत से समाधान निकालने के बजाय कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े संगठनों को किसान संगठन मानने से ही इंकार कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी आग्रह किया है कि वह किसी के दवाब में आए बिना कृषि सुधार कानूनों को जारी रखें।
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कृषि मंत्री कमल पटेल ने शुक्रवार को जारी अपने एक बयान में कहा कि दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों से कई दौर की बातचीत के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल सका है। आंदोलनरत किसान संगठन केवल कृषि कानून वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं, कृषि मंत्री एवं किसान नेता कमल पटेल ने हड़ताली संगठनों के इस अड़ियल रवैये पर हैरानी जताते हुए कहा कि दरअसल यह संगठन किसानों के हैं ही नहीं, यह वो विरोधी ताकते हैं जो नहीं चाहतीं कि किसानों का भला हो। कृषि मंत्री कमल पटेल ने कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और आप का नाम लेते हुए कहा कि इनका कोई समर्थन नहीं है। देश के किसान कृषि कानूनों के समर्थन में केन्द्र सरकार के साथ हैं।
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कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार किसानों को सम्मान निधि देने की पहल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की जिसकी मांग खेती में नुकसान के बावजूद कभी किसान संगठनों ने नहीं की थी, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को संबल दिया तो इनमें से किसी संगठन ने आगे आकर प्रधानमंत्री का धन्यवाद नहीं किया। कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि यह कैसे किसान संगठन हैं, जो किसानों का भला होते हुए भी नहीं देख पा रहे। कृषि मंत्री कमल पटेल ने एक बार फिर जोर देकर कहा कि कृषि कानून किसानों के हित में हैं और किसानों की दशा और दिशा बदलने वाले हैं।
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- अनुराग गुप्ता
- मार्च 9, 2021 15:11
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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पिछली बार की तुलना में कठिन परिस्थितियों के बावजूद दिल्ली का बजट में बढ़ोत्तरी हुई है। मैं खुश हूं कि दिल्ली का 69,000 करोड़ रुपये का बजट पिछले साल से करीब छह प्रतिशत अधिक है।
नयी दिल्ली। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेश किए गए बजट की जानकारी दी। केजरीवाल ने कहा कि बहुत कठिन परिस्थितियों में इस बार का बजट तैयार किया गया है। इस बार समाज के सभी वर्गों के लोगों को ध्यान में रखा गया है। पिछले एक साल में दिल्ली समेत पूरे विश्व में कोरोना वायरस महामारी की वजह से कठिन परिस्थितियां उत्पन्न हुईं थीं। सरकार की इनकम आने के स्त्रोत बहुत ज्यादा कम हो गए थे और हमारा व्यय काफी ज्यादा बढ़ गया था।
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उन्होंने कहा कि पिछली बार की तुलना में कठिन परिस्थितियों के बावजूद दिल्ली का बजट में बढ़ोत्तरी हुई है। मैं खुश हूं कि दिल्ली का 69,000 करोड़ रुपये का बजट पिछले साल से करीब छह प्रतिशत अधिक है। इसके लिए मैं दिल्ली के लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने अपनी सरकार पर भरोसा किया और कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपना टैक्स दिया।
सभी क्षेत्रों में जारी रहेगी सब्सिडी
मुख्यमंत्री ने बताया कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद सभी क्षेत्रों की सब्सिडी जारी रही है। बिजली, पानी, फ्री शिक्षा, फ्री दवाईयों, महिलाओं का मुफ्त सफर में दी जाने वाली सब्सिडी जारी रही। उन्होंने कहा कि अगले साल भी मुफ्त दी जाने वाली सुविधाएं जारी रहेंगी। मुझे खुशी है कि पिछले 6-7 साल से जो ट्रेंड चला आ रहा है वह जारी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा में लगभग एक चौथाई बजट जबकि स्वास्थ्य सेवाओं पर 14 फीसदी बजट खर्च किया जा रहा है।
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इस दौरान उन्होंने कहा कि दिल्ली में जब से हमारी सरकार बनी है तब से बजट सरप्लस में है। आजतक दिल्ली के बजट में घाटा नहीं हुआ है। कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि दिल्ली अकेला राज्य है जहां सरकार घाटे का नहीं बल्कि सरप्लस में बजट करते हैं।
आजादी के 75 साल
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार दिल्ली की जनता के साथ मिलकर आजादी के 75 साल को भव्य तरीके से मनाएगी। उन्होंने कहा कि 2047 में जब आजादी के 100 साल पूरे होंगे उस वक्त देश कैसा होना चाहिए। उसकी नींव हमें अभी से रखनी पड़ेगी और उस नींव को रखने का काम इस बजट ने किया है।
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उन्होंने कहा कि आज दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय देश के हिसाब से बहुत बढ़िया है लेकिन दुनिया के स्तर पर उतना बेहतर नहीं है। हमारा सपना है कि दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय को सिंगापुर की प्रति व्यक्ति आय के बराबर करना है। इसके लिए 2047 तक का लक्ष्य रखा गया है।
ओलंपिक के लिए आवेदन करेगा दिल्ली
उन्होंने आगे बताया कि इस बार के बजट में विजन दिया गया है कि 2048 का ओलंपिक खेल दिल्ली में होना चाहिए। 2048 के ओलंपिक खेल के लिए दिल्ली आवेदन करेगा। इसके लिए जो भी इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य जरूरत की चीजें करनी होगी, हम करेंगे।
दिल्ली की प्रगति के लिए इस साल का ये बजट उन्नति की अपार संभावनाओं का बजट है | Press Conference CM @ArvindKejriwal | LIVE https://t.co/sKVFZtSOGZ
