चुनाव एक बार तो देश को मिलेगी रफ्तार, जानिए, क्यों यह चर्चा का विषय है

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अभिनय आकाश । Nov 27 2020 7:13PM

प्रधानमंत्री मोदी कई बार कह चुके हैं कि बार-बार चुनाव से विकास के काम प्रभावित होते हैं। क्योंकि देश के किसी न किसी हिस्से में आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी रहती है। हालांकि विरोध कर रहे विपक्षी दलों की दलील है कि इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा।

भारत में चुनाव को 'लोकतंत्र का उत्सव' कहा जाता है, तो क्या पांच साल में एक बार ही जनता को उत्सव मनाने का मौका मिले या देश में हर वक्त कहीं न कहीं उत्सव का माहौल बना रहे? देश के प्रधानमंत्री ने 80 वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में एक आभासी संबोधन में कहा,”एक राष्ट्र, एक चुनाव केवल बहस का विषय नहीं है, यह भारत की आवश्यकता है। जिसके बाद एक बार फिर पूरे देश में एक देश एक चुनाव पर बहस तेज हो गई है। 

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के चुनाव में करीब 60 हजार करोड़ रूपए खर्च हुए जो 2014 के चुनाव के मुकाबले दोगुना हैं। सवाल है कि जब देश का इतना रुपया बचना हो तो क्यों नहीं देश को एक चुनाव की तरफ आगे बढ़ना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी कई बार कह चुके हैं कि बार-बार चुनाव से विकास के काम प्रभावित होते हैं। क्योंकि देश के किसी न किसी हिस्से में आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी रहती है। हालांकि विरोध कर रहे विपक्षी दलों की दलील है कि इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा। आजादी के बाद देश में साथ चुनाव की परंपरा रही लेकिन मध्यावधी चुनावों की वजह से ये व्यवस्था टूट गई। अब एक बार फिर से एक चुनाव कराने के लिए संविधान संशोधन भी करना पड़ सकते हैं। आज हम आपको बताते हैं कि एक देश एक चुनाव से देश को फायदा होगा। 

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आजादी के बाद एक देश एक चुनाव की थी अवधारणा

बेशक यह मुद्दा आज बहस के केंद्र में है, लेकिन विगत में 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब वर्ष 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गईं। वर्ष 1971 में पहली बार लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब क्या समस्या है?

एक देश एक चुनाव के फायदेमंद

एक देश-एक चुनाव’ से सार्वजनिक धन की बचत होगी, प्रशासनिक सेटअप और सुरक्षा बलों पर भार कम होगा, सरकार की नीतियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा और यह भी सुनिश्चित होगा कि प्रशासनिक मशीनरी चुनावी गतिविधियों में संलग्न रहने के बजाय विकासात्मक गतिविधियों में लगी रहे।

मतदाता सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को राज्य और केंद्रीय दोनों स्तरों पर परख सकेंगे। इसके अलावा, मतदाताओं के लिये यह तय करने में आसानी होगी कि किस राजनीतिक दल ने क्या वादे किये थे और वह उन पर कितना खरा उतरा।

सत्ता चला रहे राजनीतिज्ञों के लिये यह देखना भी ज़रूरी है कि बार-बार चुनाव होते रहने से शासन-प्रशासन में जो व्यवधान आ जाते हैं, उनको दूर किया जाए। प्रायः यह देखा जाता है कि किसी विशेष विधानसभा चुनाव में अल्पकालिक राजनीतिक लाभ उठाने के लिये सत्तारूढ़ राजनेता ऐसे कठोर दीर्घकालिक निर्णय लेने से बचते हैं, जो अंततः देश को लंबे समय में मदद कर सकता है।

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गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष जून में भी 'एक देश, एक चुनाव' के मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। वो काफ़ी समय से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने पर ज़ोर देते रहे हैं। लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई रही।  

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