Jan Gan Man: क्या समलैंगिक विवाह को भारत में मंजूरी मिलनी चाहिए? Same Sex Marriages का Modi सरकार और RSS ने तो कर दिया है विरोध, क्या Supreme Court मंजूरी देगा?

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समलैंगिक विवाह को मंजूरी दिये जाने का मुद्दा गर्मा गया है। आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा, इस पर आगे क्या हो सकता है और संत समाज तथा आरएसएस का इस मुद्दे पर क्या सोचना है।

नमस्कार प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम जन गण मन में आप सभी का स्वागत है। देश में समलैंगिक विवाह का मुद्दा तेजी से गर्माता जा रहा है। इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया है। केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह को मान्यता दिये जाने के खिलाफ है। आरएसएस ने भी इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन कर दिया है तो वहीं समलैंगिकों का कहना है कि भारत एक आजाद देश है और यहां हर तरह की आजादी होनी चाहिए। एक पक्ष समलैंगिक विवाह के नुकसान बता रहा है तो दूसरा पक्ष इसके लाभ गिनाने में लगा है। वैसे दुनिया के कुछ देश हैं जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता है लेकिन भारतीय समाज क्या इसको स्वीकार करेगा, इस बात पर बड़ा प्रश्नचिह्न है। आइये आज के इस कार्यक्रम में समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा, आगे क्या हो सकता है और संत समाज तथा आरएसएस का इस मुद्दे पर क्या सोचना है। सबसे पहले बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट की।

उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं को इस सप्ताह पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजते हुए कहा है कि यह मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों से संबंधित है, जिसका एक-दूसरे पर प्रभाव है। पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि यदि उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हल किया जाता है, तो यह उचित होगा। इस प्रकार, हम मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश देते हैं।’’

18 अप्रैल को आयेगा बड़ा फैसला

उच्चतम न्यायालय ने मामले को 18 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई का सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाएगा, जैसा कि संविधान पीठ के समक्ष पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान किया जाता रहा है। हम आपको बता दें कि इस मामले में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से आग्रह किया कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर दोनों पक्षों की दलीलों में कटौती नहीं की जाये, क्योंकि इस फैसले का पूरे समाज पर प्रभाव पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं का केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विरोध किया है। मोदी सरकार ने दावा किया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना पर्सनल लॉ और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के बीच नाजुक संतुलन के ‘‘पूर्ण विनाश’’ का कारण बनेंगे।

केंद्र सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया है कि एक रिश्ते को कानूनी मंजूरी देना अनिवार्य रूप से विधायिका का कार्य है। सरकार ने यह भी कहा है कि अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाती है, तो इस मुद्दे का गोद लेने जैसे कानून पर प्रभाव पड़ सकता है। सुनवाई के दौरान पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘यह जरूरी नहीं है कि समलैंगिक जोड़े द्वारा गोद लिया हुआ बच्चा समलैंगिक हो।’’ अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने समलैंगिक जोड़ों के शादी करने के अधिकारों को मान्यता देने का अनुरोध किया है, और निजता के अधिकार तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा जताते हुए याचिकाकर्ताओं ने जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार, गरिमा के अधिकार एवं अन्य से जुड़े व्यापक संवैधानिक अधिकारों पर जोर दिया है। पीठ ने कहा कि उसके समक्ष उठाए गए मुद्दों में से एक ट्रांसजेंडर जोड़ों के विवाह के अधिकार से भी संबंधित है।

सरकारी हलफनामा

सुनवाई के दौरान सरकार ने हालांकि कहा है कि इस स्तर पर यह मानना आवश्यक है कि समाज में कई प्रकार के विवाह या संबंध या लोगों के बीच संबंधों पर व्यक्तिगत समझ हो सकती है, लेकिन राज्य सिर्फ विपरीत लिंग के लोगों के बीच होने वाले विवाह को ही मान्यता देता है। सरकारी हलफनामे में कहा गया है, ‘‘राज्य समाज में अन्य प्रकार के विवाह या संबंधों या लोगों के बीच संबंधों पर व्यक्तिगत समझ को मान्यता नहीं देता है, हालांकि ये गैरकानूनी नहीं हैं।’’ केन्द्र ने कहा है कि विपरीत लिंग के लोगों के बीच होने वाले विवाह को जो विशेष दर्जा प्राप्त है उसे संविधान के अनुच्छेद 15(1) के तहत समलैंगिक जोड़ों के साथ भेद-भाव या विपरीत लिंगी जोड़े के साथ विशेष व्यवहार नहीं माना जा सकता है। सरकार ने कहा है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि विपरीत लिंग के बीच लिव-इन संबंधों सहित अन्य किसी भी प्रकार के ऐसे संबंधों को विपरीत लिंगों के बीच विवाह के समान दर्जा प्राप्त नहीं है।

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सरकारी हलफनामे में कहा गया है, ‘‘इसलिए, स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि सभी प्रकार के विषमलिंगी संबंधों को विवाह के समान दर्जा प्राप्त नहीं है। अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन होने के लिए लिंग के आधार पर भेद-भाव होना आवश्यक है।'' हलफनामे में कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि वर्तमान मामले में यह शर्त पूरी नहीं होती है। ऐसे में अनुच्छेद 15 लागू नहीं होता है और संबंधित वैधानिक प्रावधानों पर निशाना साधने के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है।’’ हलफनामे में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने 2018 में अपने फैसले में सिर्फ इतना ही कहा था कि वयस्क समलैंगिक लोग आपसी सहमति से यौन संबंध बना सकेंगे और भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत उन्हें अपराधी नहीं माना जाएगा। केन्द्र ने हलफनामे में कहा, ‘‘मामले में इतना ही कहा गया है और इससे ज्यादा कुछ नहीं है। ऐसे संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है, लेकिन इसे किसी भी रूप में कानूनी मान्यता नहीं दी गई है। वास्तव में, (2018 के फैसले में) अनुच्छेद 21 की व्याख्या में विवाह को शामिल नहीं किया गया है।''

प्रतिक्रियाएं

दूसरी ओर, एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के कार्यकर्ताओं और सदस्यों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर केंद्र के विरोध की आलोचना करते हुए कहा है कि भारत की बहुलता और विविधता के बावजूद सरकार अभी भी मानती है कि विवाह के अधिकार केवल विषमलैंगिकों को ही दिए जा सकते हैं। केंद्र के हलफनामे पर प्रतिक्रिया देते हुए, समान अधिकार कार्यकर्ता एवं समुदाय के एक सदस्य हरीश अय्यर ने कहा है कि भारत बहुलता का देश है न कि एकरूपता का।

वहीं इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि विवाह भारतीय समाज में एक संस्कार है और यह सिर्फ शारीरिक संबंधों का विषय नहीं है। आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अदालत में जो रुख पेश किया है हम उसका समर्थन करते हैं।

वहीं यदि धार्मिक-सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों की बात करें तो हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी का इस मुद्दे पर कहना है कि समलैंगिक विवाह समाज के लिए आदर्श नहीं हो सकता। उनका कहना है कि समलैंगिक लोग और ऐसे लोगों का समर्थन करने वाले लोगों को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए।

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