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राजस्थान के सामाजिक न्याय मंत्री मेघवाल का निधन, मुख्यमंत्री गहलोत ने जताया शोक
- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
- नवंबर 16, 2020 20:58
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट किया कि मंत्रिमंडलीय सहयोगी मास्टर भंवर लाल के निधन का गहरा दुख है। हम 1980 से साथ थे।
जयपुर। राजस्थान के सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री मास्टर भंवर लाल मेघवाल का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को निधन हो गया। राज्य सरकार ने उनके सम्मान में मंगलवार को एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। सुजानगढ़ से विधायक रहे मास्टर मेघवाल (72) इस साल मई में मस्तिष्काघात के बाद गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पांच बार विधायक रहे मेघवाल के निधन पर शोक जताया है। गहलोत ने ट्वीट किया, ‘मंत्रिमंडलीय सहयोगी मास्टर भंवर लाल के निधन का गहरा दुख है। हम 1980 से साथ थे।
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राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अन्य नेताओं ने भी मेघवाल के निधन पर शोक जताया है। राज्य सरकार ने मंत्री मेघवाल के निधन पर मंगलवार को एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। इसके मद्देनजर कांग्रेस ने मंगलवार को प्रस्तावित निकाय एवं पंचायत चुनाव कार्यशाला स्थगित कर दी है। इस कार्यशाला में पार्टी के प्रदेश प्रभारी अजय माकन व मुख्यमंत्री गहलोत भी भाग लेने वाले थे। मेघवाल चुरू जिले की सुजानगढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे। इस साल मई में मस्तिष्काघात के बाद से वह बीमार चल रहे थे। पिछले दिनों उनकी बेटी बनारसी देवी का ह्रदयाघात से निधन हो गया था।
Deeply saddened at the passing away of my ministerial colleague Master Bhanwar Lal Meghwal ji after a prolonged illness. We have been together since 1980. My heartfelt condolences to his family members in this most difficult time, may God give them strength. May his soul RIP.
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) November 16, 2020
वार्ता से पहले प्रदर्शनकारी किसान नेता ने कहा, सरकार का अभी भी समाधान निकालने का नहीं बना मन
- अनुराग गुप्ता
- जनवरी 20, 2021 12:14
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सरकार-किसान वार्ता से पहले सिंधु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान नेता का कहना है कि आज की बैठक भी पहले जैसे ही होगी। बैठक से हमें कोई उम्मीद नहीं।
नयी दिल्ली। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर 55 दिनों से किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई 40 किसान संगठन कर रहे हैं और यही संगठन सरकार के साथ वार्ता में भी शामिल हैं। बता दें कि सरकार-किसान संगठनों के बीच बुधवार को दसवें दौर की वार्ता होनी है। हालांकि, अभी तक हुई वार्ता में कोई समाधान नहीं निकला है।
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सरकार-किसान वार्ता से पहले सिंधु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान नेता का कहना है कि आज की बैठक भी पहले जैसे ही होगी। बैठक से हमें कोई उम्मीद नहीं। दरअसल, समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत करते हुए किसान नेता ने कहा कि आज की बैठक भी पहले जैसे ही होगी। बैठक से हमें कोई उम्मीद नहीं है। जब भी बैठक होती है हम इसलिए जाते हैं कि सरकार हमारे साथ बैठक कर इसका हल निकाले। लेकिन हल निकालने का सरकार का अभी भी मन नहीं बना है।
