Shaurya Path: Operation Sindoor के बाद पहली बार तीनों सेनाओं के साथ मंथन करेंगे PM Modi, CCC में बनेगी नई रक्षा नीति

PM Modi Armed Forces meeting
ANI

जहां तक यह सवाल है कि कमांडर्स कॉन्फ्रेंस क्या होती है? तो आपको बता दें कि कमांडर्स कॉन्फ्रेंस (Combined Commanders’ Conference) भारतीय सेनाओं– थल सेना, नौसेना और वायुसेना के शीर्ष नेतृत्व का संयुक्त मंथन मंच है।

भारत की सुरक्षा रणनीति के लिए कोलकाता में आयोजित होने जा रही संयुक्त कमांडर्स कॉन्फ्रेंस (CCC 2025) कई मायनों में ऐतिहासिक कही जा सकती है। यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब हमारे चारों ओर की दुनिया लगातार अस्थिरता और अनिश्चितता से गुजर रही है। नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता, पाकिस्तान की विफल अर्थव्यवस्था और आतंकी नेटवर्क, बांग्लादेश की उभरती कट्टरपंथी ताकतें, अफगानिस्तान में तालिबान का कठोर शासन और म्यांमार की अशांत स्थिति, इन सबने भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।

इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी परिदृश्य बदल रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया की अशांति ने वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और सुरक्षा समीकरणों को हिला दिया है। चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीतियाँ, विशेषकर इंडो-पैसिफिक और दक्षिण चीन सागर में, भारत के लिए अप्रत्यक्ष खतरा पैदा कर रही हैं।

ऐसे कठिन समय में यह सम्मेलन भारत को अपनी सुरक्षा और सामरिक नीति को पुनर्परिभाषित करने का अवसर देता है। विशेष रूप से इसलिए भी कि यह ऑपरेशन सिंदूर के बाद हो रहा है। देखा जाये तो ऑपरेशन सिंदूर वह अभियान था जिसने भारत की निर्णायक और आक्रामक सैन्य क्षमताओं को पूरी दुनिया के सामने स्थापित किया। इस ऑपरेशन ने साफ कर दिया कि भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर साहसी सैन्य कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटेगा। अब आवश्यकता इस बात की है कि इस तरह की सफलताओं को किसी आकस्मिक निर्णय तक सीमित न रखकर संस्थागत रणनीति और दीर्घकालिक सैन्य ढाँचे का हिस्सा बनाया जाए। इस वर्ष की कॉन्फ्रेंस का थीम— “Year of Reforms: Transforming for the Future” भी इसी दृष्टिकोण को दर्शाता है। भारत को अपने सशस्त्र बलों में संस्थागत सुधार, तकनीकी आधुनिकीकरण और त्रि-सेनाओं के बीच गहरी एकता सुनिश्चित करनी होगी। खासकर स्वदेशी रक्षा तकनीक के प्रयोग को प्राथमिकता देना समय की मांग है। साइबर हमले, ड्रोन युद्ध और दुष्प्रचार जैसे नए आयामों से जूझने के लिए सेनाओं को पारंपरिक ढाँचों से बाहर निकलकर हाइब्रिड वारफेयर की नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहना होगा।

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जहां तक यह सवाल है कि कमांडर्स कॉन्फ्रेंस क्या होती है? तो आपको बता दें कि कमांडर्स कॉन्फ्रेंस (Combined Commanders’ Conference) भारतीय सेनाओं– थल सेना, नौसेना और वायुसेना के शीर्ष नेतृत्व का संयुक्त मंथन मंच है। इसमें प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ (CDS), तीनों सेनाओं के प्रमुख और वरिष्ठ कमांडर शामिल होते हैं। यह परंपरा 2001 से चली आ रही है, लेकिन हाल के वर्षों में इसे और व्यापक बनाया गया है। कॉन्फ्रेंस में सेनाओं के सामने मौजूद आंतरिक, क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा होती है और भविष्य की सैन्य रणनीति तय की जाती है।

भारतीय सैन्य बलों को इससे होने वाले लाभ का जिक्र करें तो आपको बता दें कि थल, जल और नभ सेनाएं अलग-अलग नहीं बल्कि एक संयुक्त शक्ति के रूप में काम करने की योजना बनाती हैं। इससे युद्धक क्षमता में तालमेल आता है। साथ ही स्वदेशी रक्षा तकनीक जैसे ड्रोन, AI, साइबर सुरक्षा, स्पेस डिफेंस आदि को अपनाने की रणनीति बनती है। साथ ही आयात पर निर्भरता घटाकर ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा मजबूत होती है। इसके अलावा पड़ोसी देशों– पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान की परिस्थितियों का आकलन कर भारत अपनी रक्षा नीति तय करता है। इस बैठक में हाइब्रिड वारफेयर, साइबर अटैक और आतंकवाद जैसे नए खतरों के खिलाफ रणनीति तैयार होती है।

