यह संस्था सरकार की बंधक नहीं: याचिका पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा

Supreme Court

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायालय सरकार के कथन का सत्यापान किये बगैर ही उस पर विचार कर रही है जबकि लोगों , विशेषकर पलायन करने वाले कामगारों, के मौलिक अधिकार लागू नहीं किये जा रहे हैं।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस संक्रमण के परीक्षण के बाद अपने घर लोटने के इच्छुक कामगारों को जाने की अनुमति देने के लिये दायर याचिका पर केन्द्र से सोमवार को जवाब मांगते हुये टिप्पणी की, ‘‘यह संस्था सरकार की बंधक नहीं है।’’ शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायालय सरकार के कथन का सत्यापान किये बगैर ही उस पर विचार कर रही है जबकि लोगों , विशेषकर पलायन करने वाले कामगारों, के मौलिक अधिकार लागू नहीं किये जा रहे हैं। न्यायमूति एन वी रमण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बी आर गवई ने भूषण के इस कथन पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि यदि उन्हें व्यवस्था पर भरोसा ही नहीं है तो फिर न्यायालय को उन्हें क्यों सुनना चाहिए। भूषण जनहित याचिका दायर करने वाले अहमदाबाद आईआईएम के पूर्व प्रभारी निदेशक जगदीप ए छोकर और अधिवक्ता गौरव जैन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। भूषण ने कहा कि इस संस्था का सृजन संविधान द्वारा किया गया है लेकिन पलायन करने वाले इन कामगारों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है और मुझे अपनी नाराजगी जाहिर करने का हक है। 

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पीठ ने भूषण से कहा, ‘‘आपको न्यायपालिका में भरोसा नहीं है। यह संस्था किसी की बंधक नहीं है।’’ भूषण ने सफाई देते हुये कहा कि उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा। वह गलत हो सकते हैं लेकिन कुछ पूर्व न्यायाधीशों ने भी यही राय जाहिर की है। पीठ ने भूषण से कहा कि वह पिछले 30 साल से यहां वकालत करने का दावा करते हैं तो उन्हें पता ही होगा कि कुछ आदेश पक्ष में होते हैं और कुछ नहीं। इसलिए उन्हें ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए। केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें यह गलतफहमी नहीं रहनी चाहिए कि अकेले वही हैं जिन्हें मौलिक अधिकारों के अमलकी चिंता है। मेहता ने कहा कि इस मसले के प्रति सरकार अधिक चिंतित है और इन श्रमिकों को हर संभव मदद उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। भूषण ने कहा कि यदि इस मामले में उनके बतौर वकील पेश होने पर आपत्ति है तो वह इससे हटने के लिये तैयार हैं और कोई अन्य वकील इसमें पेश होगा। पीठ ने इस पर टिप्पणी की कि उसने कभी भी उनसे इस मामले से हटने के लिये नहीं कहा।

भूषण ने कहा कि ऐसा लगता है कि केन्द्र सरकार ने अपनी आंखें मूंद रखी हैं और उसे लॉकडाउन के दौरान इन कामगारों की मजबूरी की ओर ध्यान देनाचाहिए। उन्होंने कहा कि 90 फीसदी से ज्यादा कामगारों को राशन या मजदूरी नहीं मिली है। वे बदहाली की अवस्था में हैं और उन्हे अपने पृथक स्थानों पर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। हालांकि,मेहता ने कहा कि यह गलत रिपोर्ट है। उन्होंने सवाल उठाया कि याचिकाकर्ताओं ने किसी आधार पर यह आंकड़े पेश किये हैं और उनका आधार क्या है। उन्होंने कहा कि केन्द्र इस मसले पर राज्यों से परामर्श कर रहा है कि इन कामगारों को किस तरह से भेजा जाये और कितने श्रमिकों को कैसी और किस तरह की मदद दी जानी है। पीठ ने मेहता से कहा कि इसका मतलब यह हुआ कि केन्द्र राज्यों के साथ परामर्श कर रहा है और इस मुद्दे पर गौर करने के लिये तैयार है। मेहता ने कहा कि सरकार हर पहलू पर गौर कर रही है और इसमें याचिकाकर्ता के विचारों की आवश्यकता नहीं है। 

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उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि याचिका को लंबित नहीं रखा जाये क्योंकि इसी तरह के अनुरोध के साथ पहले ही कई याचिकायें लंबित हैं। भूषण ने न्यायालय से अनुरोध किया कि इन कामगारों को एक राज्य से दूसरे राज्य भेजने की अनुमति दी जाये जिस पर मेहता ने आपत्ति की और कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुये सभी पहलुओं पर विचार करना सरकार का काम है। सालिसीटर जनरल ने पीठ सेअनुरोध किया कि इस याचिका पर नोटिस और निर्देश नहीं दिये जायें क्योंकि इससे गलत संदेश जायेगा। उन्होंने कहा कि इसकी बजाये वह दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल कर देंगे। पीठ ने कहा कि वह केन्द्र को इस सवाल का जवाब देने के लिये एक सप्ताह का वक्त दे रही है कि क्या इन कामगारों को अंतरराज्यीय आवागमन की अनुमति देने का कोई प्रस्ताव है। इस बीच, शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव के उस आवेदन का निस्तारण कर दिया जिसमे कामगारों के अंतरराज्यीय आवागमन पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था।

पीठ ने कहा कि इस मुददे पर गौर करना सरकार का काम है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय कायम करना उसका काम नहीं है और इस संबंध में केन्द्र सरकार को ही आवश्यक कार्रवाई करनी है। छोकर और जैन ने अपनी याचिका में कहाहै कि इन कामगारों को अपने परिवारों से दूर रहने और अनिश्चित्ता वाले माहौल में रहने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 19 (5) के प्रावधान के इतरअनुचित प्रतिबंध है। याचिका में इन कामगारों को उनके पैतृक स्थानों तक पहुचाने के लिये राज्य सरकारों को पर्याप्त संख्या में परिवहन सुविधायें उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है ताकि सामाजिक दूरी का मकसद विफल नहीं हो।

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