अवमानना मामले में SC ने सुरक्षित रखा फैसला, प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट का किया बचाव

Prashant Bhushan

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ,जिसने भूषण द्वारा कथित रूप से न्यायापालिका के खिलाफ अपमानजनक दो ट्वीट करने पर आपराधिक अवमाना की कार्यवाही शुरू करने के साथ 22 जुलाई को कारण बताओं नोटिस जारी किया था, ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया

नयी दिल्ली। कार्यकर्ता और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में उन दो ट्वीट का बचाव किया जिसमें कथित तौर पर अदालत की अवमानना की गई है। उन्होंने कहा कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ,जिसने भूषण द्वारा कथित रूप से न्यायापालिका के खिलाफ अपमानजनक दो ट्वीट करने पर आपराधिक अवमाना की कार्यवाही शुरू करने के साथ 22 जुलाई को कारण बताओं नोटिस जारी किया था, ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने रेखांकित किया,‘‘मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता को सुना जा चुका है और बहस पूरी हो गई है। ’’ न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखते हुए भूषण द्वारा अलग से दायर वह याचिका खारिज कर दी जिसमें उन्होंने 22 जुलाई के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था जिसके तहत न्यायपालिका की कथित रूप से अवमानना करने वाले दो ट्वीट पर अवमानना कार्यवाही शुरू करते हुए नोटिस जारी किया गया था। पीठसुनवाई के दौरान भूषण का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे के इस तर्क से सहमत नहीं हुई कि अलग याचिका में उस तरीके पर आपत्ति जताई है जिसमें अवमानना प्रक्रिया अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की राय लिए बिना शुरू की गई और उसे दूसरी पीठ में भेजा गया। 

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भूषण ने उच्चतम न्यायालय के महासचिव द्वारा कथित तौर पर असंवैधानिक और गैर कानूनी तरीके से उनके खिलाफ दायर त्रृटिपूर्ण अवमानना याचिका स्वीकार करने पर भी व्यवस्था देने का अनुरोध किया, जिसमें शुरुआत में याचिका प्रशासनिक के तौर पर स्वीकार की गई और बाद में न्यायिक के तौर पर। न्यायालय ने आदेश में कहा, ‘‘मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता (दवे) को सुना। हमें इस रिट याचिका पर सुनवाई का आधार नहीं दिखता और इसलिए इसे खारिज किया जाता है। लंबित वादकालीन आवेदन खारिज माना जाए।’’ दवे ने इसके बाद भूषण के खिलाफ दायर अवमानना मामले में बहस की और कहा, ‘‘दो ट्वीट संस्था के खिलाफ नहीं थे। वे न्यायाधीशों के खिलाफ उनकी व्यक्तिगत क्षमता के अंतर्गत निजी आचरण को लेकर थे।वे दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं और न्याय के प्रशासन में बाधा नहीं डालते हैं। ” उन्होंने कहा, ‘‘भूषण ने न्यायशास्त्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है और कम से कम निर्णयों का श्रेय उन्हें जाता है। दवे ने कहा कि अदालत ने टूजी, कोयला खदान आवंटन घोटाले औरखनन मामले में उनके योगदान की सराहना की है। उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक कि गत 30 साल के उनके कार्यों के लिए पद्म विभूषण दिया गया है।’’ दवे ने कहा कि यह मामला नहीं है जिसमें उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाहीशुरू की जाए। आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों के स्थगित करने के एडीएम जबलपुर के मामले का संदर्भ देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अत्यंत असहनीय टिप्पणी किए जाने के बावजूद अवमानना की कार्यवाही नहीं की गई। अपने 142 पन्नों के जवाब में भूषण ने अपने दो ट्वीट पर कायम रहते हुए कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति, ‘हालांकि मुखर, असहमत या कुछ लोगों के प्रति असंगत’ होने की वजह से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती। वहीं शीर्ष अदालत ने भूषण के ट्वीट का संदर्भ देते हुए कहा कि प्रथमदृष्टया यह आम लोगों की नजर में सामान्य तौर पर उच्चतम न्यायालय की संस्था और भारत के प्रधान न्यायाधीश ‘की शुचिता और अधिकार’ को कमतर करने वाला है।

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