The Kashmir Files: श्रीनगर में आतंकवादियों ने स्कूल को बम से उड़ाया,घर उजड़ने का है दर्द, पढ़िए कश्मीरी पंडित की कहानी
सुमन टीवी आर्टिस्ट थी थिएटर वगैराह भी करती थी। 1986 में आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन के प्रोडक्शन की फिल्म हमारा खानदान की शूटिंग कश्मीर में हो रही थी। उस फिल्म में उन्होंने ऋषि कपूर के साथ स्क्रीन साझा की थी।
कश्मीर के बारे में एक बड़ी मशहूर बात कही जाती है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है वह कश्मीर में है। धरती के इस स्वर्ग 90 के दशक में आतंकवादियों ने लहूलुहान कर दिया था। उस दौर में घाटी में आतंकवाद की ऐसी हवा चली थी जिसमें कश्मीरी पंडितों के लिए जहर भरा था। 90 के दशक में घाटी में कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के साथ आतंकवादियों ने बहुत अत्याचार किया, और उन्हें कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। इस घटना 32 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन जबसे द कश्मीर फाइल्स रिलीज हुई है तबसे एक बार फिर कश्मीर हिंदुस्तान के कोने कोने में चर्चा का विषय बन गया है। इस फिल्म के जरिए जनता घाटी में हुए पंडितों के साथ हुए अत्याचार को देखा और उनके दर्द को महसूस करने की भी कोशिश की है।
जब से यह फिल्म रिलीज हुई है तब से कश्मीरी पंडितों के बारे में खूब बात की जा रही है,हम ऐसे ही कश्मीरी पंडित की कहानी बताने जा रहे हैं जिनका नाम सुमन रैना है। 1990 की जनवरी जब कश्मीर आतंकवाद की जद में पूरी तरह से लिपट गया था उस वक्त सुमन 18 साल की थीं। जब उन्हें 1990 की उस रात वह सो नहीं पाई, जब उन्हें पता चला कि आतंकवादियों ने श्रीनगर में देवकी आर्य पुत्री पाठशाला स्कूल में ब्लास्ट कर दिया है।
सुमन उस वक्त जयपुर में थीं लेकिन इस खबर ने सुमन को अंदर तक झकझोर के रख दिया। वह बस एक ही प्रार्थना करती थी, कि सब कुछ ठीक हो जाए और अपने परिवार के साथ वापस अपने घर कश्मीर में लौट सकें। लेकिन, साल गुजरते गए पर वक्त नहीं बदला। सुमन दोबारा कश्मीर तो नहीं जा पाईं, लेकिन कश्मीर को राजस्थान ले आने की कोशिश जरूर की। उन्होंने ज़ारपार ( कश्मीर में इसका मतलब होता है मनुहार) नाम से एक रेस्टोरेंट्स खोला। इस रेस्टोरेंट में आपको कश्मीर की कई खूबियां मिल जाएंगी।
सुमन टीवी आर्टिस्ट थी थिएटर वगैराह भी करती थी। 1986 में आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन के प्रोडक्शन की फिल्म हमारा खानदान की शूटिंग कश्मीर में हो रही थी। उस फिल्म में उन्होंने ऋषि कपूर के साथ स्क्रीन साझा की थी।
सुमन के पिता बैंक में मैनेजर थे, 1990 में उनका ट्रांसफर जयपुर हो गया था। परिवार जयपुर आ गया था। उनके जयपुर आने के कुछ ही महीनों बाद कश्मीर में 1990 में आतंकवाद का दौर शुरू हो गया। उनका सपना था कि बहन की शादी हम कश्मीर में करें, पर वह ख्वाब भी अधूरा रह गया। बाद में जयपुर में ही बहन की शादी की।
सुमन बारहवीं कक्षा तक श्रीनगर के देवकी आर्य पुत्री पाठशाला में पढ़ी थीं। 1990 में जब उन्होंने टीवी न्यूज़ में देखा कि उनके स्कूल को आतंकवादियों ने जला दिया है। तो वह बहुत दुखी हुईं। उसके बाद कभी है न रुकने वाला सिलसिला सा बन गया। वो और उनका परिवार 1 साल पहले वहां से आ गया था, लेकिन उनके रिश्तेदारों सहित न जाने कितने परिवारों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा।
1990 से 2006 तक तो हालात इतने खराब थे कि उनको कश्मीर जाने के नाम से डर लगता था। वो 1989 के बाद पहली बार 2007 में कश्मीर गई, दोस्तों रिश्तेदारों से मुलाकात की। अब तो उनका हर साल कश्मीर जाना होता है, उनका इवेंट मैनेजमेंट का काम है और इसी बहाने बचपन के दोस्तों से भी मिल लेती हूं।
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