लोया की मौत की स्वतंत्र जांच से SC का इनकार, याचिकाकर्ताओं को लगाई फटकार

SC rejects SC''s plea for Loya''s death, plea for petitioners
[email protected] । Apr 19 2018 4:17PM

उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने वाले विशेष न्यायाधीश बी एच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के कारणों की स्वतंत्र जांच के लिये दायर याचिकायें तीखी टिप्पणियां करने के साथ खारिज कर दीं।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने वाले विशेष न्यायाधीश बी एच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के कारणों की स्वतंत्र जांच के लिये दायर याचिकायें तीखी टिप्पणियां करने के साथ खारिज कर दीं। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि न्यायाधीश की स्वाभाविक मृत्यु हुयी थी और इन याचिकाओं में न्याय प्रक्रिया को बाधित करने तथा बदनाम करने के गंभीर प्रयास किये गये हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायाधीश लोया के निधन से संबंधित परिस्थितयों को लेकर दायर सारे मुकदमे इस फैसले के साथ समाप्त हो गये। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि न्यायाधीश लोया की मृत्यु को लेकर दायर सारी जनहित याचिकायें राजनीतिक हिसाब बराबर करने वाली ओछी और प्रायोजित थीं तथा न्यायिक अधिकारियों और बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिये प्रतिद्वन्द्विता ही इन याचिकाओं का मुखौटा थीं। 

न्यायाधीश लोया का एक दिसंबर, 2014 को नागपुर में निधन हो गया था जहां वह अपने एक सहयोगी की पुत्री के विवाह में शामिल होने गये थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि असंगत कारणों के साथ इस तरह के मुकदमों का बोझ अदालतों पर डाला गया तो न्यायिक प्रक्रिया एक पहेली बनकर रह जायेगी। पीठ ने कहा लोया की मृत्यु के कारणों की परिस्थितियों के बारे में चार न्यायाधीशों के बयानों पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है और रिकार्ड पर लाये गये दस्तावेजों और उनकी विवेचना से यह साबित होता है कि उनका निधन स्वाभाविक वजह से हुआ था। शीर्ष अदालत ने न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों पर आक्षेप लगाने के लिये याचिकाकर्ताओं और उनके वकीलों की तीखी आलोचना की। न्यायालय ने कहा कि उनके खिलाफ दुराग्रह पैदा करने का प्रयास किया गया और यह न्यायपालिका पर अपमानजनक हमला था। पीठ ने कहा कि इन याचिकाओं से यह साफ हो जाता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करने का हकीकत में प्रयास किया गया और पेश मामला व्यक्तिगत एजेन्डे को आगे बढ़ाने की मंशा जाहिर करता है। 

न्यायालय ने कहा कि याचिकाओं पर बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील न्यायाधीशों के प्रति विनम्रता बरतने का शिष्टाचार भूल गये और उन्होंने अनर्गल आरोप लगाये। न्यायालय ने कहा कि उसने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के बारे में सोचा लेकिन बाद में ऐसा नहीं करने का निश्चय किया। न्यायाधीश लोया के निधन से संबंधित विवरण के बारे में चार न्यायाधीशों- श्रीकांत कुलकर्णी और एस एम मोदक, वी सी बार्डे और रूपेश राठी - के बयानों पर भरोसा करते हुये शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘उनके बयानों की सच्चाई पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है।’’ पीठ ने कहा कि इन चार न्यायाधीशों के बयान भरोसेमंद, सुसंगत और सच्चाई से परिपूर्ण हैं और इन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। न्यायाधीश लोया और ये चार न्यायाधीश शादी में शामिल होने के लिये एकसाथ ही नागपुर गये थे और सरकार द्वारा संचालित वीआईपी अतिथि गृह रवि भवन में रूके थे जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। 

पीठ की ओर फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा, ‘‘न्यायालय कारोबारी या राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता का हिसाब बराबर करने की जगह है जिसका बाजार या चुनाव में ही मुकाबला करना होगा। कानून की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है।’’ पीठ ने शीर्ष अदालत सहित न्यायाधीशों के खिलाफ आक्षेप लगाने के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, इन्दिरा जयसिंह और वकील प्रशांत भूषण के प्रयासों की आलोचना की।न्यायालय ने भूषण के इस तर्क को भी गंभीरता से लिया कि उसके दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ को इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए क्योंकि वे महाराष्ट्र से ही आते हैं और इस मामले में बंबई उच्च न्यायालय के संबंधित सभी न्यायाधीशों को जानते होंगे। न्यायाधीश लोया की मृत्यु का मामला पिछले साल नवंबर में उस समय चर्चा में आया जब मीडिया में उनकी बहन के उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर संदेह जताने की खबरें आयीं और इसे सोहराबुद्दीन मामले से जोड़ा गया।

हालांकि, लोया के बेटे ने इस साल 14 जनवरी को मुंबई में कहा कि उसके पिता की स्वाभाविक कारणों से मृत्यु हुयी थी।शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को संयुक्त प्रेस कांफ्रेस करके संवेदनशील मुकदमों को सुनवाई के लिये आबंटित करने के तरीके पर सवाल उठाये थे। न्यायाधीश लोया की मृत्यु का मामला भी इनमें से एक था। सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, राजस्थान के कारोबारी विमल पाटनी, गुजरात पुलिस के पूर्व मुखिया पी सी पाण्डे, राज्य पुलिस की अतिरिक्त महानिदेशक गीता जौहरी और गुजरात पुलिस के अधिकारी अभय चुड़ासमा और एन के अमीन को पहले ही आरोप मुक्त कर दिया गया था। पुलिसकर्मियों सहित अनेक आरोपी इस समय सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ कांड में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी थी और बाद में मुकदमा भी मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया था। न्यायाधीश लोया की मृत्यु की परिस्थितियों की स्वतंत्र जांच के लिये कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ओर महाराष्ट्र के पत्रकार बी एस लोन ने शीर्ष अदालत में याचिकायें दायर की थीं।

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