राजद्रोह केस को लेकर बोले एनसीपी प्रमुख शरद पवार, निरस्त होना चाहिए यह कानून
शरद पवार ने यह भी कहा कि कोरेगांव-भीमा जांच आयोग से कहा कि महाराष्ट्र के पुणे जिले में युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 को हुई हिंसा के संबंध में उनके पास किसी भी राजनीतिक एजेंडे के खिलाफ कोई आरोप नहीं है।
महाराष्ट्र की राजनीति में राजद्रोह केस का खूब जिक्र हो रहा है। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने नवनीत राणा पर राजद्रोह का केस लगाया है। इन सबके बीच इसी राजद्रोह केस पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार का बयान सामने आया है। दरअसल, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भीमा कोरेगांव कमीशन को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने कहा है कि 124ए (राजद्रोह) को निरस्त कर दिया जाना चाहिए। खबर यह है कि शरद पवार ने भीमा कोरेगांव जांच कमीशन को बुधवार को एक एफिडेविट दिया था। इसमें कहा गया था कि भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 124ए (राजद्रोह) को खत्म कर देना चाहिए। इस धारा को निरस्त करने की मांग करते हुए पवार ने कहा कि मेरे पास ऐसा कहने की वजह है क्योंकि आईपीसी के प्रावधान और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए पर्याप्त हैं।’’
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शरद पवार ने यह भी कहा कि कोरेगांव-भीमा जांच आयोग से कहा कि महाराष्ट्र के पुणे जिले में युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 को हुई हिंसा के संबंध में उनके पास किसी भी राजनीतिक एजेंडे के खिलाफ कोई आरोप नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय दंड संहिता के राजद्रोह के प्रावधान को रद्द करने या इसका ‘‘दुरुपयोग’’ बंद करने का आह्वान किया। कोरेगांव-भीमा जांच आयोग ने शरद पवार को पुणे जिले में युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 में हुई हिंसा के संबंध में अपना बयान दर्ज कराने के लिए पांच और छह मई को उसके समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है।
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पवार ने 11 अप्रैल को जांच आयोग को अतिरिक्त हलफनामा भेजा था, जिसकी प्रति बृहस्पतिवार को उपलब्ध हुई है। पवार ने अपने अतिरिक्त हलफनामे में दोहराया कि उन्हें एक जनवरी 2018 को पुणे में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हुई घटना के लिए जिम्मेदार घटनाक्रम की निजी तौर पर कोई जानकारी या सूचना नहीं थी। हलफनामे में कहा गया है, ‘‘मेरे पास किसी भी राजनीतिक एजेंडे या इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के पीछे के उद्देश्य के खिलाफ कोई आरोप नहीं है।’’ राकांपा प्रमुख ने अपने हलफनामे में कहा कि राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का दुरुपयोग संशोधनों के जरिए रोका जाना चाहिए या इस धारा को रद्द किया जाना चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की धारा 124ए ब्रिटिश शासकों ने उनके खिलाफ विद्रोह को काबू में करने तथा स्वतंत्रता आंदोलनों को दबाने के लिए 1870 में लागू की थी। बहरहाल, हाल-फिलहाल में इस धारा का उन लोगों के खिलाफ दुरुपयोग किया गया जो सरकार की आलोचना करते हैं, जिससे उनकी आजादी और शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से उठाए गए असंतोष की आवाज को दबाया जा सके।’’
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