Modi ने भविष्यवाणी की थी- Congress में एक और विभाजन होगा, कर्नाटक में Siddaramaiah और Shivakumar आमने सामने आ गये

देखा जाये तो कर्नाटक की राजनीति हमेशा से कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार, दोनों ही बड़े जनाधार वाले नेता हैं और 2023 चुनाव के बाद सत्ता-साझेदारी की उनकी जटिल व्यवस्था ने शुरू से ही तनाव का बीज बो दिया था।
कर्नाटक में सत्ता का नाटक अब नया मोड़ ले चुका है और दोनों प्रतिद्वंद्वी खेमों यानि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार एक दूसरे के खिलाफ खुलकर सामने आ चुके हैं। हम आपको बता दें कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने आज यह स्पष्ट किया कि पार्टी में किसी तरह का गुट बनाना उनकी प्रवृत्ति नहीं है और “सभी 140 विधायक मेरे ही विधायक हैं।” मुख्यमंत्री पद और संभावित कैबिनेट फेरबदल को लेकर कांग्रेस में बढ़ती हलचल के बीच उन्होंने कहा कि मंत्री बनने की इच्छा रखना स्वाभाविक है और विधायक दिल्ली में नेताओं से मिलकर अपनी उपस्थिति जताते हैं, इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी यही दोहराया कि कैबिनेट फेरबदल का फैसला हाईकमान का अधिकार है और वे स्वयं अगला बजट पेश करेंगे। ऐसी परिस्थितियों में यह सवाल स्वाभाविक है कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति क्या किसी बड़े फूट या विभाजन की ओर बढ़ रही है— खासकर तब, जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनाव परिणामों के बाद कहा था कि कांग्रेस में “एक और विभाजन” संभव है।
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देखा जाये तो कर्नाटक की राजनीति हमेशा से कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार, दोनों ही बड़े जनाधार वाले नेता हैं और 2023 चुनाव के बाद सत्ता-साझेदारी की उनकी जटिल व्यवस्था ने शुरू से ही तनाव का बीज बो दिया था। सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री तथा प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने संतुलन साधने की कोशिश की थी, लेकिन यह संतुलन स्थायी नहीं था। अब कैबिनेट विस्तार और फेरबदल की चर्चाओं के बीच पुराने मतभेद फिर उभरते दिख रहे हैं।
शिवकुमार का यह कहना कि वह कोई गुट नहीं बना रहे, राजनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण संदेश है। वह कर्नाटक कांग्रेस की संगठनात्मक रीढ़ माने जाते हैं, जबकि सिद्धारमैया जनाधार वाले प्रशासक रहे हैं। इन दोनों ध्रुवों के बीच हमेशा एक अनकही प्रतिस्पर्धा रही है, एक तरफ सत्ता की आकांक्षा, दूसरी ओर नेतृत्व पर पकड़। इसलिए जब शिवकुमार सार्वजनिक रूप से यह कहें कि “सभी विधायक मेरे हैं” या “सबको मंत्री बनने का अधिकार है,” तो यह संदेश केवल सामंजस्य का नहीं बल्कि शक्ति-संतुलन का भी है।
वहीं सिद्धारमैया का यह बयान कि “कैबिनेट फेरबदल हाईकमान का अधिकार है” भी संयोग नहीं है। यह संकेत है कि वह अपनी पोजीशन को लेकर आश्वस्त हैं और संगठनात्मक असहमति को हाईकमान के हवाले कर देना चाहते हैं। दूसरी ओर शिवकुमार का संकेतों में प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की बात करना और फिर पार्टी को आश्वस्त करना कि वह “वरिष्ठ नेतृत्व में बने रहेंगे,” इस बात की तरफ इशारा करता है कि वह दबाव में नहीं बल्कि मोलभाव की स्थिति में दिखना चाहते हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या यह स्थिति कांग्रेस में नए विभाजन का आधार बन सकती है? प्रधानमंत्री मोदी के हालिया बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में एक और विभाजन संभव है, उसने राजनीतिक हलचल को और तेज कर दिया है। इतिहास गवाह है कि कांग्रेस में नेतृत्व संघर्ष अक्सर बड़े टूट की वजह बना है। कर्नाटक की मौजूदा राजनीति में भी कुछ कारक ऐसे हैं जो संभावित विभाजन की आशंका को हवा देते हैं।
हम आपको बता दें कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच जो “गोपनीय समझौता” बताया जाता है, यानी 2.5 साल बाद सत्ता परिवर्तन, यही असंतोष की जड़ है। हालांकि कांग्रेस की ओर से बार-बार यही कहा गया है कि ऐसा कोई गोपनीय समझौता नहीं हुआ था। इसके अलावा, कांग्रेस हाईकमान की निर्णायक क्षमता अब पहले जैसी मजबूत नहीं मानी जाती। कांग्रेस में राज्यों में उठने वाले विवाद तेजी से सुलझ नहीं पाते जिससे पार्टी को नुकसान होता है। पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ इसके बड़े उदाहरण हैं।
देखा जाये तो कर्नाटक कांग्रेस की राजनीति फिलहाल तनाव के उस चरण में है जिसे ‘संगठनात्मक पुनर्संतुलन’ कहा जा सकता है। नेता अपनी-अपनी शक्ति-सीमा और संभावनाओं का परीक्षण कर रहे हैं। हालांकि मोदी के बयान से यह बहस तेज हुई है कि क्या कांग्रेस में एक और विभाजन संभव है, लेकिन कर्नाटक की स्थिति फिलहाल उस स्तर पर नहीं दिखती जहां कोई बड़ा टूट निकट भविष्य में हो। फिर भी सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच चल रही यह अदृश्य शक्ति-परीक्षा यदि नियंत्रित नहीं हुई, तो यह न केवल राज्य सरकार बल्कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी गंभीर चुनौती बन सकती है।
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