Maharashtra Karnataka Dispute Part III | महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद का सामाजिक और आर्थिक असर

साल 2004 में महाराष्ट्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 (बी) के तहत सीमा विवाद के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इसके अंतर्गत कर्नाटक से 814 गांवों की मांग की गई। मामला सुप्रीम कोर्ट में अब भी लंबित है। वैसे आपको बता दें कि साल 2006 में कोर्ट ने सुझाव दिया था कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए। साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे परेशानी में और भी इजाफा हो सकता है।
मामला जब कोर्ट में है तो फिर राजनीतिक बयानबाजी क्यों हुई तेज?
सबसे अहम सवाल है कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है तो एकाएक फिर से ये सुर्खियों में क्यों आ गया है? इस मामले को लेकर दोनों राज्यों की सरकारों के बीच जमकर बयानबाजी भी तेज हो गई है। इसके पीछे का मुख्य कारण है निकट भविष्य में होने वाला कर्नाटक विधानसभा चुनाव। कर्नाटक विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। जिसके अनुसार बेलगामी की एक इंच जमीन भी महाराष्ट्र को नहीं दी जाएगी। फिर क्या था महाराष्ट्र विधानसभा और विधानपरिषद ने भी बेलगान के साथ 800 गावों पर अपना अधिकार जताने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
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सामाजिक और आर्थिक असर
मराठी भाषी क्षेत्रों में भी तीसरी चौथी पीढ़ी आ चुकी है। उन्हें लगता है कि इस मुद्दे पर उन्हें कोई सहायता नहीं मिलने वाली है। कई बार बेलगावी में नेताओं के बयानों की वजह से भी सरगर्मियां बढ़ती नजर आई। महाराष्ट्र के दक्षिण में है कोलाहपुर और इससे कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमा। बॉर्डर पर एक गांव है कागलोरी जो कि कर्नाटक में आता है। गांव के युवा पढ़े लिखे हैं लेकिन नौकरी नहीं मिल रही, वजह है कि ये लोग मराठी बोलते हैं लेकिन रहते कर्नाटक में है। कन्नड़ बोलना नहीं जानते हैं।
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मराठी भाषी क्षेत्रों को शामिल कराने का प्रस्ताव विधानसभा में पास
महाराष्ट्र विधानसभा ने सर्वसम्मति से कर्नाटक के साथ राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में विवाद पर प्रस्ताव पारित किया। यह घटनाक्रम मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद पर एक प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद आया है। प्रस्ताव में कर्नाटक के 865 मराठी भाषी गांवों को राज्य में शामिल करने के लिए कानूनी रूप से प्रयास करने की मांग की गई थी। प्रस्ताव ने सीमा क्षेत्र में मराठी विरोधी रुख के लिए कर्नाटक प्रशासन की भी निंदा की। प्रस्ताव के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार सीमावर्ती क्षेत्रों में मराठी लोगों के पीछे खड़ी होगी और यह सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ेगी कि ये क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा बन जाएं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा पर तनाव कम करने के उद्देश्य से दिसंबर में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए छह सदस्यीय संयुक्त मंत्रिस्तरीय समिति गठित करने को कहा। शाह ने दोनों राज्यों से अपील भी की कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर अपना फैसला नहीं सुना देता, तब तक कोई दावा नहीं करें। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कर्नाटक के उनके समकक्ष बसवराज बोम्मई के साथ एक बैठक में उन्होंने यह भी कहा कि सीमा विवाद का हल सड़कों पर नहीं, बल्कि सिर्फ संवैधानिक तरीकों से किया जा सकता है। । केंद्रीय गृह मंत्री ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ बैठक करने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि दोनों मुख्यमंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई है कि जब तक उच्चतम न्यायालय इस मामले पर फैसला नहीं करता तब तक सीमा मुद्दे पर कोई दावा या प्रतिदावा नहीं करें।
बहरहाल, वर्तमान में देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और विश्व गुरु बनने की राह पर तेजी से अपने कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में दो राज्यों के बीच भाषा के नाम पर क्षेत्रों को लेकर कटुता का भाव निंदनीय ही है। बेलगाम के लिए लड़ रहे दोनों राज्यों में बीजेपी की ही सरकारें हैं। भले ही इस तरह की बचकानी कोशिशों से राजनीतिक लाभ सिद्ध होजाए लेकिन इससे देश कमजोर ही होगा। महाराष्ट्र कर्नाटक विवाद के चौथे भाग में हम मामले के देश की सर्वोच्च अदालत में दस्तक देने की कहानी जानेंगे।
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