तेलंगाना का कालेश्वरम मंदिर अपने जीर्णोद्धार के लिए प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान आकृष्ट करना चाह रहा

Narendra modi
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राज्य से, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु मंदिरआते हैं और श्रद्धालुओं की भीड़ कार्तिक और श्रावण महीनों और महाशिवरात्रि पर्व के दौरान अधिक होती है। 28 नवंबर को कार्तिक माह के समापन में कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में पूजा-अर्चना करने आए हैं। कुछ लोगों ने शिकायत की कि इस स्थान पर रेलवे स्टेशन, अच्छे होटल और यहां तक कि एटीएम भी नहीं है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार, इस मंदिर को मनोकामना पूरी करने वाले मंदिर के रूप में जाना जाता है और यहां तक कि 2014 में अलग राज्य की उनकी इच्छा पूरी होने के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री राव ने भी मंदिर में स्वर्ण मुकुट चढ़ाया था।

तेलंगाना का कालेश्वरम शहर विकास की बाट जोह रहा है और चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राज्य की यात्रा से पहले अपनी ओर उनका ध्यान आकर्षित करना चाहता है। यह स्थान देश में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां शिवलिंग के रूप में ‘मृत्यु एवं न्याय के देवता’ यम की पूजा की जाती है। लगभग एक हजार वर्ष पुराना कालेश्वरम मुक्तेश्वर स्वामी मंदिर मंथनी विधानसभा क्षेत्र के महादेवपुर मंडल के कालेश्वरम गांव में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। इसे दक्षिण काशी के नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा पर स्थित है। यह शहर करीमनगर जिले से 134 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनाव प्रचार करने के वास्ते मोदी 27 नवंबर को एक चुनावी रैली करने वाले हैं।

इस स्थान पर कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना है और विपक्ष ने एक बैराज में सामने आई खामियों को इंगित करते हुए इस परियोजना को चुनावी मुद्दा बना दिया है। इस मंदिर की विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए, कंप्यूटर विज्ञान स्नातक एवं मंदिर के कनिष्ठ पुजारी श्रवण कुमार ने कहा कि इसका उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथ ‘स्कंद पुराण’ में मिलता है। उन्होंने कहा कि यह उन तीन मंदिरों में से एक है जहां गर्भगृह के चारों द्वारों के बाहर शिवलिंग के सामने ‘नंदी’ (भगवान शिव के वाहन) की मूर्ति स्थापित है। इस तरह के अन्य दो मंदिर नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर और उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर हैं। यह तीन सरस्वती शक्तिपीठों में से एक है। अन्य दो, कश्मीर सरस्वती मंदिर और बसारा सरस्वती मंदिर हैं।

कुमार ने कहा कि समृद्ध इतिहास के बावजूद, आधुनिक युग में इस मंदिर का विकास 1972 में कांग्रेस के तत्कालीन नेता और धर्मादा एवं परिवहन मंत्री जे चोक्का राव द्वारा शुरू किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव, जो उस समय विधायक थे, इस मंदिर की जीर्णोद्धार समिति के सदस्यों में शामिल थे। मंदिर अधीक्षक बी. श्रीनिवास ने कहा, ‘‘उससे पहले कनेक्टिविटी और बिजली नहीं थी। पहली बस सेवा 1976 में शुरू की गई थी। धीरे-धीरे, मंदिर और इसके आसपास की इमारतों का निर्माण तिरुपति और वेमुलावाड़ा सहित अन्य मंदिरों की धनराशि से किया गया।’’ उन्होंने कहा कि 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद, के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) सरकार ने मंदिर के विकास के लिए 25 करोड़ रुपये मंजूर किए थे।

उन्होंने कहा कि कार्यालय एवं अन्य भवनों का निर्माण कराया गया। उन्होंने दावा किया कि केंद्र से कोई सहयोग नहीं मिला। महबूबाबाद जिले के थोरूर गांव के एक श्रद्धालु और व्याख्याता श्रीनिवास ने कहा, ‘‘मंदिर क्षेत्र बहुत पिछड़ा हुआ है। चूंकि यह सीमावर्ती इलाके में है, इसलिए इस जगह को नजरअंदाज कर दिया जाता है।’’ एक अन्य श्रद्धालु एवं हैदराबाद के सैन्यकर्मी टी राजगोपाल ने कहा, ‘‘मंदिर की स्थिति पर केंद्र सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। गोदावरी घाट प्रदूषित है और पूजा और स्नान करने के लिए इसे साफ रखने की जरूरत है। यदि मंदिर का विकास किया जाए तो अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित किया जा सकता है।’’ मंदिर के मुख्य पुजारी कृष्ण मूर्ति ने कहा, ‘‘मोदी ने उत्तर (भारत) में कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया है। वह करीमनगर आ रहे हैं। अगर वह यहां आते हैं तो अच्छा रहेगा।’’

राज्य से, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु मंदिरआते हैं और श्रद्धालुओं की भीड़ कार्तिक और श्रावण महीनों और महाशिवरात्रि पर्व के दौरान अधिक होती है। 28 नवंबर को कार्तिक माह के समापन में कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में पूजा-अर्चना करने आए हैं। कुछ लोगों ने शिकायत की कि इस स्थान पर रेलवे स्टेशन, अच्छे होटल और यहां तक कि एटीएम भी नहीं है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार, इस मंदिर को मनोकामना पूरी करने वाले मंदिर के रूप में जाना जाता है और यहां तक कि 2014 में अलग राज्य की उनकी इच्छा पूरी होने के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री राव ने भी मंदिर में स्वर्ण मुकुट चढ़ाया था।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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