यूपी में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की कोई नई सूरत नहीं

bjp rally
प्रतिरूप फोटो
ANI Image
संजय सक्सेना । May 30 2023 3:06PM

बीजेपी के प्रत्याशियों को राजा भईया की पार्टी का भी समर्थन मिला है और राजभर की पार्टी ने भी बीजेपी के प्रत्याशी को वोट दिया। इससे लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधान परिषद की दो सीटों के उपचुनाव में विपक्ष की एकता को बड़ा झटका लगा है। दोनों ही सीटों पर उम्मीदों के मुताबिक भाजपा ने जीत दर्ज कर ली है।

लोकसभा के चुनाव में एक वर्ष से भी कम समय बचा है, लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश में मोदी विरोधी मोर्चा कहीं भी आकार लेता नहीं दिखाई दे रहा है। सभी दलों के नेता अलग-अलग राग अलाप रहे है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजपार्टी सहित छोटे-छोट दलों तक के नेता अपनी अलग ढपली बजा रहे हैं। विधान परिषद की दो सीटों पर हुए चुनाव को आम चुनाव से पूर्व अंतिम चुनाव माना जा रहा था जिसमें भी विपक्षी एकता कहीं नहीं दिखाई नहीं दी। चुनाव में विपक्ष बीजेपी के खिलाफ पूरी तरह से बिखरा-बिखरा नजरा आया। हालांकि विपक्ष एकजुट हो भी जाता तब भी वह बीजेपी प्रत्याशी की जीत की राह में बाधा नहीं बन सकता था। बीजेपी ने बड़ी आसानी से दोनों सीटों पर अपनी जीत का परचम फहरा दिया। ऐसा लगता है विधान परिषद चुनाव का सारा गणित समझने के बाद भी समाजवादी पार्टी को अपना प्रत्याशी मैदान में उतारना भारी पड़ गया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उम्मीद थी कि इन चुनावों में विपक्षी दल उनके साथ खड़े होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ नहीं। उधर, कांग्रेस के 2 विधायकों और बसपा के एक विधायक ने अपना वोट ही नहीं डाला। बीजेपी के प्रत्याशियों को राजा भईया की पार्टी का भी समर्थन मिला है और राजभर की पार्टी ने भी बीजेपी के प्रत्याशी को वोट दिया। इससे लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधान परिषद की दो सीटों के उपचुनाव में विपक्ष की एकता को बड़ा झटका लगा है। दोनों ही सीटों पर उम्मीदों के मुताबिक भाजपा ने जीत दर्ज कर ली है। भाजपा के मानवेन्द्र सिंह व पदमसेन चौधरी विजयी हुए हैं।

 उत्तर प्रदेश विधानसभा व नगरीय निकाय चुनाव में करारी शिखस्त खाने के बाद सपा को तीसरी बार विधान परिषद चुनाव में भी निराशा हाथ लगी है। हालांकि, सपा के लिए राहत वाली बात यह है कि राष्ट्रीय लोकदल उसके साथ खड़ा रहा, जबकि सपा-रालोद के बीच मतभेद की बातें लगातार मीडिया में आई थीं। नगरीय निकाय चुनाव में गठबंधन को दरकिनार कर अलग-अलग चुनाव लड़े सपा व रालोद ने एमएलसी चुनाव में फिर एक साथ गठबंधन के प्रत्याशी को वोट दिया। रालोद के सभी नौ विधायकों ने सपा उम्मीदवारों को वोट दिया। सपा के लिए चुनाव में राहत की बात यह है कि उसके व रालोद विधायकों में सत्ताधारी भाजपा सेंध नहीं लगा सकी। इस चुनाव में भाजपा के आगे विपक्ष बिखर गया है। कांग्रेस व बसपा ने सपा का साथ नहीं दिया तो भाजपा खेमा खुशी से फूला नहीं समा रहा है। कांग्रेस के दो व बसपा के एक मात्र विधायक ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया, जबकि पिछला विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली सुभासपा ने इस बार सत्ताधारी दल भाजपा का साथ दिया। रघुराज प्रताप सिंह की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक ने भी भाजपा प्रत्याशियों को वोट दिया। विधान परिषद की ये सीटें सिक्किम के राज्यपाल बनने के बाद भाजपा एमएलसी लक्ष्मण प्रसाद आचार्य के द्वारा इसी वर्ष 15 फरवरी को इस्तीफा देने वहीं, बनवारी लाल दोहरे की 15 फरवरी को मृत्यु होने के बाद  रिक्त हो गईं थीं। लक्ष्मण प्रसाद आचार्य का कार्यकाल 30 जनवरी 2027 तक था, जबकि बनवारी लाल दोहरे का कार्यकाल छह जुलाई 2028 तक था। मतदान में कुल 403 विधायकों में से 396 सदस्यों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कांग्रेस व बसपा ने किसी को भी वोट नहीं दिया। सदन में कांग्रेस के दो व बसपा के एक विधायक हैं। सपा के मनोज कुमार पारस भी बीमार होने की वजह से वोट डालने नहीं आ सके। तीन विधायक जेल में होने के कारण मतदान नहीं कर सकें। इनमें सपा के इरफान सोलंकी, रमाकांत यादव व सुभासपा के अब्बास अंसारी शामिल हैं।

भाजपा के मानवेन्द्र सिंह को 280 व सपा के रामजतन राजभर को 115 मत मिले हैं। एक मत अवैध हो गया। इसी प्रकार पदमसेन को 279 व सपा के रामकरन निर्मल को 116 मत मिले हैं। इसमें भी एक मत अवैध हुआ है। मानवेन्द्र सिंह बनवारी लाल के निधन से रिक्त हुई सीट पर चुने गए हैं जबकि पदमसेन चौधरी लक्ष्मण प्रसाद आचार्य की सीट से चुने गए हैं।

बहरहाल, विधान परिषद उपचुनाव में वोट का गणित पक्ष में न होने की वजह से सपा को अपने प्रत्याशियों की हार पहले से पता थी। ऐसे में उसके प्रत्याशियों की हार चौकाने वाली नहीं रही। लेकिन जानकार कहते हैं, इस चुनाव के जरिए सपा ने अपने पिछड़े-दलित समीकरण की बिसात पिछले पंद्रह दिन से भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा को करीब एक सप्ताह परिषद चुनाव की मशक्कत में भी उलझा दिया। वहीं कांग्रेस और बसपा के बारे में कहा जा रहा है कि इन दोनों दलों ने सपा और भाजपा से समान दूरी का संकेत देने का प्रयास किया। जानकारों का मानना है कि दोनों दल यूपी में आगे किसी गठबंधन का हिस्सा बनने को लेकर फिलहाल दुविधा की स्थिति में नजर आ रहे हैं। 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़