— AAP (@AamAadmiParty) March 9, 2021
भोपाल में पदस्थ डीएसपी ने लगाई फांसी, छुट्टी पर गए हुए थे अपने गाँव
- दिनेश शुक्ल
- मार्च 9, 2021 15:11
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सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को फांसी के फंदे से उतारकर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल पहुंचाया, लेकिन देर रात हो जाने के कारण पोस्टमार्टम नहीं हो पाया। मंगलवार, सुबह पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस ने भोपाल पुलिस मुख्यालय में इसकी सूचना दे दी है।
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असम की राजनीति में चाय बागान का खास योगदान, भाजपा और कांग्रेस मजदूरों को लुभाने में जुटे
- अनुराग गुप्ता
- मार्च 9, 2021 14:40
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चीन के बाद दुनिया को चाय की आपूर्ति असम ही करता है। ऐसे में यहां लगभग हर पांच लोगों में एक लोग चाय के क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में राजनीतिक दल चाय बागानों से जुड़े हुए मजदूरों को लुभाने में जुटे हुए हैं।
गुवाहाटी। देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य असम में तीन चरण में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा अपनी सरकार फिर से बनाने की तो कांग्रेस सत्ता में आने कवायद में जुटी हुई हैं। तभी तो उत्तर प्रदेश को छोड़कर अब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा असम में पार्टी को मजबूत कर रही हैं। उन्होंने तरूण गोगोई की राह को पकड़ते हुए चाय बागान पर ध्यान देना शुरू किया है।
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चीन के बाद दुनिया को चाय की आपूर्ति असम ही करता है। ऐसे में यहां लगभग हर पांच लोगों में एक लोग चाय के क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में राजनीतिक दल चाय बागानों से जुड़े हुए मजदूरों को लुभाने में जुटे हुए हैं। तभी तो गांधी परिवार के वारिस असम में आजकल दिखाई दे रहे हैं। प्रियंका गांधी की महिला मजदूरों के साथ तस्वीरें सामने आ रही हैं। यहां पर उन्होंने महिला मजदूरों की तरह चाय की पत्तियां तोड़ी।
वहीं, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की न्यूनतम दिहाड़ी का मुद्दा उठाया तो भाजपा ने तुरंत इसे लपक लिया और प्रदेश सरकार ने दिहाड़ी बढ़ाकर 318 रुपए करने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो यहां तक कहा कि हम चाय को उसके सही मुकाम तक पहुंचाएंगे। चुनाव में चाय बागान के मजदूरों का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है। क्योंकि यहां की करीब 30 विधानसभा सीटों पर चाय बागान के मजदूर ही उम्मीदवारों की जीत या हार तय करते आए हैं।
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तरूण गोगोई ने लगाई थी हैट्रिक
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत नेता तरुण गोगोई ने असम में जीत की हैट्रिक लगाई है। दरअसल, साल 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ माहौल देखने को मिल रहा था लेकिन चाय बागानों के मजदूरों ने तरुण गोगोई पर भरोसा जताया था और उन्हें तीसरी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। इतना ही नहीं चाय बागान वाले इलाकों की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस का ही कब्जा था। मगर फिर गोगोई का जो कुली, बंगाली और अली वाला वोटबैंक था वह धीरे-धीरे खिसकने लगा और साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चाय बागानों को मुद्दा बनाया और उनके लिए कई सारी घोषणाएं की। जिसका नतीजा है कि भाजपा ने 15 साल से सत्ता में विराजमान तरुण गोगोई सरकार को उखाड़ फेंका।
चाय बागान का महत्व जानती है कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी पार्टी असम में चाय बागानों के मजदूरों की महत्वता को समझती है। तभी तो प्रियंका गांधी ने तेजपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए वादे नहीं किए बल्कि वहां की जनता को गारंटी दी। उन्होंने कहा कि अगर प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनती है तो चाय बागान के मजदूरों की दिहाड़ी बढ़ाकर 365 रुपए कर दी जाएगी। इस गारंटी के साथ ही उन्होंने कुल पांच गारंटी दी। जिनमें नागरिकता संशोधन कानून को निरस्त करना, 200 यूनिट तक बिजली बिल मुफ्त, गृहिणी सम्मान योजना और 5 लाख सरकारी नौकरियां देने की गारंटी शामिल है।
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भाजपा की राह में रोड़े !
चाय बागान के मजदूरों को लुभाने में तो राजनीतिक दल लगे हुए हैं लेकिन वहां की जनता असल में क्या चाहती है ? यह जानना भी जरूरी है। इस प्रश्न का जवाब हमें टाइम्स नाउ के सर्वे में मिला। टाइम्स नाउ और सी वोटर द्वारा कराए गए साझा सर्वे में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए में जबरदस्त मुकाबला होने वाला है। प्रदेश की 126 विधानसभा सीटों में से भाजपा प्लस को 67 जबकि कांग्रेस प्लस को 57 सीटें मिल सकती हैं। वहीं 2 सीटें अन्य के खाते में भी जाती हुई दिखाई दे रही हैं।
साल 2011 में तरुण गोगोई तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 2016 के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा को 86 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस के खाते में महज 26 सीटें ही आई थी। अब इस बार देखना होगा कि क्या सर्वे के नतीजे चुनावी नतीजों में तब्दील होते हैं या फिर प्रदेश की जनता का मन इसके उलट रहता है।

