श्रवण कुमार को भूल गए हैं... मां-बाप को घर आने से रोकने पर बेटे ने दायर की याचिका, HC ने दिया कुछ ऐसा रिएक्शन

कोर्ट ने कहा कि दुख की बात यह है कि माता-पिता दस बच्चों को पाल लेते है, लेकिन कई बार दस बच्चे मिलकर भी अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर पाते। मामले में कोर्ट ने साफ कहा कि बेटे को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करनी ही होगी।
कोल्हापुर में रह रहे अपने माता-पिता को मुंबई में चिकित्सा उपचार से संबंधित यात्राओं के लिए पश्चिमी उपनगरों में अपने आवास का उपयोग करने से रोकने के लिए एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर चिंता व्यक्त करते हुए, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करें कि माता-पिता को कोई असुविधा न हो और उनके साथ अत्यंत सम्मान, प्यार और देखभाल के साथ व्यवहार किया जाए। उच्च न्यायालय ने यह आदेश बेटे की उस याचिका पर पारित किया जिसमें उसने सिटी सिविल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें जनवरी 2018 में उसके माता-पिता को पश्चिमी उपनगरों में उसके आवासीय परिसर का उपयोग करने से रोकने के लिए उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था।
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जस्टिस जितेंद्र जैन की सिंगल बेंच ने कहा कि यह एक और दुखद उदाहरण है कि बेटा अपने बीमार और उम्रदराज माता-पिता की देखभाल करने की नैतिक जिम्मेदारी निभाने के बजाय उनके खिलाफ केस कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज के संस्कार इस कदर गिर गए हैं कि हम श्रवण कुमार जैसे आदर्श को भी भूल गए हैं। कोर्ट ने कहा कि आज के समय में बच्चों की परवरिश में कहीं न कहीं गंभीर कमी रह गई है, तभी माता-पिता को अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।
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आदेश का पालन नहीं तो अवमानना
कोर्ट ने कहा कि दुख की बात यह है कि माता-पिता दस बच्चों को पाल लेते है, लेकिन कई बार दस बच्चे मिलकर भी अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर पाते। मामले में कोर्ट ने साफ कहा कि बेटे को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करनी ही होगी। फिलहाल माता-पिता कोल्हापुर में अपने तीसरे बेटे के साथ रहते है, लेकिन इलाज के लिए अक्सर मुंबई आना पड़ता है। कोर्ट ने आदेश दिया कि जब भी वह मुंबई आएंगे, बेटा या उसकी पत्नी उन्हें लेने जाएगा, अपने घर लाएगा और इलाज के लिए साथ भी जाएगा। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि उसने आदेश का पालन नहीं किया या माता-पिता को किसी तरह की परेशानी हुई, तो बेटे के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।
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