पंजाब में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकता है संयुक्त समाज मोर्चा, समझिए किसानों से किसको होगा फायदा-नुकसान

Balbir Rajewal
प्रतिरूप फोटो

संयुक्त समाज मोर्चा भाजपा के समीकरण को शायद ही बिगाड़ पाए क्योंकि भाजपा का ग्रामीण क्षेत्रों में आधार बहुत कम है। इसीलिए पंजाब में भाजपा को शहरी पार्टी कहा जाता है। इतना ही नहीं ग्रामीण इलाकों में जहां किसानों की तादाद ज्यादा है वहां पर भाजपा का विरोध हो सकता है।

चंडीगढ़। पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इससे पहले राजनीतिक दलों के समीकरण तेजी से गड़बड़ा गए हैं। आपको बता दें कि किसान आंदोलन के हिस्सा रहे 32 में से 22 संगठनों ने एक साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इतना ही नहीं उन्होंने तो एक राजनीतिक दल संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) भी बना लिया है और इसी के माध्यम से 22 संगठनों के किसान एकजुट होकर 117 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले हैं। 

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संयुक्त समाज मोर्चा के चुनाव लड़ने का ऐलान करने के साथ ही सूबे के राजनीतिक दलों के समीकरण बिगड़ गए हैं। दरअसल, भरपूर जल स्त्रोतों और उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेश में कांग्रेस और अकाली दल के बीच ही मुकाबला होता था लेकिन इस बार कांग्रेस और अकाली दल के अलावा आम आदमी पार्टी, भाजपा और संयुक्त समाज मोर्चा भी मैदान पर उतर गया है। भाजपा ने तो पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर की पार्टी के साथ गठबंधन कर अकाली दल और कांग्रेस को परास्त करने की रणनीति तैयार कर ली है।

संयुक्त समाज मोर्चा को कितना होगा फायदा ?

संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 32 से ज्यादा किसान संगठनों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक साल तक केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन किया और फिर सरकार द्वारा कानूनों को वापस लिए जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन को स्थगित कर दिया और किसान अपने-अपने घरों को लौट गए। लेकिन कुछ वक्त बाद संयुक्त किसान मोर्चा दो फाड़ हो गया और 32 में से 22 संगठन एकजुट होकर संयुक्त समाज मोर्चा के बैनर तले आगामी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया और बाकी के किसान संगठनों ने राजनीति से दूरी बनाने का निर्णय किया और समाजसेवा करते रहने की बात कही।

माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में किसानों की अहम भागीदारी रहने वाली है, इसीलिए 22 किसानों संगठनों ने भी राजनीति में आने का निर्णय लिया। इसके अलावा किसानों के आंदोलन के चलते नए नई सोच का भी जन्म हुआ है। इसी की वजह से पंजाब के सभी लोग अपने आप को किसान मानकर आगे बढ़ रहे हैं और शायद यही वजह भी रही की किसान आंदोलन सालभर चल सका। अगर ऐसे में किसानों ने क्षेत्रीय दलों और अपने लोगों को चुनाव तो राष्ट्रीय पार्टियां बहुमत से काफी दूर रह जाएंगी और फिर नतीजे देखने लायक होंगे। 

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इतिहास के पन्नों को पलटे तो पंजाब में कांग्रेस और अकालियों के पास ही सत्ता रही है। भाजपा भी अकाली दल के साथ ही छोटे भाई के तौर पर चुनाव लड़ती थी लेकिन कृषि कानूनों की वजह से अकाली अलग हो गए और फिर भाजपा उन्हें मानने में जुट गई लेकिन बात नहीं बनी। तब भाजपा ने अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींडसा के शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ अपना अलग चुनावी गठबंधन कर लिया।

आपको बता दें कि संयुक्त समाज मोर्चा भाजपा के समीकरण को शायद ही बिगाड़ पाए क्योंकि भाजपा का ग्रामीण क्षेत्रों में आधार बहुत कम है। इसीलिए पंजाब में भाजपा को शहरी पार्टी कहा जाता है। इतना ही नहीं ग्रामीण इलाकों में जहां किसानों की तादाद ज्यादा है वहां पर भाजपा का विरोध हो सकता है लेकिन भाजपा तो गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने वाली है।

विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त समाज मोर्चा किसी भी दल का गेम बिगाड़ सकती है। हालांकि यह भी स्पष्ट है कि संयुक्त समाज मोर्चा अकेले बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं जुटा पाएगी। ऐसे में शायक त्रिशंकु विधानसभा देखने को मिल सकती है। 

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वहीं, आम आदमी पार्टी प्रदेश की स्थिति को समझने में जुटी हुई है और किसानों का लगातार समर्थन करने की भी बात कहती रही है। इसी बीच खबरें हैं कि आम आदमी पार्टी पर्दे के पीछे संयुक्त समाज मोर्चा के साथ गठबंधन की बातचीत कर रही है। हालांकि संयुक्त समाज मोर्चा में इसकी वजह से फूट पड़ने की स्थिति भी पैदा हो गई है। क्योंकि एक धड़ा अकेले चुनाव लड़ने की बात कह रहा है, जबकि दूसरा धड़ा आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को तरजीह देना चाहता है।

क्या 21 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगा SSM

संयुक्त समाज मोर्चा के मुखिया बलवीर राजेवाल की दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ बातचीत हुई। आपको बता दें कि आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने 96 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। ऐसे में अगर गठबंधन होता है तो महज 21 सीटें ही संयुक्त समाज मोर्चा के लिए बचेगी।

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