मुर्मू ने की श्री सत्य साईं ट्रस्ट की प्रशंसा: शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में निभाई अहम भूमिका

राष्ट्रपति मुर्मू ने सत्य साईं बाबा की शिक्षा, स्वास्थ्य और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण विरासत को रेखांकित किया। बाबा के 'मानवता की सेवा ही ईश्वर की सेवा' दर्शन को नमन करते हुए, उन्होंने ट्रस्ट के निःशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और ग्रामीण विकास के योगदान की सराहना की। बाबा के सार्वभौमिक संदेश और राष्ट्र प्रथम की भावना पर बल देकर, राष्ट्रपति ने 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य में आध्यात्मिक संगठनों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को पुट्टपर्थी स्थित प्रशांति निलयम में श्री सत्य साईं बाबा के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित एक विशेष सत्र में भाग लिया। सभा को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत के संतों और ऋषियों की चिरस्थायी विरासत पर प्रकाश डाला, जिन्होंने अपने वचनों और कार्यों से समाज का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि श्री सत्य साईं बाबा ऐसे दिग्गजों में एक विशेष स्थान रखते हैं, और उन्होंने समाज के कल्याण के लिए निरंतर कार्य किया। उन्होंने उनके इस दर्शन पर ज़ोर देते हुए कि "मानवता की सेवा ही ईश्वर की सेवा है," कहा कि बाबा ने अध्यात्म को निस्वार्थ सेवा और व्यक्तिगत परिवर्तन से जोड़ा, जिससे लाखों लोगों को सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिली।
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राष्ट्रपति मुर्मू ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में श्री सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट की पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट उच्च-गुणवत्ता वाली निःशुल्क शिक्षा प्रदान करता है, जिसमें शैक्षणिक उत्कृष्टता को चरित्र निर्माण के साथ जोड़ा जाता है, और ज़रूरतमंद समुदायों को निःशुल्क चिकित्सा सेवा भी प्रदान करता है। ग्रामीण विकास में बाबा के योगदान पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि उनके विजन के कारण इस क्षेत्र के हज़ारों सूखा प्रभावित गाँवों में पेयजल की व्यवस्था हुई।
राष्ट्रपति ने बाबा की शिक्षाओं की सार्वभौमिक और शाश्वत प्रकृति पर ज़ोर दिया और उनके संदेशों "सबसे प्रेम करो, सबकी सेवा करो" और "सदैव मदद करो, कभी किसी को चोट न पहुँचाओ" का हवाला दिया। उन्होंने विस्तार से बताया कि बाबा का मानना था कि विश्व ही हमारी पाठशाला है और पाँच मानवीय मूल्य - सत्य, नैतिकता, शांति, प्रेम और अहिंसा - पाठ्यक्रम का निर्माण करते हैं, जो विभिन्न संस्कृतियों और पीढ़ियों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
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राष्ट्रपति मुर्मू ने 'राष्ट्र प्रथम' की भावना के अनुरूप, राष्ट्र निर्माण में आध्यात्मिक संगठनों की भूमिका पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि धर्मार्थ संगठन, गैर सरकारी संगठन, निजी क्षेत्र और नागरिक राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सरकार नागरिकों के जीवन को सरल बनाने और उन्हें भारत की प्रगति के लिए अपनी प्रतिभा का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए अनेक कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि उनका सामूहिक योगदान 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा। शताब्दी समारोह में देश भर से श्रद्धालु, आध्यात्मिक नेता और गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए, जिसने श्री सत्य साईं बाबा के जीवन और मिशन को एक ऐतिहासिक श्रद्धांजलि दी।
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