इसके अलावा, बैठक में संसाधनों का बेहतर उपयोग और संस्थागत सुधार की दिशा में ठोस सुझाव आते हैं। थल, जल और नभ सेनाओं के बीच ‘ज्वाइंटनेस’ यानी समन्वय पर जोर दिया जाता है। देखा जाये तो कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में तैयार सामूहिक रणनीति भारत को सीमाओं पर अधिक सुरक्षित बनाती है। यह भारत को दो मोर्चों (चीन और पाकिस्तान) की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करती है। इसके अलावा, Neighbourhood First नीति के तहत नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसी सीमावर्ती चुनौतियों के लिए भी समाधान ढूँढ़ा जाता है। तथा समुद्री सुरक्षा (Indian Ocean Region) और हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में भारत की पकड़ और मजबूत होती है।

कुल मिलाकर देखें तो कमांडर्स कॉन्फ्रेंस भारत की रक्षा नीति का ‘ब्रेन स्टॉर्मिंग लैब’ है, जो न केवल सेनाओं की रणनीति को दिशा देती है, बल्कि देश की सीमाओं और आंतरिक सुरक्षा को भी मजबूती प्रदान करती है। कमांडर्स कॉन्फ्रेंस केवल सैन्य अधिकारियों की बैठक नहीं है। यह वह मंच है जहाँ आने वाले दशक की सुरक्षा रणनीतियों की रूपरेखा तैयार होती है। ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि, पड़ोस की अस्थिरता और वैश्विक शक्ति-संतुलन में बदलाव के बीच यह सम्मेलन भारत के लिए एक निर्णायक क्षण है। देखा जाये तो आज का भारत न केवल सीमाओं की रक्षा करने के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। यह सम्मेलन हमें याद दिलाता है कि सुरक्षा केवल हथियारों या सैनिकों की संख्या से नहीं, बल्कि दृष्टि, तैयारी और सामूहिक संकल्प से आती है। और यही संकल्प आज भारत को एक सुरक्षित, आत्मनिर्भर और वैश्विक मंच पर प्रभावशाली राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ा रहा है।

हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 और 15 सितंबर को कोलकाता दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वे संयुक्त कमांडर्स कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन करेंगे। यह सम्मेलन 15 से 17 सितंबर तक विजयदुर्ग में आयोजित होगा। प्रधानमंत्री मोदी के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान और रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह भी शामिल होंगे। सेना, नौसेना और वायुसेना के शीर्ष अधिकारी तथा अन्य वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारी भी सम्मेलन में उपस्थित रहेंगे। इस बार सम्मेलन की मेजबानी ईस्टर्न कमांड कर रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत की पूर्वी सीमाओं से जुड़े मुद्दे खासकर बांग्लादेश और नेपाल के साथ चल रहे तनाव, सीमा पार सुरक्षा और निगरानी तथा पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा चुनौतियों से जुड़े मुद्दों पर विशेष चर्चा होगी।

दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री के कोलकाता दौरे में कोई राजनीतिक कार्यक्रम निर्धारित नहीं किया गया है। यह दौरा पूरी तरह रक्षा मामलों पर केंद्रित रहेगा। मोदी का यह दौरा दो दृष्टियों से अहम है। CCC 2025 यह दिखाता है कि सरकार अब सशस्त्र बलों को भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप तैयार करने में तेज़ी से आगे बढ़ रही है। साथ ही बांग्लादेश और नेपाल की राजनीतिक परिस्थितियाँ भारत की सुरक्षा को प्रभावित कर सकती हैं। इस सम्मेलन से यह संदेश जाएगा कि भारत अपनी पूर्वी सीमाओं को लेकर पूरी तरह सजग है।

बहरहाल, कोलकाता में होने वाला यह सम्मेलन सिर्फ रक्षा क्षेत्र का औपचारिक आयोजन नहीं बल्कि भारत की सुरक्षा रणनीति और सैन्य सुधारों का रोडमैप साबित होगा। प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति से इसका महत्व और बढ़ जाता है।

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