सिद्ध चिकित्सा के सहारे कोरोना के खिलाफ जंग जीतने में जुटा तमिलनाडु ! सरकार ने 100 फीसदी रिकवरी का किया दावा

Corona

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदेश सरकार ने कहा कि चेन्नई के एक कोरोना सेंटर में मौजूद 25 मरीजों का इलाज सिद्ध चिकित्सा से किया गया जो कारगर साबित हुआ है।

चेन्नई। कोरोना वायरस के लगातार बढ़ रहे मामलों के बीच अब तमिलनाडु सरकार वायरस से लड़ने के लिए 'सिद्ध चिकित्सा' का सहारा ले रही है। प्रदेश में अबतक कोरोना संक्रमण के 67,468 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और यह दिन-प्रतिदन बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में तमिलनाडु सरकार प्रचीन चिकित्सा विधि का सहारा लेकर वायरस को काबू में करने का प्रयास कर रही है। बता दें कि तमिलनाडु की के पलानीस्वामी सरकार ने दावा किया है प्रदेश में करीब नहीं के बराबर और हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीजों के इलाज में सिद्ध चिकित्सा का इस्तेमाल किया गया है और इसका परिणाम 100 फीसदी रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदेश सरकार ने कहा कि चेन्नई के एक कोरोना सेंटर में मौजूद 25 मरीजों का इलाज सिद्ध चिकित्सा से किया गया जो कारगर साबित हुआ है। जिसके बाद अब इसका इस्तेमाल कोरोना हॉटस्पॉट बने व्यासरपदी के अंबेडकर कॉलेज में होने वाला है। हालांकि इस चिकित्सा विधि पर कई तरह के सवाल भी खड़े किए गए। जैसे वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं होने की वजह से इसका इस्तेमाल मरीजों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है इत्यादि... 

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सरकार ने इस तरह के सवालों को अनदेखा करते हुए कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है। बता दें कि सिद्ध चिकित्सा को प्रदेश सरकार अपना ट्रंप कार्ड समझ रही है। क्योंकि इसका रिकवरी रेट 100 फीसदी रहा है। ऐसे में अगर यह चिकित्सा कारगर होती है और प्रदेश को संक्रमण से मुक्त करने में अहम भूमिका निभाएगी तो फिर हिन्दुस्तान का कद अपने आप में ऊंचा हो जाएगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्री के पंडियाराजन ने कहा कि हम सिद्ध, योग और आयुर्वेद को एक साथ मिला रहे हैं। हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है मगर इसका इतिहास इसकी विश्वसनीयता के लिए काफी है। एक चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने दावा किया कि सिर्फ 3 फीसदी मामलों में मरीजों को वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखने की आवश्यकता होती है। 

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क्या है सिद्ध चिकित्सा

वैसे तो सिद्ध चिकित्सा का अपना ही अलग इतिहास है लेकिन कहा जाता है कि भगवान शिव ने सबसे पहले इसके बारे में अपनी पत्नी पार्वती को जानकारी दी थी। फिर पार्वती माता ने अपने पुत्र मुरुग को और फिर उन्होंने अपने शिष्य अगस्त्य ऋषि को ज्ञान दिया था। हालांकि सिद्ध चिकित्सा का जनक अगस्त ऋषि को ही माना जाता है।

अगस्त ऋषि ने 18 सिद्धों को इसका पूरा ज्ञान दिया और उन्होंने इस ज्ञान का प्रचार किया। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का विकास होता है। इसलिए ऐसी विधियों और औषधियों को विकसित किया गया जिससे शरीर और आत्मा को पुष्टि मिलती है। पांडुलिपियों से पता चलता है कि 18 सिद्धों ने अपनी शिक्षाओं से एक चिकित्सा पद्धति का विकास किया। दरअसल, यह चिकित्सा शरीर के रोगी अवयवों को फिर से जीवंत और सक्रिय करने में कुशलता का दावा करती है। इस पद्धति को काफी हद तक आयुर्वेद के समान भी माना जाता है।

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