Modi Cabinet ने लिया बड़ा फैसला, राजधानी Delhi को धुएं और प्रदूषण से मुक्ति दिलाने वाली योजना को दी मंजूरी

मेट्रो का मतलब है हजारों कारें और दोपहिया वाहन सड़कों से गायब। मेट्रो का मतलब है ईंधन की बचत, धुएं में कमी और समय की बचत भी। जब तुगलकाबाद से कालिंदी कुंज तक मेट्रो पहुंचेगी तो नोएडा से गुरुग्राम जाने वाला ट्रैफिक दिल्ली की सड़कों की बजाय पटरियों पर दौड़ेगा।
आज केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जो निर्णय लिया गया, वह दिल्ली की दमघोंटू हवा के खिलाफ सीधी जंग का ऐलान है। हम आपको बता दें कि मोदी मंत्रिमंडल ने दिल्ली मेट्रो रेल परियोजना के चरण पांच ए को स्वीकृति देकर यह साफ कर दिया है कि अब राजधानी को यूं ही धुएं और जाम के हवाले नहीं छोड़ा जाएगा। बारह हजार पंद्रह करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली सोलह किलोमीटर लंबी इस नई मेट्रो विस्तार योजना में तेरह नए स्टेशन होंगे, जिनमें दस भूमिगत और तीन एलिवेटेड होंगे। इसके साथ ही दिल्ली मेट्रो नेटवर्क चार सौ किलोमीटर की ऐतिहासिक सीमा पार कर लेगा। यह वही दिल्ली है जहां रोजाना औसतन पैंसठ लाख लोग मेट्रो से सफर करते हैं और सड़कों पर गाड़ियों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
इस परियोजना के तहत तीन नए गलियारे विकसित किए जाएंगे। पहला गलियारा रामकृष्ण आश्रम मार्ग से इंद्रप्रस्थ तक बनेगा, जो कर्तव्य भवन जैसे अहम प्रशासनिक क्षेत्र को सीधी मेट्रो कनेक्टिविटी देगा। दूसरा गलियारा एरोसिटी से एयरपोर्ट टर्मिनल एक को जोड़ेगा, जिससे दिल्ली हवाई अड्डे के टर्मिनल एक और तीन के बीच मेट्रो से सीधा संपर्क संभव होगा। तीसरा और सबसे रणनीतिक गलियारा तुगलकाबाद से कालिंदी कुंज तक जाएगा, जो नोएडा और गुरुग्राम के बीच एक वैकल्पिक रास्ता देगा। इन तीनों गलियारों का साझा असर यह होगा कि सड़कों पर ट्रैफिक घटेगा, निजी वाहनों पर निर्भरता कम होगी और प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक पर सीधा प्रहार होगा।
अब जरा इस निर्णय को उस हकीकत के संदर्भ में देखिए, जहां हर सर्दी में दिल्ली गैस चेंबर बन जाती है। स्कूल बंद होते हैं, बुजुर्ग और बच्चे घरों में कैद हो जाते हैं और सरकारें बयानबाजी में उलझी रहती हैं। ऐसे में मेट्रो विस्तार का यह कदम किसी तात्कालिक उपाय जैसा नहीं, बल्कि दीर्घकालिक समाधान की बुनियाद है। मेट्रो का मतलब है हजारों कारें और दोपहिया वाहन सड़कों से गायब। मेट्रो का मतलब है ईंधन की बचत, धुएं में कमी और समय की बचत भी। जब तुगलकाबाद से कालिंदी कुंज तक मेट्रो पहुंचेगी तो नोएडा से गुरुग्राम जाने वाला ट्रैफिक दिल्ली की सड़कों की बजाय पटरियों पर दौड़ेगा।
यह भी याद रखना होगा कि भारत का मेट्रो नेटवर्क अब दुनिया में तीसरे स्थान पर है। 2014 में जहां केवल पांच शहरों में मेट्रो थी, आज छब्बीस शहर इससे जुड़ चुके हैं। औसत दैनिक यात्रियों की संख्या अट्ठाइस लाख से बढ़कर एक करोड़ पंद्रह लाख से अधिक हो चुकी है। यह आंकड़े सिर्फ विकास का बखान नहीं करते, बल्कि यह बताते हैं कि देश का आम नागरिक मेट्रो को अपना रहा है, उस पर भरोसा कर रहा है। दिल्ली में यह भरोसा और मजबूत होने जा रहा है।
देखा जाये तो दिल्ली का वायु प्रदूषण कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि वर्षों की नीतिगत शिथिलता और शहरी अव्यवस्था का नतीजा है। हर साल पराली, मौसम और पड़ोसी राज्यों पर दोष मढ़कर हाथ खड़े कर देना आसान रहा है। लेकिन सड़कों पर बढ़ती गाड़ियों, कमजोर सार्वजनिक परिवहन और बेतरतीब शहरी फैलाव पर चोट करने की हिम्मत कम ही दिखाई गई। आज का यह मेट्रो विस्तार निर्णय उसी हिम्मत की झलक है। यह फैसला बताता है कि सरकार अब समस्या की जड़ पर वार करने को तैयार है।
मेट्रो कोई जादुई छड़ी नहीं, लेकिन यह सबसे भरोसेमंद हथियार जरूर है। जब सार्वजनिक परिवहन सस्ता, सुलभ और तेज होता है, तो लोग स्वेच्छा से कार छोड़ते हैं। यही बदलाव हवा को साफ करता है, शहर को सांस लेने लायक बनाता है। दिल्ली मेट्रो के नए गलियारे केवल नक्शे पर खिंची लाल और नीली रेखाएं नहीं हैं, वे उस सोच का प्रतीक हैं जिसमें विकास और पर्यावरण को आमने सामने खड़ा नहीं किया जाता।
अगर यह परियोजना तय समय पर पूरी होती है और इसके साथ बस सेवाओं, पैदल मार्गों और अंतिम छोर कनेक्टिविटी पर भी ध्यान दिया गया, तो आज का दिन इतिहास में दर्ज होगा। यह दिन उस मोड़ की तरह याद किया जाएगा जब दिल्ली ने धुएं के आगे घुटने टेकने से इंकार किया और पटरी पर दौड़ती मेट्रो को अपनी साफ सांसों का जरिया बनाया।
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