महिलाओं के ‘मौलिक अधिकार’ की रक्षा करे महाराष्ट्र सरकारः कोर्ट

बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से धार्मिक स्थलों पर प्रवेश को लेकर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कहा।

मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने आज महाराष्ट्र सरकार से धार्मिक स्थलों पर प्रवेश को लेकर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए यह कहते हुए एहतियाती कदम उठाने का निर्देश दिया कि ‘‘यह महिलाओं का मौलिक अधिकार है’’ और सरकार को इसकी रक्षा करनी चाहिए। राज्य के अहमदनगर जिले के शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा कि वह केवल सरकार के लिए सामान्य निर्देश पारित कर सकती है और व्यक्तिगत और खास मामलों में नहीं जा सकती है।

महाराष्ट्र सरकार ने उच्च न्यायालय को आश्वस्त किया कि वह पूरी तरह से लैंगिक भेदभाव के खिलाफ है और महाराष्ट्र हिंदू पूजा स्थल (प्रवेश प्राधिकार) कानून के प्रावधानों को सख्ती से लागू करेगी। मुख्य न्यायाधीश डीएच वाघेला और न्यायमूर्ति एमएस सोनक की खंडपीठ ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र के गृह विभाग के सचिव कानून के प्रावधानों के अनुपालन और उसे लागू किये जाने को सुनिश्चित करेंगे एवं नीति व अधिनियम के उद्देश्य को पूरी तरह अमल में लाने के लिए वे (गृह विभाग) महाराष्ट्र के हर जिले के पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर को दिशा-निर्देश जारी करेंगे।’’ खंडपीठ ने कहा, ‘‘कानून को पूरी तरह लागू करने के लिए सरकार सभी जरूरी कदम उठायेगी।’’

मुख्य न्यायाधीश वाघेला ने कहा, ‘‘आखिरकार यह महिला का मौलिक अधिकार है और सरकार का मूल कर्तव्य उनके (महिलाओं के) अधिकारों की रक्षा करना है।’’ राज्य के कार्यकारी महाधिवक्ता रोहित देव ने उच्च न्यायालय से कहा कि सभी जिला कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को कानून के प्रावधानों के बारे में जागरूक करने के लिए एक परिपत्र या दिशा-निर्देश जारी किया जायेगा। सरकार के बयान को स्वीकार कर लिया गया। शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने बुधवार को राज्य सरकार से इस मुद्दे पर जवाब देने को कहा था जिसके बाद महाधिवक्ता ने राज्य सरकार का पक्ष रखा।

न्यायमूर्ति वाघेला ने कहा, ‘‘कार्यकारी महाधिवक्ता ने न्यायालय को आश्वस्त किया है कि राज्य सरकार लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 को ध्यान में रख रही है। मौलिक अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करने और किसी भी अधिकारी द्वारा इस पर अधिकार जमा लेने से रोकने के लिए सरकार एहतियाती कदम उठा सकती है।’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि वह सरकार को एक सामान्य निर्देश जारी कर सकती है और किसी भी व्यक्तिगत और खास मुद्दे में नहीं जा सकती है। न्यायालय ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि कानून का पालन नहीं हो रहा है तो वह अपनी शिकायत स्थानीय अधिकारी के समक्ष दर्ज करा सकता है। महाराष्ट्र हिंदू पूजा स्थल (प्रवेश प्राधिकार) कानून, 1956 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को किसी मंदिर में प्रवेश से रोकता है तो उसे छह माह की जेल हो सकती है।

कार्यकारी महाधिवक्ता रोहित देव ने हालांकि उच्च न्यायालय के समक्ष स्पष्ट किया कि अगर कोई मंदिर किसी व्यक्ति को उसके लिंग की परवाह किये बगैर गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं देता है तो ऐसे में यह कानून और इसके प्रावधान सहायक सिद्ध नहीं होंगे। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि एक मंदिर अगर पुरूषों को गर्भगृह में प्रवेश की इजाजत देता है लेकिन महिलाओं को रोकता है तो ऐसे में इस कानून और इसके प्रावधानों का इस्तेमाल किया जा सकता है।’’

गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा था कि किसी पूजा स्थल पर अगर किसी पुरूष को प्रवेश की इजाजत दी जाती है तो महिलाओं को भी इसकी अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि कोई भी कानून उनको ऐसा करने से नहीं रोकता है। उसने कहा था कि प्रतिबंध लगाने वाले किसी भी मंदिर या व्यक्ति को महाराष्ट्र के कानून के तहत छह माह की जेल हो सकती है और सरकार से कहा कि उसे अगर किसी देवता की पवित्रता की चिंता है तो वह एक बयान जारी करे। यह जनहित याचिका नीलिमा वर्तक एवं कार्यकर्ता विद्या बल की ओर से दाखिल किया गया था। याचिका में कहा गया था कि प्रवेश पर रोक मनमाना, गैरकानूनी एवं नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।’’ पिछले वर्ष एक महिला ने शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया था, जिसके बाद से यह पूरा विवाद पैदा हो गया था।

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