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उल्लेखनीय है कि किसान संगठनों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह तीनों कृषि कानूनों को वापस लें। जबकि सरकार बार-बार यही कह रही है कि वह कानूनों को वापस नहीं लेने वाली लेकिन कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है। हालांकि अब तक नौ दौर की वार्ता हो चुकी है और किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं।
आज की बैठक भी पहले जैसे ही होगी। बैठक से हमें कोई उम्मीद नहीं। जब भी बैठक होती है हम इसलिए जाते हैं कि सरकार हमारे साथ बैठक कर इसका हल निकाले। लेकिन हल निकालने का सरकार का अभी भी मन नहीं बना है: किसानों और सरकार के बीच आज होने वाली वार्ता पर एक किसान नेता, सिंघु बॉर्डर #farmslaws pic.twitter.com/hAulma5jYO
— ANI_HindiNews (@AHindinews) January 20, 2021
संविधान को जानें: क्या आप अपने कर्तव्यों से वाकिफ हैं ? जानिए क्या होते हैं मौलिक कर्तव्य
- अनुराग गुप्ता
- जनवरी 20, 2021 12:03
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अनुच्छेद 51(क) के तहत 11 मौलिक कर्तव्य हैं। 42वें संविधान संशोधन के जरिए 10 अधिकारों को जोड़ा गया था जबकि 11वें मौलिक कर्तव्य को 86वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था और यह संशोधन साल 2002 में हुआ था।
नयी दिल्ली। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है और संविधान के तहत भारत के नागिरकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं लेकिन अक्सर लोग मौलिक अधिकारों को ही बात करते हैं। जबकि संविधान में मौलिक कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है। मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों की एक-दूसरे के बिना कल्पना नहीं की जा सकती है। जहां पर अधिकार हैं वहीं पर कर्तव्य भी होंगे और आज हम अपनी नई सीरीज संविधान को जानें में मौलिक कर्तव्यों के बारे में आपको बताएंगे। जिसकी जानकारी देश के हर एक नागरिक को होनी चाहिए।
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आपको बता दें कि भारत के संविधान में पहले मौलिक अधिकारों का ही उल्लेख था लेकिन साल 1976 में सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया था। मौलिक कर्तव्यों को संविधान के भाग-4 (क) में अनुच्छेद 51(क) में परिभाषित किया गया है।
अनुच्छेद 51(क) के तहत भारत के हर एक नागरिक के कर्तव्य इस प्रकार से हैं:-
- भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्दय में संजोए रखें एवं उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
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- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण की (जिसके तहत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं) रक्षा करें और उसका संवर्धन करें। इसके अतिरिक्त प्राणिमात्र के प्रति दया का भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
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- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छू ले।
- 6 से 14 साल तक की उम्र के बीच अपने बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करना। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया।
आपको जानकारी दे दें कि अनुच्छेद 51(क) के तहत 11 मौलिक कर्तव्य हैं। 42वें संविधान संशोधन के जरिए 10 अधिकारों को जोड़ा गया था जबकि 11वें मौलिक कर्तव्य को 86वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था और यह संशोधन साल 2002 में हुआ था।
बैलट पेपर से आज यदि चुनाव को जाये तो भाजपा साफ हो जाएगी- अजय सिंह
- दिनेश शुक्ल
- जनवरी 20, 2021 11:46
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पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि हर बार भाजपा वाले चुनाव के पहले ही बता देते हैं कि कितनी सीटें जीतेंगे और लगभग उतनी ही आती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कहा था कि तीन सौ पार और इतनी सीटें आ गई। अब बंगाल में कह रहे हैं कि दो सौ पार। इस आत्मविश्वास के पीछे दाल में जरूर कुछ न कुछ काला है।
