राजीव रंजन प्रसाद बोले, तेजस्वी को जनता स्वीकार करने को नहीं तैयार

Rajiv Ranjan Prasad

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को इस बात का पता तो चल ही गया कि लालू यादव के 15 वर्षों के शासन की जो खौफनाक यादें हैं उसको बिहार की जनता भूलने के लिए कतई तैयार नहीं है और ना ही उन्हें माफी देने के लिए तैयार है।

पटना। जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लोगों को बरगलाने कितना भी प्रयास करें और बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों में जितनी भी खामियां ढूंढने का कोशिश करें उतने ही उनके पैर दलदल में फंसते जा रहे हैं। क्योंकि जनता बराबर यह जानना चाहती है कि लालू प्रसाद यादव के पंद्रह वर्षीय शासन के दौरान मात्र 95000 नौकरियां दी गयी, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासनकाल में 7 लाख नौकरियों के साथ साथ हुनर को पहचान कर स्किल मैपिंग, आउटसोर्सिंग एवं कौशल विकास के जरिएअन्य लाखों  लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए गए। प्रसाद ने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूंकी जा रही है। इसीलिए कोई तुलना तो नहीं हो सकती और जहां तक उद्योगों को लेकर  सवाल हैं तो शायद तेजस्वी यादव को जानकारी भी नहीं होगी कि स्टार्टअप पॉलिसी देश में सबसे पहले 2016 में बिहार ने लागू किया। आज जब स्टार्टअप की रैंकिंग जारी की गई तो इन विचारों को सबसे प्रमुखता देते हुए बिहार को पहले नंबर पर स्थान दिया गया है। शायद इस बात को जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव समझ लेंगे तब जनता के मन में नीतीश कुमार के प्रति जो स्नेह और प्यार है उसका कारण भी समझ पाएंगे। 

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प्रसाद ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को इस बात का पता तो चल ही गया कि लालू यादव के 15 वर्षों के शासन की जो खौफनाक यादें हैं उसको बिहार की जनता भूलने के लिए कतई तैयार नहीं है और ना ही उन्हें माफी देने के लिए तैयार है।लोगों को गुमराह करने के लिए उन्होंने एक नया पैंतरा खेला है जिसमें उन्होंने लालू यादव की तस्वीरों को पोस्टर से गायब कर खुद को सामने रखा है लेकिन एक वंश वादी व्यवस्था का सबसे बड़ा सच यह है कि तेजस्वी यादव लालू यादव और राबड़ी यादव के सुपुत्र हैं और उनका खुद का कोई वजूद नहीं है, ना ही खुद का कोई अनुभव है और ना तो उन्होंने मिट्टी से जुड़े मुद्दों पर कभी कोई संघर्ष किया है। सोने का चम्मच लेकर के वह सियासत में आए हैं। इसीलिए खुद का कोई वजूद नहीं होना और पिता की पहचान से भी उन्हें अब डर लगने के कारण निसंदेह वह एक ऐसी परिस्थिति में पहुंच गए हैं कि न तो उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं का साथ मिल रहा है और  न ही उनके गठबंधन का और जनता ने तो उन्हें सिरे से ख़ारिज ही कर दिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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