नीतीश के मन में क्या है? इस बार 2017 की तर्ज पर नहीं बल्कि बीजेपी कोटे के मंत्रियों को बर्खास्त कर चुनेंगे एग्जिट का रास्ता!

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अभिनय आकाश । Aug 8 2022 3:47PM

27 जुलाई 2017 ही वो तारीख थी जब नीतीश ने कैबिनेट मंत्रियों को बर्खास्त कर राजभवन जाकर अपना इस्तीफा दिया था। लेकिन इस बार की कहानी कुछ अलग रहने वाली है।

4 नवंबर, साल 1974 : एक ही तीर पर कैसे रुकूँ मै, आज लहरों में निमंत्रण है’’ हरिवंश राय बच्चन की इस कविता को उस वक़्त जयप्रकाश नारायण ने गाँधी मैदान में दोहराया था l जेपी के एक चेले की आवाज गूंजती है- मैं नीतीश कुमार...वक़्त था - 03 मार्च 2000 तब महज एक हफ्ते के लिए मुख्यमंत्री बने, नीतीश ने पर्याप्त बहुमत नहीं था इसलिए इस्तीफा दे दिया। लेकिन वो कहते हैं न कि शेर जब दो कदम पीछे लेता है तो छलांग भी उतनी ही लंबी लगाता है। हुआ भी कुछ ऐसा ही। बिहार में सरकार किसी की भी हो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहते हैं। लेकिन इन दिनों नीतीश कुमार को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। आरसीपी फैक्टर से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक के कई कारण भी गिनाए जा रहे हैं। इसी को नीतीश की केंद्र की लगातार हुई बैठकों से किनारा काटने की वजह भी बता रहे हैं। इसके साथ ही एक बात और जो इन दिनों बिहार की राजधानी पटना से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक की फिजाओं में तैर रही है वो ये कि अगले 48 घंटों में नीतीश कुछ बड़ा फैसला लेने वाले हैं। बड़ा फैसला की बात जब भी होती है तो तमाम राजनीतिक विशलेषकों की सुई बीजेपी का साथ छोड़ राजद से हाथ मिलाने पर आकर टिक जाती है। उधर राजद की तरफ से भी तो मानों इसी पल का इंतजार किया जा रहा हो। ऐसे में क्या नीतश कुमार एक  बार फिर से गठबंधन तोड़ नई सहयोगी के साथ सरकार बनाने वाले हैं?

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वैसे तो भारत वर्ष का सबसे गौरवशाली साम्राज्य मगध और ढाई हजार साल से मगध की राजधानी पाटलिपुत्र। ये भूमि है चाणक्य की। जब-जब राजनीति में कूटनीतिक चालें चली जाती हैं तब-तब सफलता पाने वाले को चाणक्य की उपाधी दी जाती है। चाणक्य को चुनौतीपूर्ण हालात में सफलता का पैमाना माना जाता है। बिहार के सुशासन बाबू यानी  नीतीश कुमार चाणक्य की जमीन पर पले बढ़े नेता है। जिनके हर चाल के पीछे सियासी नफा नुकसान का आंकलन पहले से ही किया गया होता है। 27 जुलाई 2017 ही वो तारीख थी जब नीतीश ने कैबिनेट मंत्रियों को बर्खास्त कर राजभवन जाकर अपना इस्तीफा दिया था। लेकिन इस बार की कहानी कुछ अलग रहने वाली है। जदयू के सूत्रों की मानें तो सारा खाका पहले से ही तैयार हो चुका है। पिछले बार क्योंकि केंद्र में सत्तारूढ़ के साथ आने के लिए नीतीश ने राजद से नाता तोड़ा था। लेकिन इस बार की परिस्थिति कुछ अलग है। इसलिए तरीका भी अलग ही होगा। नीतीश इस बार इस्तीफा देने की बजाए बीजेपी के मंत्रियों को बर्खास्त कर सकते हैं। फिर राजद के कोटे से मंत्रियों की सूची राज्यपाल को सौंपी जा सकती है। कुछ ऐसा ही स्टैंड नीतीश की तरफ से साल 2013 में भी लिया गया था। 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ कर उसे सत्ता से बाहर कर दिया था। तब नीतीश कुमार ने तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील मोदी समेत भाजपा के सारे मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था। 

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इन सारी रणनीति के पीछे की बड़ी वजह जदयू के सूत्रों के हवाले से ये बताई जा रही है कि राजभवन में राज्यपाल की तरफ से मामला नहीं फंसवाना चाहते हैं। नीतीश बिना की शोर शराबे के अपने काम को अंजाम दिए  जाने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में राजभवन में मामला फंसना, फिर अदालत में इसे चुनौती दिए जाने की बातों को ध्यान में रखते हुए वो ऐसा कोई मौका उन्हें नहीं देना चाहते हैं। कल का दिन बिहार की राजनीति के लिए बेहद अहम रहने वाला है। जदयू से लेकर राजद तक और यहां तक की कांग्रेस ने अपने-अपने विधायकों की मीटिंग बुलाई है। वहीं बिहार की तमाम हलचलों के बीच तेजस्वी यादव खुद भगवान शिव की अराधना करने बैठे हैं। पटना के 10 सर्कुलर रोड स्थित राबडी देवी का आवास मंत्रोच्चार से गूंज रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या सत्ता में वापसी से पहले राबड़ी आवास में भगवान की अराधना की जा रही है।

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