चीन को घेरने के लिए भारत की त्रिमूर्ति ने बनाई रणनीति, Rajnath Singh, Ajit Doval ड्रैगन के खिलाफ चीन से संभालेंगे कमान, US से पोजिशन संभालेंगे Jaishankar

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राजनाथ सिंह के एससीओ के सिद्धांतों के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को रेखांकित करने, वृहद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा प्राप्त करने की दिशा में भारत के दृष्टिकोण पर जोर देने और क्षेत्र में आतंकवाद को खत्म करने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान करने की उम्मीद है।

पाकिस्तान का दोस्त चीन एक बार फिर सुर्खियों में है क्योंकि वह इस सप्ताह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों और रक्षा मंत्रियों का सम्मेलन आयोजित कर रहा है। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए जहां एनएसएस अजीत डोभाल पहुँच चुके हैं वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी बुधवार को चीन के लिए उड़ान भरने वाले हैं। इस तरह एक ओर रक्षा मंत्री और एनएसए ने जहां चीन को समझाने के लिए कमान संभाल रखी है तो दूसरी ओर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन को घेरने के लिए अमेरिका में पोजिशन ले ली है। देखा जाये तो भारत की यह त्रिमूर्ति चीन को समझाने और उसके नहीं समझने पर उस पर दबाव बनाने की योजना पर तेजी से काम कर रही है। हम आपको बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले महीने चले सैन्य टकराव के दौरान पाकिस्तान की खुल कर मदद करने वाला चीन इस समय भारत से आंखें नहीं मिला पा रहा है।

एनएसए की चीन यात्रा की बात करें तो आपको बता दें कि सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान के समर्थन का परोक्ष उल्लेख करते हुए, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने सोमवार को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बैठक के दौरान क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए सभी प्रकार के आतंकवाद का मुकाबला करने की आवश्यकता पर बल दिया। डोभाल ने आतंकवाद का मुकाबला करने पर ऐसे वक्त जोर दिया है जब लगभग डेढ़ महीने पहले भारत ने 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान में कई आतंकवादी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया था। डोभाल और वांग ने भारत-चीन संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर भी विचार-विमर्श किया। हम आपको बता दें कि दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख सीमा गतिरोध के बाद संबंधों में आए तनाव को दूर करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

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विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि दोनों देशों ने भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में हाल के घटनाक्रम की समीक्षा की और लोगों के बीच अधिक से अधिक संपर्क बढ़ाने सहित द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित किया। बयान में कहा गया, ‘‘एनएसए ने क्षेत्र में समग्र शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सभी प्रकार के आतंकवाद का मुकाबला करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।’’ इस टिप्पणी को चीन को एक अप्रत्यक्ष संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है कि वह अपने सदाबहार मित्र पाकिस्तान पर अपनी धरती से गतिविधियां चला रहे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव डाले। विदेश मंत्रालय ने कहा कि डोभाल और वांग ने आपसी हित के अन्य द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया। बयान के अनुसार, ‘‘एनएसए ने कहा कि वह विशेष प्रतिनिधि (एसआर) वार्ता के 24वें दौर के लिए पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तिथि पर भारत में वांग यी के साथ बैठक करने के लिए उत्सुक हैं।''

वहीं, भारत में चीनी राजदूत शू फेइहोंग के अनुसार, वांग ने कहा कि चीन-भारत संबंधों में कुछ सकारात्मक प्रगति हुई है और यह आवश्यक है कि दोनों पक्ष संवाद को और बढ़ाएं, आपसी विश्वास का निर्माण करें तथा व्यावहारिक मुद्दों को सुलझाने की दिशा में काम करें। शू फेइहोंग ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘केवल तभी दोनों देशों के लिए फायदेमंद स्थिति हो सकती है जब भारत और चीन मिलकर करेंगे। चीन और भारत को संवेदनशील मुद्दों को उचित तरीके से संभालना चाहिए और सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखना चाहिए।’’ राजदूत ने कहा, ‘‘डोभाल ने कहा कि भारत बहुपक्षीय क्षेत्रों में चीन के साथ सहयोग मजबूत करने का इच्छुक है और एक सफल शिखर सम्मेलन की मेजबानी में शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता के रूप में चीन की भूमिका का पूर्ण समर्थन करता है।’’

जहां तक रक्षा मंत्री की चीन यात्रा की बात है तो आपको बता दें कि पाकिस्तान के समर्थन से जारी सीमापार आतंकवाद के विरुद्ध भारत के कूटनीतिक प्रयासों की तर्ज पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को चीन के किंगदाओ में शुरू होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के दो दिवसीय सम्मेलन में आतंकवाद को खत्म करने के लिए प्रयास बढ़ाने पर जोर देंगे। राजनाथ सिंह सम्मेलन के लिए चीन के पूर्वी शांदोंग प्रांत के बंदरगाह शहर किंगदाओ की यात्रा कर रहे हैं, जहां क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य पर विचार-विमर्श होने की उम्मीद है। रक्षा मंत्री की आतंकवाद से निपटने के लिए अधिक क्षेत्रीय सहयोग का आह्वान करने की योजना, पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में भारत द्वारा पाकिस्तानी क्षेत्र में नौ आतंकवादी ठिकानों पर सटीक हमले किए जाने के लगभग डेढ़ महीने बाद सामने आई है। हम आपको यह भी बता दें कि मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध के बाद संबंधों में गंभीर तनाव पैदा होने के बाद से यह किसी वरिष्ठ भारतीय मंत्री की चीन की पहली यात्रा है।

एक आधिकारिक वक्तव्य के अनुसार, राजनाथ सिंह के एससीओ के सिद्धांतों के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को रेखांकित करने, वृहद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा प्राप्त करने की दिशा में भारत के दृष्टिकोण पर जोर देने और क्षेत्र में आतंकवाद और उग्रवाद को खत्म करने के लिए संयुक्त और सतत प्रयासों का आह्वान करने की उम्मीद है। बयान में कहा गया है कि रक्षा मंत्री एससीओ के भीतर अधिक व्यापार, आर्थिक सहयोग और संपर्क की आवश्यकता पर भी जोर दे सकते हैं। वह चीन और रूस सहित कुछ साझेदार देशों के रक्षा मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे। रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘‘भारत क्षेत्र में बहुपक्षवाद, राजनीतिक, आर्थिक और लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ावा देने में एससीओ को विशेष महत्व देता है।’’ बयान में कहा गया है कि एससीओ संप्रभुता, राष्ट्रों की क्षेत्रीय अखंडता, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, आपसी सम्मान, समझ और सभी सदस्य देशों की समानता के सिद्धांतों के आधार पर अपनी नीति का पालन करता है।

उधर, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बात करें तो आपको बता दें कि 1 जुलाई को अमेरिका में क्वॉड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होनी है जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर भाग लेंगे। बताया जा रहा है कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का फोकस चीन को घेरने पर रहेगा। चारों देश मौजूदा वैश्विक हालात पर चर्चा करने के अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रमकता को लेकर भी मंथन करेंगे। हम आपको बता दें कि ट्रंप प्रशासन के तहत यह क्वॉड की दूसरी बैठक है। यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होना है। ऐसे में चारों विदेश मंत्री अपने अपने राष्ट्राध्यक्षों की बैठक से संबंधित एजेंडा भी इस दौरान फाइनल करेंगे। हम आपको याद दिला दें कि जनवरी 2025 में हुई क्वॉड की बैठक में सदस्य देशों ने ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन की एकतरफा कार्रवाइयों का सख्त विरोध किया था।

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