Operation Pawan के वीरों को आखिरकार दी गयी सलामी, देश को 1987 से जिसकी प्रतीक्षा थी वो घड़ी 2025 में आई

अक्टूबर 1987 में शुरू किया गया ऑपरेशन पवन केवल सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह भारत की रणनीतिक क्षमता की परीक्षा थी। तमिल संघर्ष से जर्जर श्रीलंका में भारतीय सेना को भेजा गया था ताकि एलटीटीई और अन्य सशस्त्र गुटों को हथियारमुक्त कर वहाँ शांति बहाल की जा सके।
भारतीय सेना ने आज राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर ऑपरेशन पवन के 1,171 शहीदों को औपचारिक श्रद्धांजलि देकर उस ऐतिहासिक विदेशी सैन्य अभियान को पहली बार राष्ट्रीय मान्यता प्रदान की। इसी के साथ भारत ने फ्रांस के साथ ‘हैमर’ प्रिसिशन म्यूनिशन के घरेलू निर्माण और फ्रांसीसी-जर्मन रक्षा समूह के साथ 155 मिमी ‘कटाना’ प्रिसिशन आर्टिलरी गोला-बारूद के लिए महत्वपूर्ण रक्षा समझौते किए। वहीं महू में आयोजित रणनीति संगोष्ठी में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि भविष्य के युद्ध साइबर, अंतरिक्ष, ड्रोन और एआई-आधारित प्रौद्योगिकियों से लड़े जाएँगे और भारतीय सेना इन चुनौतियों के लिए पूरी क्षमता से तैयार है।
देखा जाये तो ऑपरेशन पवन के वीरों को भले दशकों तक औपचारिक मान्यता नहीं दी गयी लेकिन राष्ट्र ने आज उन्हें वह सम्मान दिया जिसके वह सच्चे अधिकारी थे। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी और उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह का श्रद्धांजलि अर्पण केवल एक सैन्य औपचारिकता नहीं, बल्कि भारतीय गणराज्य की ओर से वह नैतिक ऋण-प्रत्यर्पण था, जिसकी प्रतीक्षा 1987 से लंबित थी। यह स्मरण-पर्व केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य के लिए संदेश है कि भारतीय सैनिक जब राष्ट्र के सम्मान के लिए प्राण न्यौछावर कर देता है तो देश उस बलिदान को विस्मृत नहीं होने देगा।
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हम आपको बता दें कि अक्टूबर 1987 में शुरू किया गया ऑपरेशन पवन केवल सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह भारत की रणनीतिक क्षमता की परीक्षा थी। तमिल संघर्ष से जर्जर श्रीलंका में भारतीय सेना को भेजा गया था ताकि एलटीटीई और अन्य सशस्त्र गुटों को हथियारमुक्त कर वहाँ शांति बहाल की जा सके। परंतु इस तैनाती का वास्तविक स्वरूप किसी भी भारतीय सैनिक ने कल्पना में भी नहीं सोचा था। एलटीटीई कोई साधारण विद्रोही समूह नहीं था। उनके पास अत्याधुनिक हथियार थे। वे गोरिल्ला युद्धकला में अप्रतिम थे। विस्फोटक, बारूदी सुरंग, आत्मघाती दस्ते, उनकी रणनीति अत्यंत क्रूर और चालाक थी। श्रीलंका का भूगोल, सघन जंगल, दलदली भूमि और संकरे मार्ग युद्ध को और कठिन बनाते थे। इस अत्यंत प्रतिकूल वातावरण में भारतीय सेना ने वह किया, जिसे आधुनिक गोरिल्ला युद्ध के इतिहास में सबसे कठिन ऑपरेशनों में गिना जाता है। उस दौरान 1,171 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 3,500 से अधिक घायल हुए।
