अफगानिस्तान से लौटे सिख शरणार्थियों से मिले विदेश मंत्री, कहा- अगर CAA नहीं होता तो इन लोगों का क्या होता

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ANI
अंकित सिंह । Jun 8 2023 4:43PM

विदेश मंत्री ने कहा कि मैं अफगानिस्तान से भारत आए सिखों से मिलना चाहता था और उनके मुद्दों को समझना चाहता था। उन्हें वीजा और नागरिकता को लेकर कुछ दिक्कतें हैं। हम उन मुद्दों का समाधान करेंगे जिन पर उन्होंने हमारे साथ चर्चा की है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरु अर्जुन देव गुरुद्वारा में दर्शन किया। इसके बाद उन्होंने अफगान सिख शरणार्थियों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को सुना। मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि मैं अफगानिस्तान से भारत आए सिखों से मिलना चाहता था और उनके मुद्दों को समझना चाहता था। उन्हें वीजा और नागरिकता को लेकर कुछ दिक्कतें हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हम उन मुद्दों का समाधान करेंगे। इस दौरान विदेश मंत्री ने नागरिकता संशोधन अधिनियम का भी जिक्र किया जिसको लेकर देश में लंबे समय तक विरोध चला था।

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वीजा की दिक्कत

विदेश मंत्री ने कहा कि मैं अफगानिस्तान से भारत आए सिखों से मिलना चाहता था और उनके मुद्दों को समझना चाहता था। उन्हें वीजा और नागरिकता को लेकर कुछ दिक्कतें हैं। हम उन मुद्दों का समाधान करेंगे जिन पर उन्होंने हमारे साथ चर्चा की है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग अभी भी अपनी नागरिकता पाने का इंतजार कर रहे हैं। नागरिकता और वीजा को लेकर हम हर संभव मदद मुहैया कराएंगे। उनकी मदद करना हमारी जिम्मेदारी है। जयशंकर ने यह भी कहा कि उन्होंने बताया कि कुछ लोग वापस जाना चाहते हैं क्योंकि वहां उनकी संपत्ति और गुरुद्वारे हैं उन्हें चिंता है। इस आने-जाने की व्यवस्था कैसे हो क्योंकि इसके लिए वीज़ा की दिक्क़त है। इन लोगों को डबल-ट्रिपल एंट्री वीज़ा मिलना चाहिए। 

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CAA का जिक्र

एस जयशंकर ने कहा कि कुछ लोग अपनी नागरिकता का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ लोगों ने अपने बच्चों के लिए भारत की नागरिकता ली है जिसमें उनको बाद में कुछ दिक्क़तें आईं। उनको डर है कि हमारा सिस्टम आगे चलकर उनको मदद करने की जगह उन पर बोझ न डाले। यह छोटी चीज़ें आम लोगों के लिए बहुत बड़ी होती हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उस क़ानून (नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)) के कारण इन लोगों को विश्वास था कि हम आएंगे। अगर वह क़ानून नहीं होता तो इन लोगों का क्या होता? कभी-कभी हम हर चीज़ को राजनीति (का मुद्दा) बना देते हैं। यह राजनीति का मामला नहीं बल्कि इंसानियत का मामला है। उस हालात में इन लोगों को कौन छोड़ सकता था?

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