भोपाल। मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने छतरपुर में कृषि बिलों के विरोध में आयोजित विशाल किसान रैली में कहा कि आज यदि पूरे देश और राज्यों में बैलट पेपर से चुनाव हो जायें तो बी.जे.पी. साफ हो जाएगी। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में इनके एक भी व्यक्ति ने हिस्सा नहीं लिया। बीजेपी में एक भी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी नहीं हैं, जिसका वे नाम ले सकें। अजय सिंह ने कहा कि जब तक केंद्र में बीजेपी की सरकार है, तब तक किसान, गरीब, दलित और आदिवासी की सुनवाई नहीं होगी।
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इस दौरान अजय सिंह ने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तब गांधी, नेहरू, आजाद, अंबेडकर सहित सैकड़ों बड़े कांग्रेसी नेताओं ने संकल्प लिया था कि देश के गरीबों और वंचित लोगों को हर तरह के साधन उपलब्ध कराएंगे। लेकिन बी.जे.पी. की सोच इसके बिलकुल उलट है। वह आर.एस.एस. के इशारे पर चलती है जिसकी सोच यह है कि जब तक देश में 95 प्रतिशत जनता गरीब रहेगी, तब तक ही हम सत्ता में रह पाएंगे। इसलिए ये हर वर्ग को आर्थिक रूप से कमजोर करने में लगे हुये हैं। भाजपा के नेताओं में दया भाव बिलकुल नहीं है। देश का किसान दिल्ली में मर रहा है लेकिन सत्ता में काबिज लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की माँ के देहांत पर प्रधानमंत्री मोदी शोक संदेश भेजते हैं लेकिन जो किसान मर रहे हैं उनके बारे में वे एक शब्द नहीं बोलते हैं। यहाँ तक कि उनसे बात भी नहीं करते हैं।
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सिंह ने कहा कि अंग्रेजों ने दो सौ साल भारत पर राज किया| एक ईस्ट इंडिया कंपनी थी जिसके कारण भारत गुलाम हुआ। वही इतिहास फिर दोहराया जा रहा है। आज दो-चार बड़ी कंपनियाँ हैं जिनके कारण किसानों के साथ साथ हर वर्ग गुलाम होता जा रहा है। अब यह दूसरी आजादी की लड़ाई हमारे किसान लड़ रहे हैं। उनकी सोच है कि किसान चाहे मर जाएँ लेकिन वही होगा जो हम दिल्ली में बैठकर तय करेंगे। अभी सिर्फ छह साल हुये हैं बी.जे.पी. को सत्ता में आए लेकिन देश कहाँ से कहाँ पहुँच गया। नोटबंदी ने तो सबका दिवाला ही निकाल दिया। बड़ी बड़ी कंपनियाँ और ताक़तें लगी हैं जिन्होंने भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया। यदि हमने कमजोरी दिखाई तो हम फिर से गुलाम हो जाएँगे। इसलिए इनकी नीतियों के खिलाफ लड़ने के लिए कमर कस लो, लड़ाई लंबी है।
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पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि हर बार भाजपा वाले चुनाव के पहले ही बता देते हैं कि कितनी सीटें जीतेंगे और लगभग उतनी ही आती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कहा था कि तीन सौ पार और इतनी सीटें आ गई। अब बंगाल में कह रहे हैं कि दो सौ पार। इस आत्मविश्वास के पीछे दाल में जरूर कुछ न कुछ काला है। उन्होंने कहा कि एक हमारे मामा हैं शिवराज सिंह। उन्हें जनता ने 15 साल बाद बाहर किया| लेकिन उन्हें सत्ता की ऐसी भूख जगी कि खरीद फरोख्त करके येन केन प्रकारेण सत्ता हथिया ली। आज भी सत्तर प्रतिशत भाजपा के टिकाऊ इन बिकाऊ लोगों के खिलाफ हैं लेकिन मामा की सोच है कि सबको खरीद लो और सत्ता पर बने रहो। दिल्ली में इनके आका का बस चले तो यह भी कहने लगेंगे कि नवरत्न कंपनियाँ हमने खोलीं| हीराकुंड और भाखरानंगल बांध हमने बनाया। श्वेत क्रांति और हरित क्रांति भी हम लाये। नेहरू द्वारा स्थापित सभी बड़े बड़े सरकारी प्रतिष्ठान बी.जे.पी. सरकार धीरे धीरे समाप्त करती जा रही है। इसलिए किसानों के संघर्ष में हर वर्ग को साथ देना है ताकि हम दूसरी गुलामी से बच सकें। इस अवसर पर आयोजित सभा को विधायकगण आलोक चतुर्वेदी, विक्रम सिंह नाती राजा, नीरज दीक्षित और पूर्व विधायक एस.पी. सिंह मुन्ना राजा आदि ने भी संबोधित किया।

