कानून का शासन विश्व के आधुनिक संविधानों की सबसे मूलभूत विशेषता: प्रधान न्यायाधीश

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[email protected] । Feb 22 2020 5:09PM

सरकार सामाजिक सुधारों सहित कई सुधार लेकर आयी है। वेणुगोपाल ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना, स्वास्थ्य योजना और खाद्य सुरक्षा कानून जैसी योजनाओं का भी उल्लेख किया।

नयी दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे ने शनिवार को कहा कि कानून का शासन आधुनिक संविधानों की संभवत: ‘‘सबसे मूलभूत विशेषता’’ है और इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि दुनिया भर की न्यायपालिकाएं उभरती चुनौतियों पर किस तरह से प्रतिक्रिया करती हैं। सीजेआई यहां उच्चतम न्यायालय में ‘न्यायपालिका एवं बदलती दुनिया’ विषयक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीशों के सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने इसके साथ ही नागरिकों द्वारा अपने विधिक कर्तव्यों का पालन करने की जरूरत पर भी जोर दिया।उन्होंने कहा, ‘‘सबसे आधुनिक संविधानों की सबसे बुनियादी विशेषता संभवत: कानून का शासन का विचार है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप से, हमारे देशों में कानून के शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि न्यायपालिका ऐसी चुनौतियों को लेकर किस तरह से प्रतिक्रिया करती हैं और वे किस तरह से उभरती हैं।’’

न्यायमूर्ति बोबडे ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह अक्सर कानून में अंतर्निहित होता है कि ‘‘कानूनी अधिकारों का कानूनी कर्तव्यों के साथ सहसंबंध हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अक्सर जिसे नजरअंदाज किया जाता है वह है मौलिक कर्तव्य संबंधी अध्याय जो प्रत्येक नागरिक के लिए संविधान का पालन जरूरी बनाता है।’’सीजेआई ने कहा कि 50 से अधिक देशों के संविधानों में मौलिक कर्तव्यों संबंधी विशिष्ट प्रावधान हैं। न्यायमूर्ति बोबडे ने महात्मा गांधी का हवाला देते हुए कहा कि अधिकारों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति के कर्तव्य की भावना पर निर्भर करता है और ‘‘वास्तविक अधिकार कर्तव्य के प्रदर्शन का परिणाम होते हैं।’’सीजेआई ने  अद्भुत प्रौद्योगिकीय प्रगति  का भी उल्लेख किया और कहा कि अब पूरी दुनिया आपस में जुड़ी हुई है और विश्व के एक कोने में छोटे से परिवर्तन से विश्व के विभिन्न हिस्सों में बदलाव हो सकते हैं।उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया भर की न्यायपालिकाएं इस तरह के बदलाव का सामना कर रही हैं, जिसे अधिकार क्रांति, एक प्रौद्योगिकी क्रांति और जनसांख्यिकीय क्रांति कहा जा सकता है। हमारे फैसले अब केवल उन लोगों को प्रभावित नहीं करते हैं जो हमारे अधिकार क्षेत्र में रहते हैं, बल्कि उन्हें भी प्रभावित करते हैं जो कुछ दूर अन्य अधिकारक्षेत्रों में रहते हैं।’’ उन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित इस तरह के पहले सम्मेलन की सफलता की कामना की जिसमें 20 से अधिक देशों के न्यायाधीश हिस्सा ले रहे हैं।  उन्होंने कहा कि यह न्यायाधीशों को ‘‘विचारों के आदान-प्रदान करने का मौका तो देगा ही साथ ही इससे उन्हें लैंगिक न्याय, गोपनीयता के अधिकार, लोकलुभावनवाद, पर्यावरण और सतत विकास के कई पहलुओं पर एकदूसरे से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।’’ 

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उन्होंने कहा कि संविधान ने एक ‘‘मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका’’ का निर्माण किया हैजिसे कार्यपालिका और विधायिका से अलग किया गया था। सीजेआई ने भारतीय न्यायशास्त्र के 2,000 साल पुराने इतिहास का उल्लेख किया और कहा, ‘‘भारत में अदालतों की एक अच्छी तरह से स्थापित प्रणाली थी। नियम धर्मग्रंथों में निहित थे जो अदालतों में अदालत के अधिकारियों की उपस्थिति में अदालतों में एक अनिवार्य खुली सुनवाई अनिवार्य बनाते थे।’’ उन्होंने ‘व्यास स्मृति’ का भी उल्लेख किया और कहा कि वह ‘‘एक वैध निर्णय के विभिन्न चरण’’ प्रदान करता था।  उन्होंने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में ग्राम पंचायतों द्वारा न्याय प्रदान करने की प्राचीन प्रथा का उल्लेख किया। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस मौके पर संबोधन दिया। उन्होंने गरीबी के मुद्दे को उठाया और इसे मिटाने के लिए लगातार सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों और कल्याणकारी परियोजनाओं का उल्लेख किया।उन्होंने कहा, ‘‘अब, यह हर किसी को समझना चाहिए कि भारत एक विशाल देश है और जब हमें आजादी मिली और 1950 में जब संविधान लागू किया गया, तो जनगणना से पता चला कि 70 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे थे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘200 साल के ब्रिटिश शासन के बाद देश की यही स्थिति थी। अब, यह आज घटकर 21 प्रतिशत रह गया है और मुझे लगता है कि यह सरकारों के प्रयासों के चलते हुआ है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार सामाजिक सुधारों सहित कई सुधार लेकर आयी है। वेणुगोपाल ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना, स्वास्थ्य योजना और खाद्य सुरक्षा कानून जैसी योजनाओं का भी उल्लेख किया।

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