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने अपने अंतिम क्षणों में छह सशस्त्र आतंकियों को मौत के घाट उतारकर परमवीर चक्र हासिल किया। 98 वीर चक्र, 25 शौर्य चक्र और सैकड़ों अन्य वीरता अलंकरणों ने सिद्ध किया कि भारतीय सैनिक युद्धक्षेत्र में किसी से कम नहीं, परंतु भारत में इस अभियान का स्मरण दशकों तक एक ‘भूला हुआ युद्ध’ बनकर रह गया। आज जब सेना ने आधिकारिक रूप से ऑपरेशन पवन के वीरों को श्रद्धांजलि दी, तो यह केवल सम्मान नहीं बल्कि एक संदेश है कि कोई भारतीय सैनिक, चाहे वह सीमा पर लड़े या किसी विदेशी धरती पर, राष्ट्र कभी उसकी वीरता को भूलेगा नहीं। लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह स्वयं 1989 में इसी अभियान में गंभीर रूप से घायल हुए थे; उनका आज स्मारक पर उपस्थित होना इतिहास का वह क्षण था जिसमें एक योद्धा अपने शहीद भाइयों को सलामी दे रहा था। यह दृश्य भारतीय सेना की गौरवगाथा का अमर अध्याय बन चुका है।
दूसरी ओर, 'हैमर' और 'कटाना' समझौते की बात करें तो आपको बता दें कि भारत अब केवल रक्षा खरीदने वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि रक्षा उत्पादन का उभरता हुआ महाशक्ति केंद्र बन रहा है। हैमर प्रिसिशन गाइडेड म्यूनिशन 70 किमी दूर स्थित दुश्मन के बंकरों को सटीकता से नष्ट करने में सक्षम है। यह राफेल ही नहीं, बल्कि तेजस जैसे हल्के लड़ाकू विमानों में भी पूरी तरह संगत है। इसकी अत्यंत उच्च सटीकता, युद्ध में सिद्ध प्रदर्शन इसे दुश्मनों के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार बनाते हैं। BEL-सफरॉन JV इसके निर्माण का रास्ता भारत में खोलेगा, जिसका प्रभाव आने वाले वर्षों में वायुसेना की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ा देगा।
वहीं कटाना 155 मिमी प्रिसिशन आर्टिलरी गोला-बारूद की बात करें तो यह लंबी दूरी तक लक्ष्य भेदन कर सकती है। GNSS + IMU आधारित हाइब्रिड गाइडेंस से लैस है। इसका भविष्य का संस्करण लेज़र सीकर से ‘मेट्रिक-लेवल’ सटीकता देगा। यह घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ‘सर्जिकल’ आर्टिलरी स्ट्राइक के लिए आदर्श है। साथ ही SMPP और KNDS का यह समझौता भारत की आत्मनिर्भर आर्टिलरी क्षमता को मजबूत करेगा, विशेषकर ऐसे समय में जब भारतीय सेना को 155 मिमी गोला-बारूद की तात्कालिक आवश्यकता है।
दूसरी ओर, मध्य प्रदेश के महू की रणनीति संगोष्ठी में लेफ्टिनेंट जनरल साही ने जो कहा, वह केवल चेतावनी नहीं, बल्कि भविष्य की सैन्य रूपरेखा है। उन्होंने कहा कि 2035 का युद्ध ऐसा होगा जिसमें ड्रोन झुंड आसमान को ढँक देंगे, साइबर हमले दुश्मन की कमांड प्रणाली को निष्क्रिय कर देंगे, उपग्रह दुश्मन की हर गतिविधि को वास्तविक समय में उजागर करेंगे और कृत्रिम बुद्धिमत्ता लक्ष्य चयन व आक्रमण की गति को मानव क्षमता से कई गुना आगे ले जाएगी।
देखा जाये तो चीन पहले ही ‘इंटेलिजेंस्ड वॉरफेयर’ की ओर बढ़ रहा है। पाकिस्तान हाइब्रिड युद्ध, आतंकवाद और परमाणु ब्लैकमेल की रणनीति से बाज नहीं आएगा। ऐसे समय में भारत का आक्रामक, त्वरित और सटीक प्रतिउत्तर ही उसकी सुरक्षा का आधार बनेगा। हाल का ऑपरेशन सिंदूर इस दृष्टिकोण का ताज़ा उदाहरण है— जहाँ गति, सटीकता और सामरिक चौंकाने की क्षमता ने कुछ ही घंटों में दुश्मन की योजना ध्वस्त कर दी थी।
बहरहाल, अतीत की वीरता + वर्तमान की वैज्ञानिक शक्ति का जोड़ है- भविष्य का अजेय भारत। आज का भारत वह नहीं जो 1980 या 1990 के दशक में था। आज हम ऑपरेशन पवन के वीरों को सम्मान दे रहे हैं, अत्याधुनिक हथियारों का स्वदेशी निर्माण कर रहे हैं और 2035 की युद्ध प्रणाली को रणनीतिक दृष्टि से समझकर तैयारी कर रहे हैं। देखा जाये तो भारतीय सेना केवल धरती की रक्षा नहीं करती, वह इतिहास रचती है, भविष्य बनाती है और वर्तमान में शत्रुओं को संदेश देती है कि भारत अजेय है और अजेय रहेगा।
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