Nandigram History III | 1947 के पहले कैसे स्वतंत्र हो गया था नंदीग्राम

Nandigram History III
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 20 2023 5:19PM

अगर हम इतिहास से 20वीं सदी में आए जब हमारा मुल्क आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहा था। तो 1947 का इतिहास आपको एक बार फिर से तामलुक की ओर रुख करने पर मजबूर कर देगा।

अगस्त 1947 की दरमियानी रात को जब आधी दुनिया सो रही थी तो हिन्दुस्तान अपनी नियती से मिलन कर रहा था। हमने सैकड़ों सालों की अंग्रेजी हुकूमत की नींव उखाड़ कर आजादी हासिल की। ये तो हम सभी जानते हैं कि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। लेकिन क्या आपको पता है कि आजादी के पहले भी कई जिलें ऐसे भी थे जो कभी 73 दिनों के लिए तो कोई 3 दिनों के लिए 1947 से वर्षों पहले ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करा लिए गए थे।

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अगर हम इतिहास से 20वीं सदी में आए जब हमारा मुल्क आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहा था। तो 1947 का इतिहास आपको एक बार फिर से तामलुक की ओर रुख करने पर मजबूर कर देगा। नंदीग्राम महज एक गांव नहीं, बल्कि बंगाल की राजनीति में बदलाव का प्रतीक है। पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है। स्वतंत्रता के पहले भी नंदीग्राम ने अपने उग्र आंदोलन के कारण ब्रिटिश शासन को झुकाने में सफल रहा था। नंदीग्राम को अंग्रेजों से दो बार आजादी मिली। 1947 में देश की स्वतंत्रता से पहले तामलुक को अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धारा, सतीश चंद्र सामंत और उनके मित्रों ने नंदीग्राम के निवासियों की सहायता से अंग्रेजों से कुछ दिनों के लिए मुक्त कराया था और ब्रिटिश शासन से इस क्षेत्र को मुक्त करा लिया था।

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...और इस तरह तामलुक में बन गई आजाद सरकार

बंगाल के मिदनापुर जिले में तामलुक और कोनताई तालुका के लोग पहले से ही ब्रिटिश सरकार से नाराज थे। जापानी सेना के समुद्र मार्ग से इन इलाकों में उतरने की आशंका से नार्वो, बैलगाड़ियों, साइकिलों, बसों और सभी दूसरे वाहनों पर रोक लगा दी गई। आंदोलन की जमीन तैयार हो चुकी थी। कांग्रेस ने 5 हजार युवाओं का एक दल संगठित कर कताई केंद्र खोलकर रोजगार से वंचित 4 हजार लोगों को रोजगार दिया। 9 अगस्त को यहीं से आंदोलन शुरू हो गया। सामूहिक प्रदर्शन के साथ ही शैक्षणिक संसथाओं, में हड़ताल पर लोग जाने लगे, डाकघरों और थानों पर नियंत्रण की कोशिश की गई। लेकिन मामला तब तेज हुआ जब जनता ने अंग्रेज हुकूमत को चावल बाहर ले जाने से रोका। परिणाम स्वरूप फायरिंग हुई। फिर 28 सितंबर की रात सड़कों पर पेड़ काटकर उन्हें रोक दिया गया। उस दौर तक तामलुक रेल से नहीं जुड़ा था। जिसकी वजह से उसका पूरा संपर्क देश से टूट गया। अगले दिन करीब 20 हजार लोगों की भीड़ ने इलाके के तीन थानों पर हमला बोल दिया। आन्दोलनकारी तमलुक और कोनताई में ताम्रलिप्ता जातीय सरकार का गठन करने में सफल हुई।

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