Kesavananda Bharati judgment: वो फैसला जिससे घुटने पर आ गईं थीं इंदिरा गांधी, इसकी 50वीं वर्षगांठ, SC ने मामले को समर्पित वेबपेज बनाया
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भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आज केशवानंद भारती के फैसले की 50वीं वर्षगांठ है। हमने फैसले और उस मामले की सभी याचिकाओं और दस्तावेजों के लिए एक समर्पित वेबपेज बनाया है।
केशवानंद भारती के फैसले की स्वर्ण जयंती को चिह्नित करने के लिए भारत के संवैधानिक कानून की आधारशिला, सर्वोच्च न्यायालय ने एक समर्पित वेब पेज स्थापित किया है जिसमें सभी लिखित प्रस्तुतियाँ और ऐतिहासिक मामले से संबंधित अन्य जानकारी शामिल हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आज केशवानंद भारती के फैसले की 50वीं वर्षगांठ है। हमने फैसले और उस मामले की सभी याचिकाओं और दस्तावेजों के लिए एक समर्पित वेबपेज बनाया है। यहां वेबपेज देखें: http://judgments.ecourts.gov.in/KBJ/
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1973 का वो केस जिसकी सुनवाई 68 दिनों तक चली, सुनवाई के दौरान लगभग 100 केस खंगाले गए। अटॉर्नी जनरल ने 71 देशों के चार्ट कोर्ट में किए पेश। न्यायालय के फैसले को प्रभावित करने की पुरजोर कोशिश सत्ताधारी ताकतों की ओर से की गई। जिसमें अहम भूमिका निभाने के तात्कालिक कानून मंत्री और तत्कालीन स्टील मंत्री पर लगे आरोप। 24 अप्रैल, 1973 को, सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय जारी किया जिसने भारतीय संविधान के मूल संरचना सिद्धांत को रेखांकित किया। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में अपने फैसले में अदालत ने संविधान में उन संशोधनों को रद्द करने के अपने अधिकार पर जोर दिया जो संविधान की मौलिक संरचना का उल्लंघन करते थे।
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3 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया था। लगातार न्यायालय में मिल रही हार से सबक लेते हुए केशवानंद भारती केस में इंदिरा गांधी ने पूरी तैयारी कर ली थी। 68 दिन तक चली सुनवाई के दौरान लगभग 100 केस खंगाले गए। अटॉर्नी जनरल ने लगभग 71 देशों के संविधान में संसद द्वारा संविधान में संशोधन करने वाले अधिकारों का चार्ट कोर्ट के समक्ष पेश किया। जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फ़ैसला सुनाया तब सुनवाई कर रही पीठ दो भागों में बट चुकी थी। 7 जज जहां इस फ़ैसले के पक्ष में थे, वहीं 6 जज इससे सहमत नहीं थे। खैर, न्यायालय ने तय किया कि संसद के पास संविधान को संशोधित करने का अधिकार है, किन्तु वह किसी भी सूरत में संविधान के मूलभूत ढांचे को नहीं बदल सकते। बुनियादी ढांचे का मतलब है संविधान का सबसे ऊपर होना, कानून का शासन, न्यायपालिका की आजादी, संघ और राज्य की शक्तियों का बंटवारा, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभुता, सरकार का संसदीय तंत्र, निष्पक्ष चुनाव आदि।
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