RSS प्रमुख मोहन भागवत का मणिपुर में सद्भाव पर ज़ोर, कहा - भ्रांतियों से बचें, संघ को जानें

Mohan Bhagwat
ANI
अंकित सिंह । Nov 21 2025 12:28PM

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर में सामाजिक सद्भाव और सभ्यतागत एकता पर जोर देते हुए दीर्घकालिक शांति का आह्वान किया। उन्होंने राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका और इसके खिलाफ दुष्प्रचार को सत्य पर आधारित समझ के महत्व पर प्रकाश डाला।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मणिपुर की अपनी तीन दिवसीय यात्रा के पहले दिन शुक्रवार को इम्फाल में गणमान्य व्यक्तियों की एक सभा को संबोधित किया। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, अपने संबोधन में भागवत ने संघ की सांस्कृतिक भूमिका, राष्ट्रीय ज़िम्मेदारियों और एक शांतिपूर्ण एवं सुदृढ़ मणिपुर के लिए चल रहे प्रयासों पर विचार किया। भागवत ने कहा कि आरएसएस देश भर में रोज़ाना चर्चा का विषय बना हुआ है, जो अक्सर धारणाओं और दुष्प्रचार से प्रभावित होता है।

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संघ के कार्यों को अद्वितीय बताते हुए उन्होंने कहा कि आरएसएस की तुलना में कोई संगठन नहीं है, जैसे समुद्र, आकाश और महासागर की कोई तुलना नहीं है। आरएसएस का विकास स्वाभाविक है और इसकी कार्यप्रणाली इसकी स्थापना के 14 वर्षों के बाद स्पष्ट हो गई। इसे समझने के लिए शाखा जाना होगा। आरएसएस का उद्देश्य पूरे हिंदू समाज को संगठित करना है, जिसमें संघ का विरोध करने वाले भी शामिल हैं, न कि समाज के भीतर एक शक्ति केंद्र बनाना।

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरएसएस के खिलाफ गलत सूचना अभियान 1932-33 की शुरुआत में ही शुरू हो गए थे, जिनमें भारत के बाहर के स्रोत भी शामिल थे, जिन्हें भारत और उसके सभ्यतागत लोकाचार की समझ का अभाव था। सरसंघचालक ने धारणा-आधारित आख्यानों के बजाय सत्य पर आधारित संगठन को समझने की आवश्यकता पर बल दिया। आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार के जीवन को याद करते हुए, भागवत ने उनकी शैक्षणिक उत्कृष्टता, जन्मजात देशभक्तिपूर्ण गतिविधियों और तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम की सभी धाराओं में उनकी भागीदारी को रेखांकित किया। 

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उन्होंने कहा कि हेडगेवार द्वारा एक एकीकृत और गुणात्मक रूप से बेहतर समाज की आवश्यकता के एहसास ने आरएसएस के निर्माण को जन्म दिया। उन्होंने लोगों से जमीनी स्तर पर इसकी शाखा प्रणाली के माध्यम से संगठन को समझने का आग्रह करते हुए कहा, "संघ एक मानव-निर्माण पद्धति है।" उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में "हिंदू" शब्द एक धार्मिक पहचान के बजाय एक सांस्कृतिक और सभ्यतागत विवरणक है। बयान में आगे कहा गया, "यह (हिंदू) संज्ञा नहीं, बल्कि एक विशेषण है।"

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