Caste System in India Part 1| भारत की जाति व्यवस्था क्या है | Teh Tak
जाति व्यवस्था हिंदुओं को चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित करती है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। कई लोग मानते हैं कि समूहों की उत्पत्ति सृष्टि के हिंदू देवता ब्रह्मा से हुई है। स्मृति का मतलब धर्मशास्त्र होता है।
देश में जब कभी भी जातिवादी राजनीति की चर्चा होती है तो उत्तर प्रदेश और बिहार का नाम हर किसी के दिमाग में तपाक से आ जाता है। इसके पीछे की वजहें भी हैं। मसलन, जयप्रकाश नारायण का इंदिरा गांधी सरकार की इमरजेंसी के खिलाफ किए गए आंदोलन और उससे उपजे लालू, मुलायम, मायावती, रामविलास, नीतीश जैसे कई नेताओं ने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए जातिवाद का भरपूर सहारा लिया। लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल और केवल यूपी और बिहार में ही जातिवाद की राजनीति देखने को मिलती है। लेकिन उसकी चर्चा उतनी प्रमुखता से नहीं होती है। गुजराती साहित्य परिषद के संस्थापक रंजीतराम मेहता ने 100 साल पहले अपने एक लेख में लिखा भी था कि पूरे भारत में सबसे ज़्यादा जातिवाद गुजरात में है।
जाति की उत्पत्ति कैसे हुई?
जाति व्यवस्था हिंदुओं को चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित करती है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। कई लोग मानते हैं कि समूहों की उत्पत्ति सृष्टि के हिंदू देवता ब्रह्मा से हुई है। स्मृति का मतलब धर्मशास्त्र होता है। ऐसे में मनु द्वारा लिखा गया धार्मिक लेख मनुस्मृति कही जाती है। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं। दावा किया जाता है कि ये पुस्तक समाज की व्यवस्था और नियमितता के आधार के रूप में जाति व्यवस्था को स्वीकार करती है और उचित ठहराती है। इस पुस्तक के पदानुक्रम के शीर्ष पर ब्राह्मण थे जो मुख्य रूप से शिक्षक और बुद्धिजीवी थे और माना जाता है कि वे ब्रह्मा के मुख से आए थे। फिर कथित तौर पर उसकी भुजाओं से क्षत्रिय, या योद्धा और शासक आए। तीसरा स्थान वैश्यों या व्यापारियों को मिला, जो उसकी जाँघों से निर्मित हुए थे। ढेर के निचले भाग में शूद्र थे, जो ब्रह्मा के चरणों से आए थे और सभी छोटे-मोटे काम करते थे।जब ब्रितानी लोग भारत आए तो उन्हें लगा कि जिस तरह मुस्लिमों के पास क़ानून की किताब के रूप में शरिया है, उसी तरह हिंदुओं के पास भी मनुस्मृति है। इसकी वजह से उन्होंने इस किताब के आधार पर मुक़दमों की सुनवाई शुरू कर दी। इसके साथ ही काशी के पंडितों ने भी अंग्रेज़ों से कहा कि वे मनुस्मृति को हिंदुओं का सूत्रग्रंथ बताकर प्रचार करें। इसकी वजह से ये धारणा बनी की मनुस्मृति हिंदुओं का मानक धर्मग्रंथ है।
ज्योतिबा फुले ने मनुस्मृति को दी चुनौती
ब्रिटिश राज के दौरान ये किताब क़ानूनी मामलों में इस्तेमाल होने की वजह से ख़ासी चर्चित हो गई। विलियम जोनास ने मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसकी वजह से लोगों को इस किताब के बारे में पता चला। ज्योतिबा फुले मनुस्मृति को चुनौती देने वाले पहले व्यक्ति थे। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 25 जुलाई, 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा ज़िले में (वर्तमान में रायगड) के महाद में सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को जलाया। इस प्रणाली ने उच्च जातियों को कई विशेषाधिकार प्रदान किए जबकि विशेषाधिकार प्राप्त समूहों द्वारा निचली जातियों के दमन को मंजूरी दी गई। हालाँकि, बाधाओं के बावजूद, कुछ दलित और अन्य जाति के भारतीय जैसे कि बीआर अंबेडकर जिन्होंने भारतीय संविधान लिखा और केआर नारायणन जो देश के पहले दलित राष्ट्रपति बने। दोनों ही देश में प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हुए हैं। हालांकि, इतिहासकारों का कहना है कि 18वीं शताब्दी तक, भारतीयों के लिए जाति के औपचारिक भेद सीमित महत्व के थे। सामाजिक पहचान बहुत अधिक लचीली थीं और लोग एक जाति से दूसरी जाति में आसानी से जा सकते थे। स्वतंत्र भारत के संविधान ने जाति के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया, और ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने और पारंपरिक रूप से वंचितों को समान अवसर प्रदान करने के प्रयास में, अधिकारियों ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में सबसे कम कोटा की घोषणा की।
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